सीहोर के इछावर से हुई थी विलीनीकरण आंदोलन की शुरूआत

आजादी के 659 दिन बाद आज ही के दिन भोपाल में फहराया तिरंगा झण्डा

सीहोर। देश 15 अगस्त 1947 को आजाद हो गया था, लेकिन आजादी मिलने के 659 दिन बाद 1 जून 1949 को भोपाल में तिरंगा झण्डा फहराया गया। भोपाल रियासत के भारत गणराज्य में विलय में लगभग दो साल का समय इसलिए लगा कि, भोपाल नवाब हमीदुल्ला खां इसे स्वतंत्र रियासत के रूप में रखना चाहते थे। साथ ही हैदराबाद निजाम उन्हें पाकिस्तान में विलय के लिए प्रेरित कर रहे थे जो कि भौगोलिक दृष्टि से असंभव था। आजादी के इतने समय बाद भी भोपाल रियासत का विलय न होने से जनता में भारी आक्रोश था जो विलीनीकरण आंदोलन में परिवर्तित हो गया और इस आन्दालेन ने आगे जाकर उग्र रूप ले लिया।
भोपाल रियासत के भारत संघ में विलय के लिए चल रहे विलीनीकरण आंदोलन की शुरूआत सीहोर के इछावर से हुई थी। आंदोलन की रणनीति और गतिविधियों का मुख्य केन्द्र सीहोर था। सीहोर से विलीनीकरण आंदोलन का विस्तार हुआ और आंदोलन की गतिविधियों का दूसरा बड़ा केन्द्र रायसेन बना। आंदोलन को चलाने के लिए जनवरी 1948 में प्रजा मंडल की स्थापना की गई। इछावर के ही मास्टर लालसिंह ठाकुर इस आंदोलन के प्रमुख नेता थे। इस आंदोलन को जन-जन तक पहुंचाने के लिए प्रजा मंडल ने किसान नामक समाचार पत्र निकाला था। इस पत्र के संपादक मास्टर लालसिंह ठाकुर थे। पंडित हरिनारायाण शर्मा का घर इस आंदोलन की प्रमुख गतिविधियों का प्रमुख केन्द्र था। सभी बड़े नेता उनके घर पर ही बैठक बुलाकर आंदोलन की रणनीति तैयार करते थे। विलीनीकरण के लिए पहली आमसभा इछावर के पुरानी तहसील स्थित चौक मैदान में ही हुई थी। इस पहली आमसभा में मा. लालसिंह ठाकुर, पंडित चतुरनारायण मालवीय, खान शाकिर अली खां, मौलाना तरजी मशरिकी, कुद्दूसी सेवाई सहित अनेक नेताओं संबोधित किया था।
रायसेन में ही उद्धवदास मेहता, बालमुकन्द, जमना प्रसाद, लालसिंह ने विलीनीकरण आंदोलन को चलाने के लिए जनवरी-फरवरी 1948 में प्रजा मंडल की स्थापना की थी। रायसेन के साथ ही सीहोर से भी आंदोलनकारी गतिविधियां चलाई गईं। नवाबी शासन ने आंदोलन को दबाने का पूरा प्रयास किया। आंदोलनकारियों पर लाठिया-गोलियां चलवार्इं गर्इं।
भोपाल की नई पीढ़ी के कुछ ही लोगों को यह जानकारी होगी कि भोपाल रियासत के विलीनीकरण में रायसेन जिले के ग्राम बोरास में 4 युवा शहीद हुए। यह चारों शहीद 30 साल से कम उम्र के थे। इनकी उम्र को देखकर उस वक्त युवाओं में देशभक्ति के जज्बे का अनुमान लगाया जा सकता है। शहीद होने वालों में धनसिंह आयु 25 वर्ष, मंगलसिंह 30 वर्ष, विशाल सिंह 25 वर्ष और एक 16 वर्षीय किशोर मा. छोटेलाल शामिल था। इन शहीदों की स्मृति में उदयपुरा तहसील के ग्राम बोरास में नर्मदा तट पर 14 जनवरी 1984 में स्मारक बनाया गया है। नर्मदा के साथ-साथ बोरास का यह शहीद स्मारक भी उतना ही पावन और श्रृद्धा का केन्द्र है। प्रतिवर्ष यहां 14 जनवरी को विशाल मेला आयोजित होता आ रहा है।
14 जनवरी 1949 को उदयपुरा तहसील के ग्राम बोरास के नर्मदा तट पर विलीनीकरण आंदोलन को लेकर विशाल सभा चल रही थी। सभा को चारों ओर से भारी पुलिस बल ने घेर रखा था। सभा में आने वालों के पास जो लाठियां और डंडे थे उन्हें पुलिस ने रखवा लिया था। विलीनीकरण आंदोलन के सभी बड़े नेताओं को पहले ही बंदी बना लिया गया था। बोरास में 14 जनवरी को तिरंगा झण्डा फहराया जाना था। आंदोलन के सभी बड़े नेताओं की गैर मौजूदगी को देखते हुए बैजनाथ गुप्ता आगे आए और उन्होंने तिरंगा झण्डा फहराया। तिरंगा फहराते ही बोरास का नर्मदा तट भारत माता की जय और विलीनीकरण होकर रहेगा नारों से गूंज उठा। पुलिस के मुखिया ने कहा जो विलीनीकरण के नारे लगाएगा, उसे गोलियों से भून दिया जाएगा। उस दरोगा की यह धमकी सुनते ही एक 16 साल का किशोर छोटेलाल हाथ में तिरंगा लेकर आगे आया और उसने भारत माता की जय और विलीनीकरण होकर रहेगा नारा लगाया। पुलिस ने छोटेलाल पर गोलियां चलाई और वह गिरता इससे पहले धनसिंह नामक युवक ने तिरंगा थाम लिया, धनसिंह पर भी गोलिया चलाई गई, फिर मगलसिंह पर और विशाल सिंह पर गोलियां चलाई गईं लेकिन किसी ने भी तिरंगा नीचे नहीं गिरने दिया। इस गोली काण्ड में कई लोग गम्भीर रूप से घायल हुए। बोरास में आयोजित विलीनीकरण आन्दोलन की सभा में होशंगाबाद, सीहोर से बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए थे।
बोरास में 16 जनवरी को शहीदों की विशाल शव यात्रा निकाली गई जिसमें हजारों लोगों ने अश्रुपूरित श्रृद्धांजली के साथ विलीनीकरण आन्दोलन के इन शहीदों को विदा किया। अंतिम विदाई के समय बोरास का नर्मदा तट शहीद अमर रहे और भारत माता की जय के नारो से आसमान गुंजायमान हो उठा। बोरास के गोलीकाण्ड की सूचना सरदार वल्लभ भाई पटेल को मिलते ही उन्होंने श्री बीपी मेनन को भोपाल भेजा था। भोपाल रियासत का 01 जून 1949 को भारत गणराज्य में विलय हो गया और भारत की आजादी के 659 दिन बाद भोपाल में तिरंगा झण्डा फहराया गया।