माता सती ने अविश्वास के कारण भगवान श्रीराम की परीक्षा ली : 108 श्री उद्धवदास महाराज

दाम्पत्य जीवन की सफलता आपसी विश्वास में निहित है

सीहोर। पति-पत्नी इस रिश्ते रूपी गाड़ी के दो पहिये हैं। जो विश्वास की शक्ति से प्रगति के पथ पर अग्रसर हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि जीवन में सुखी वही रह सकता है जो पति-पत्नी आपस में विश्वास रहे। जब प्रभु श्रीराम माता सीता के वियोग में वन-वन भटक रहे थे तब माता सती ने प्रभु राम की परीक्षा लेनी चाही। शिवजी के मना करने पर भी सती ने रामजी की परीक्षा लेने के लिए सीता का रूप बनाकर सामने आ गईं तब प्रभु श्रीराम ने माता कहकर प्रणाम किया। उक्त विचार शहर के चाणक्यपुरी में स्थित विश्वनाथपुरी में आयोजित नौ दिवसीय संगीतमय श्रीराम कथा के दूसरे दिन दिन 108 श्री उद्धव दास महाराज ने व्यक्त किए। देर रात्रि को आयोजित श्रीराम कथा में माता सती के चरित्र का प्रसंग का वर्णन करते हुए कहा कि माता सती के अविश्वास के कारण भगवान राम की परीक्षा, शिव की अखंड समाधि, दक्ष प्रजापति के यज्ञ के विध्वंस तथा माता सती के देहत्याण की कथा के माध्यम से यह संदेश दिया कि दाम्पत्य जीवन में एक छोटा सा अविश्वास संबंधों को समाप्त कर देता है। श्री संकट मोचन हनुमान मंदिर समिति के द्वारा रात्रि आठ बजे से आरंभ होती है।
इस मौके पर संत श्री 108 श्री उद्धव दास महाराज ने कहा कि सभी देवी-देवताओं में एक मात्र भगवान भोलेनाथ ही ऐसे हैं जिनकी पूजा देवता, मनुष्य और असुर भी करते हैं। शास्त्रों और पुराणों के अनुसार शिव आदि देव हैं और सृष्टि के आरंभ से ही मनुष्य इनकी पूजा करता आ रहा है। इसका कारण यह है कि शिव के कुछ गुण ऐसे हैं जो इन्हें सामान्य मनुष्यों से जोड़ता है। शिव की लीला कथाओं में शिव के ऐसे गुण और चरित्र बताए गए हैं जो अन्य किसी देवता के नहीं हैं। शिव के यही गुण उन्हें सर्वसाधारण मुनष्य से लेकर संत और महात्माओं को शिव भक्ति के लिए प्रेरित करता है।
सती ने यज्ञ कुंड में कूदकर अपने देह का त्याग
संत श्री ने कहा कि भगवान शिव के कई विवाह हैं। देवी पार्वती से पूर्व इनका विवाह दक्ष की पुत्री सती से हुआ था। भगवान शिव के मना करने पर भी सती अपने पिता के यज्ञ में पहुंच गई। इससे शिव और सती का अपमान हुआ और सती ने यज्ञ कुंड में कूदकर अपने देह का त्याग कर दिया। इससे भगवान शिव वियोग में तड़पने लगे और दक्ष को मारने के लिए अपने गण वीरभद्र को भेजा। भगवान शिव ने हाहाकार मचाना शुरु कर दिया। पत्नी के प्रति प्रेम और वियोग की भावना की जो तस्वीर शिव लीला में मिलती है वह एक आम मनुष्य के समान है। इसलिए मनुष्य शिव को खुद के करीब पाता है। भगवान शिव और भगवान श्रीराम एक दूसरे का स्मरण करते है। देर रात्रि को कथा के यजमान गोपालदास अग्रवाल सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने आरती की।