सत्कर्म के द्वारा निर्धन भी अपने जीवन को धन्य बना सकता है : पंडित भगवती प्रसाद तिवारी

ग्राम बोरदी में कलश यात्रा के साथ श्रीमद्भागवत कथा शुरू , दूसरे दिन भी पहुंचे बड़ी संख्या में श्रद्धालु-भक्त

रेहटी। यदि व्यक्त निर्धन है और वह सत्कर्म करता है तो उसकी दरिद्रता भी समाप्त हो जाती है। व्यक्ति को हमेशा सत्कर्म ही करना चाहिए। सत्कर्मों पर चलने का रास्ता साधु-संत, महात्मा, महापुरूष, ब्राह्मण ही दिखाते हैं। मनुष्य जीवन में भगवान की भक्ति के बिना सुख, शांति, आनंद नहीं मिल सकता। चाहे कितनी भी धन, संपदा हो, लेकिन सुख-शांति ईश्वर की भक्ति, ईश्वर की उपासना से ही मिलती है। ये बातें प्रसिद्ध भगवताचार्य पंडित भगवती प्रसाद तिवारी ने कही। वे रेहटी तहसील के ग्राम बोरदी में श्रीमदभागवत कथा का श्रवण करा रहे हैं। इससे पहले कथा के पहले दिन ग्राम बोरदी में धूमधाम से कलश यात्रा निकाली गई। इसमें बड़ी संख्या में महिला एवं पुरूष शामिल हुए। ग्राम बोरदी में श्रीमद भागवत कथा का आयोजन भाजपा के सलकनपुर मंडल अध्यक्ष प्रेमनारायण मीणा द्वारा कराया जा रहा है। इस दौरान क्षेत्र के भाजपा नेता, कार्यकर्ता सहित आम जनता भी बड़ी संख्या में कथा श्रवण करने पहुंचे।
पंडित भगवती प्रसाद तिवारी ने दूसरे दिन की कथा में कहा कि सत्कर्म, सत्संग, सेवा, परोपकार निष्काम भाव से करते हुए आत्मा में परमात्मा की दिव्य प्रेरणा मिलती है। साधारण मनुष्य के जीवन में भी दिव्यता की शुरूआत हो जाती है। हमारे द्वारा भगवान काम करने लग जाते हैं। शरीर तो मनुष्य का रहता है, लेकिन दिव्य प्रेरणा से भगवान सत्कर्म कराते हैं। उन्होंने कहा कि शुकदेव मुनि महाराज ने राजा परीक्षित जी को कहा कि मनुष्य मात्र को सदा यह बात याद रखना चाहिए कि संसार के नश्वर सुख और दु:ख दोनों ही दुखदाई है। सभी मनुष्य को सुख और दु:ख से ऊपर आनंद की प्राप्ति करना चाहिए। आनंद केवल परमात्मा से ही प्राप्त होता है। आत्मा को अनेकानेक जन्मों से परम आनंद की तलाश है जो इसी जनम में संभव है। शरीर का सुख सभी प्राणियों को मिल जाता है, लेकिन मनुष्य शरीर में भी सुख प्राप्त करना चाहते हैं तो आत्मानंद की प्राप्ति कब और किस शरीर में पाओगे। राजा परीक्षित को सतगुरु शुकदेव मुनि महाराज ने कहा शरीर के सारे सुख राजमहल में थे उन्हें छोड़कर राजा ने परमात्मा की कथा से आत्मानंद को प्राप्त किया। इस संसार में किसी भी व्यक्ति को सदा-सदा के लिए सुख, शांति और आनंद प्राप्त नहीं होता है। केवल परमात्मा की सच्ची भक्ति, साधना, उपासना, तपस्या, त्याग से परम आनंद को प्राप्त कर सकता है। मनुष्य को घर संसार के काम से समय निकाल कर ज्यादा से ज्यादा समय सत्संग में मन लगाने से भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति अपने आप होने लगती है।