राजनीतिक

आम चुनाव से पहले कांग्रेस के बिना तीसरे मोर्चा बनाने की तैयारी में जुटे अखिलेश यादव 

लखनऊ । मैनपुरी उप चुनाव जीतने के बाद सपा मुखिया और पूर्व सीएम अखिलेश यादव अब लोकसभा चुनाव 2024 के मद्देनजर तीसरे मोर्चा की राजनीति का हिस्सा बनने को तैयार हैं। भाजपा के खिलाफ रहने वाले सपा प्रमुख इन दिनों कांग्रेस से भी दूरी बनाकर तीसरे मोर्चे की कवायद में लगे हैं। इसके जरिए वह अपनी भूमिका भी तलाशने में लगे हैं। राजनीतिक जानकारों की मानें तब अखिलेश केंद्रीय राजनीति में अपनी छवि बनाने में जुटे हैं। वह न सिर्फ विभिन्न राज्यों में पार्टी उम्मीदवार उतार रहे हैं, बल्कि गैर भाजपाई पार्टियों के आयोजन में भी हिस्सा ले रहे हैं। तेलंगाना, तमिलनाडु, गुजरात की यात्रा के बाद कोलकाता में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक को इसी रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है। अखिलेश यूपी के दौरे के साथ बीच बीच में दिल्ली जाकर विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों से मिल रहे हैं। इसके पहले अखिलेश ने तेलंगाना जाकर वहां दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान, केरल के मुख्यमंत्री पिनरायी विजयन और सीपीआई के डी. राजा के साथ एकजुटता का संदेश दिया था।
राजनीतिक पंडितों की मानें, तब कुछ दिन पूर्व वह तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई पहुंचे थे, जहां उन्होंने सीएम एमके स्टालिन के जन्मदिन पर आयोजित कार्यक्रम में हिस्सा लिया था। बीते 11 मार्च को अखिलेश यादव गुजरात पहुंचे थे, यहां उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री शंकर सिंह बघेला से मुलाकात की थी। अखिलेश बंगाल में सपा के राष्ट्रीय अधिवेशन के सहारे विपक्षी दलों में एकता का पैगाम भी देने वाले हैं। सपा मुखिया अखिलेश ने कोलकाता में कहा है कि कांग्रेस राष्ट्रीय पार्टी है, वह अपनी भूमिका खुद तय करेगी। लेकिन पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री, तेलंगाना, तमिलनाडु और बिहार के मुख्यमंत्री चाहते हैं कि एक ऐसा प्लेटफार्म बने जिसके द्वारा भाजपा का मुकबला किया जा सके।
सपा के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि अखिलेश केंद्रीय राजनीति में अपने को फिट करने की कवायद कर रहे हैं। नेता जी के न रहने के बाद अपनी पार्टी को राष्ट्रीय राजनीति में आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी इन्हीं के कंधो पर आ गई है। इसकारण वह विपक्षी एका बनाने में जुटे हुए हैं। गैर भाजपाई दलों ने जिस प्रकार से सीबीआई, ईडी को लेकर सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला है, सपा भी अपनी रणनीति बना रही है। सपा नेता कहते हैं कि अखिलेश अपनी पार्टी को राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचाने और नई पीढ़ी के नेताओं को आगे बढ़ाने के प्लान पर काम कर रहे हैं। सपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता डाक्टर आशुतोष वर्मा कहते हैं कि जिस तरह से पूरे देश में सरकारी संस्थाएं हैं, उनका निजीकरण हो रहा है। संवैधानिक संस्थाओं को सरकारीकरण कर विपक्षी दलों को परेशान किया जा रहा है। विपक्ष को जोड़ने के लिए अखिलेश आगे आए हैं। वह पिछले चार माह से इस कवायद में लगे हैं। विपक्ष में एकता की धुरी सिर्फ अखिलेश यादव ही बन सकते हैं।
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि अखिलेश के सामने इस समय दोहरे अवसर हैं, एक यूपी के अंदर और दूसरा देश में। यूपी में अपने को भाजपा के लिए अकेला चैलेंजर मानते हैं। इसकारण उन्होंने बसपा से भी रार मोल ली है। कांग्रेस पर भी निशाना साधते रहते हैं। यूपी में 80 लोकसभा सीटे हैं। यहां पर सपा अपने को भाजपा के खिलाफ अकेले मजबूती से लड़ने के दावे के हिसाब से वह राष्ट्रीय राजनीति में दांव खेल रहे हैं। राष्ट्रीय राजनीति में कांग्रेस का साथ देने के लिए कई पार्टियां तैयार नहीं। अखिलेश ने अपने लिए सारे ऑप्शन खोल रखे हैं। अडानी के मुद्दे में वह कांग्रेस के साथ तब मानव श्रृंखला बनाते हैं, लेकिन राहुल गांधी के मामले में चुप हैं। वह अभी अपने को तौल रहे हैं। इस समय काफी विपक्षी दल सीबीआई और ईडी के चक्कर में फंसे हैं। अखिलेश को क्लीन चिट मिली है। वह बेदाग छवि प्रस्तुत कर सकते हैं। तीसरे मोर्चे में बड़ी दावेदारी के लिए वह जमीन टटोल रहे हैं। क्योंकि ममता और चंद्रशेखर कांग्रेस के विरोधी हैं, जबकि डीएमके और आरजेडी कांग्रेस के साथ हमेशा रहे हैं। वह कांग्रेस के साथ और इसके बैगर बनने वाले गठबंधन में अपनी संभावना देख रहे हैं। भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता अवनीश त्यागी कहते हैं कि 2012 के बाद से कई प्रयोग कर चुके हैं, लेकिन वह सफल नहीं हुए है। पहले वह कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़े। फिर सपा बसपा एक हो गए। लेकिन भाजपा को हरा नहीं पाए। जनता ने इन्हें पूरी तरह से नकार दिया है। अब यह चाहे जितनी एकता बनाएं यह सफल नहीं होने वाले है। 

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button