आज भारत रत्न डॉ भीमराव अंबेडकर जी की जयंती है। समाज किसी की जयंती तभी मनाता है जब उस व्यक्ति ने समष्टि के हित में एक व्यापक दृष्टिकोण के साथ समाज के बारे में चिंतन किया हो अथवा अपने कृतित्व से उसका निर्माण किया हो। बाबा साहेब अंबेडकर जी के जीवन काल पर दृष्टि डालते हैं तो यही ध्यान में आता है कि हर कालखण्ड में कुछ श्रेष्ठ लोग समाज के बीच पैदा होने वाली कुरीतियों, अमानवीय परंपराओं और विघटनकारी ताकतों के विरुद्ध संघर्ष का बिगुल बजाते हैं और प्रेरणा के एक स्थायी पुंज के रूप में वर्षों-वर्ष तक समाज का मार्गदर्शन कर जाते हैं। डॉ. अंबेडकर उन महामानवों में शामिल हैं, जिन्होंने समाज के प्रत्येक अंग को संसाधन और सम्मान दिलाने के लिए अत्यंत विपरीत परिस्थितियों में संघर्ष किया।
आज दुर्भाग्य से समाज में विघटन की कुचेष्ठा रखने वाले तमाम व्यक्ति और संगठन बाबा साहेब के संघर्ष और दर्शन को नकारात्मक रूप से प्रस्तुत कर समाज में स्थायी रूप से विवादों को जिंदा रखना चाहते हैं। लेकिन संतोष की बात यह है कि आज समाज हर विषय को अध्ययनशीलता और तर्क के आधार पर समझने की ओर तेजी से आगे बढ़ रहा है। अध्ययन के आधार पर जब बात होती है तो ध्यान में आता है कि हर कालखण्ड में श्रेष्ठ लोग श्रेष्ठ कार्य ही करते हैं और नकारात्मक लोग नकारात्मकता फैलाते हैं। निश्चित ही अंबेडकर जी के कालखण्ड में सामाजिक कुरीतियां भयावह रूप से फैली हुईं थीं। अस्पृश्यता और शोषण के साये में अमानवीय व्यवहार सामान्य तौर पर दिखाई देते थे। लेकिन उसी कालखण्ड में भीमराव जी को डॉ भीमराव अंबेडकर बनाने में अपनी उत्कृष्ट भूमिका निभाने वाले श्रेष्ठजनों का योगदान भी विशेष उल्लेखनीय है। भीमराव जी जब बालक थे, तब उनकी प्रतिभा को एक शिक्षक ने पहचाना और उन्हें अपने घर ले गए, पुत्रवत् पालन करते हुए उत्कृष्ट शिक्षा दी, वह शिक्षक निश्चित ही जातिगत संकुचन की दृष्टि से विचार करें तो सामान्य वर्ग से आते थे लेकिन उन्होंने कभी इस बात पर विचार नहीं किया कि भीमराव अन्य किसी समाज से आते हैं। गुरू और शिष्य के संबंध श्रद्धा से इस तरह सरावोर हुए कि शिष्य भीमराव ने स्वत: ही अपने गुरू को अपने नाम के साथ जोड़ा। ऐसी घटनाएं भारतीय सामाजिक समरसता का उत्कृष्टतम उदाहरण हैं। इतना ही नहीं अंबेडकर जी को उच्च शिक्षा के लिए जब विदेश जाना था तो बडोदा राज्य के महाराज सयाजीराव गायकवाड़ ने स्वयं आगे आकर उन्हें कोलंबिया यूनिवर्सिटी भेजने की सारी आर्थिक व्यवस्थाएं कीं। अंबेडकर जी जब कोलंबिया से लौटे तो उन्हें बडोदा राज्य के लेजिस्लेटिव अंसेबली का सदस्य बनाया गया। इतना ही नहीं बडोदा राज्य में अनुसूचित जाति के लोगों के चुनाव लड़ने और महिलाओं के अधिकारों को सशक्त करने के दिशा में कानून बनाए गए।
निश्चित ही डॉ भीमराव अंबेडकर जी भारत माता की एक मेघावी संतान के रूप में उभरकर सामने आए और उन्होंने सामाजिक कुरीतियों, भेदभाव के विरुद्ध जबरदस्त बौद्धिक शंखनाद किए लेकिन दुर्भाग्य से कांग्रेस पार्टी और उनकी सरकारों के कारण अपने जीवन काल में 26 उपाधियां प्राप्त करने वाले अंबेडकर जी के नाम पर एक तरफ तो सामाजिक बंटवारे का ताना बाना बुना गया और दूसरी तरफ अंबेडकर जी के व्यक्तित्व को सम्मान देने में भी ओछी हरकतें की गईं। बाबा साहेब जब 1952 में पहला लोकसभा चुनाव लड़े तब उन्हें हराने के लिए नेहरू जी और पूरी कांग्रेस ने पूरे प्रयास किए। 1954 में भी फिर से उन्हें चुनाव हराया गया। कांग्रेस अंबेडकर जी के नाम पर रोटियां तो सेकती रही लेकिन देश को यह जानना जरूरी है कि यदि वे कानून मंत्री बने तो उसका कारण राष्ट्रीय सरकार का गठन था, न कि कांग्रेस की कृपा। कांग्रेस की चलती तो बाबा साहेब कभी सदन में नहीं पहुंच पाते। वे तो अन्य दलों की मदद से बंगाल से राज्यसभा के सदस्य चुने गए।
अंबेडकर जी जो चाहते थे, नेहरू उसी बात का विरोध करते थे। अंबेडकर जी नहीं चाहते थे कि धारा 370 का प्रावधान संविधान में हो। लेकिन नेहरू, शेख अब्दुल्ला और कृष्णा स्वामी जैसे कांग्रेस के नेताओं ने अत्यंत आग्रह किया तब अंबेडकर अस्थायी रूप से इस धारा को जोड़ने पर सहमत हुए। दुर्भाग्य से कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में यह कह दिया कि धारा 370 कभी नहीं हटेगी। अंबेडकर जी देशद्रोह को लेकर कठोरतम कानून के पक्षधर थे लेकिन कांग्रेस है कि घोषणा पत्र में धारा 124 ए हटाने का वचन देती है। स्पष्ट रूप से जहां डॉ अंबेडकर भारत विभाजन के विरुद्ध थे, वहीं कांग्रेस ने भारत विभाजन को स्वीकार किया। कुल मिलाकर अंबेडकर जी ने जो चाहा, कांग्रेस ने उसका उल्टा किया।
अंबेडकर जी के जीवन काल में तो कांग्रेस उनके साथ बुरा बर्ताव करती ही रही, मरणोपरांत भी उस महामानव को सम्मान देने का एक भी काम नहीं किया। जब देश में नेहरू, इंदिरा आदि-आदि को जीवन काल में भारत रत्न दिए जा चुके थे, तब भी संविधान निर्माता की सुध किसी ने नहीं ली। भारतीय जनता पार्टी के सहयोग से जब वीपी सिंह की सरकार बनी तब भाजपा की पहल पर बाबा साहेब को भारत रत्न दिया जा सका। महू की जन्म भूमि हो, नागपुर की दीक्षा भूमि हो, निर्वाण स्थल हो, वह स्थान जहां बाबा साहेब ने विदेश में पढ़ाई की और वह भवन जहां संविधान लिखा गया, उन सभी को तीर्थ बनाने का काम यदि किसी ने किया है तो वह भारतीय जनता पार्टी की सरकारों ने और पार्टी के नेताओं के बाबा साहेब के प्रति आदर भाव ने किया है। सच तो यह है कि वंचित समाज को सम्मान और संसाधन देने के लिए जो संघर्ष बाबा साहेब अंबेडकर जी ने किया, उसी प्रकार का अंत्योदय का विचार पं. दीनदयाल उपाध्याय जी ने प्रतिपादित किया। इन दोनों महापुरुषों का संघर्ष और सिद्धांत देश में लगातार कांग्रेस की सरकार रहने के कारण फलीभूत नहीं हो सका। लेकिन आज यह आनंद की बात है कि देश में और अधिकांश राज्यों में भारतीय जनता पार्टी की सरकारें हैं और बाबा साहेब तथा दीनदयाल जी ने जैसे समाज का सपना देखा था, उसे साकार करने में पूरी ताकत झोंकी जा रही है। प्रधानमंत्री आवास से लेकर, उजाला, उज्ज्वला, आयुष्मान, राशन, स्टार्टअप, स्टैण्डअप ऐसी अनगिनत योजनाएं हैं, जो सबको सम्मान और संसाधन देने की दिशा में सकारात्मक रूप से आगे बढ़ रही हैं। हमारी सरकारों के यह प्रयास ही बाबा साहेब के श्रीचरणाें में सच्ची श्रद्धांजलि है।
– लेखक भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष हैं।