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समलैंगिक विवाह के विरुद्ध राष्ट्रपति के नाम कई संगठनों ने सौंपा ज्ञापन

सीहोर। समलैंगिक विवाह के विरूद्ध कई सामाजिक संगठनों ने आवाज उठानी शुरू कर दी है। इनमें से अनेक संगठनों ने विरोध प्रदर्शन किया हैं। समलैंगिक विवाह को विधि मान्यता न दिया जाए इसे लेकर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के नाम एक ज्ञापन सौंपा गया है। शुक्रवार को विभिन्न सामाजिक संगठनों ने  कलेक्ट्रेट पहुंचकर तहसीलदार को राष्ट्रपति से संबोधित एक ज्ञापन सौंपा है।
ज्ञापन देने समय प्राईवेट डॉक्टर्स एसोसिएशन से डा. गगन नामदेव डॉ धर्मेंद्र दांगी डॉ जयपाल सिंह डॉ गौरव जैन समाज के प्रतिनिधि सुनील जैन भगवान जैन महावीर जैन  भोलू जैन सुनील जैन माहेश्वरी समाज से आशीष माहेश्वरी, रवि ठकराल आदि शामिल थे। इस मौके पर संगठनों का कहना है कि भारत देश, आज, सामाजिक, आर्थिक क्षेत्रों की अनेक चुनौतियों का सामना कर रहा है। तब इस विषय को सर्वोच्च न्यायालय को सुनने और इस पर निर्णय करने की कोई गंभीर आवश्यकता नहीं है। देश के नागरिकों की बुनियादी समस्याओं जैसे गरीबी उन्मूलन, निशुल्क शिक्षा का क्रियान्वयन, प्रदूषण मुक्त पर्यावरण का अधिकार, जनसंख्या नियंत्रण की समस्या, देश की पूरी आबादी को प्रभावित कर रही है। इन गंभीर समस्याओं के संबंध में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने न तो कोई तत्परता दिखाई है और ना ही कोई न्यायिक सक्रियता दिखाई है। ज्ञापन में बताया कि भारत कई धर्मों, जातियों, उप जातियों का देश है। इसमें शताब्दियों से केवल जैविक पुरुष और जैविक महिला के मध्य विवाह को मान्यता दी है। विवाह की संस्था न केवल दो विषम लैगिकों का मिलन है, बल्कि मानव जाति की उन्नति भी है। शब्द विवाह को कई नियमों, अधिनियमों, लेखों और लिपियों में परिभाषित किया है। सभी धर्मों में केवल विपरीत लिंग के दो व्यक्तियों के विवाह का उल्लेख है। विवाह को दो अलग लैंगिकों के पवित्र मिलन के रूप में मान्यता देते हुए भारत का समाज विकसित हुआ है। पाश्चात्य देशों में लोकप्रिय दो पक्षों के मध्य अनुबंध या सहमति को मान्यता नहीं दी है। ज्ञापन में बताया कि भारत में विवाह का एक सभ्यतागत महत्व है और एक महान और समय की कसौटी पर खरी उतरी वैवाहिक संस्था को कमजोर करने के किसी भी प्रयास का समाज मुखर विरोध किया जाना चाहिए। भारतीय सांस्कृतिक सभ्यता पर सदियों से लगातार आघात हो रहे हैं, फिर भी अनेक बाधाओं के बाद भी वह बची हुई है। अब स्वतंत्र भारत में इसे अपनी सांस्कृति जड़ों पर पश्चिमी विचारों दर्शनों और प्रथाओं के अधिरोपण का सामना करना पड़ रहा है, जो इस राष्ट्र के लिए व्यावहारिक नहीं हैं।

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