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आंवलीघाट में लगा ‘भूतों का मेला’, अफसरों ने भी किया रतजगा

सीहोर। जिले के आंवलीघाट में हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी पितृमोक्ष अमावस्या (भूतड़ी अमावस्या) के अवसर पर भूतों का मेला लगा। जिला मुख्यालय से करीब 90 किलोमीटर दूर स्थित इस प्राचीन घाट पर शनिवार रात से रविवार सुबह तक श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ा।
बता दें यह मेला उन लोगों के लिए खास महत्व रखता है जो किसी प्रेत-बाधा या शारीरिक समस्या से पीडि़त होते हैं। यहां दूर-दूर से आए लोग अपने परिजनों को लेकर पहुंचते हैं और मंत्रों तथा तांत्रिक पूजा-पाठ के जरिए इन समस्याओं से मुक्ति पाने की कोशिश करते हैं।
आस्था और रहस्य का अनोखा नजारा
मेले में आए लोग ढोल-नगाड़ों पर नाचते-गाते हुए अपने देवी-देवताओं का आह्वान करते नजर आ रहे हैं। कुछ श्रद्धालुओं के शरीर में देवी-देवताओं के आने का दावा किया गया, जो अस्त्र-शस्त्रों को लेकर नर्मदा में स्नान करते हैं। यहां का नजारा अजीब गरीब रहता है। घाट पर कोई चीख रहा है तो कोई पानी में डुबकी लगाते ही तड़पने लगा। कोई अपने आपको जंजीर से मार रहा है।

प्रशासन की चाक-चौबंद व्यवस्था
इस भारी भीड़ और अजीबोगरीब माहौल को नियंत्रित करने के लिए प्रशासन पूरी तरह से मुस्तैद था। कलेक्टर बालागुरू के और पुलिस अधीक्षक दीपक कुमार शुक्ला सहित अन्य पुलिस अधिकारी बारिकी से नजर बनाए हुए हैं और सुरक्षा व्यवस्था का जिम्मा संभाल रहे हैं।

नर्मदा स्नान के बाद पहुंचे सलकनपुर
आंवलीघाट स्थित पवित्र सलीला मां नर्मदा में पवित्र स्नान के बाद श्रद्धालु सलकनपुर स्थित मां विजयासन धाम पहुंचे और देवी मां के श्री चरणों में हाजिरी लगाई। बता दें 22 सितंबर से नवरात्रि का पर्व प्रारंभ हो रहा है। शुभ मुहूर्त में घट स्थापना की जाएगी। नवरात्रि पर्व के दौरान लाखों श्रद्धालु यहां दर्शनों के लिए पहुंचेंगे।

कालियादेव मेले में दिखी जनजातीय संस्कृति की झलक
इछावर तहसील के ग्राम नादान के पास घने जंगलों में स्थित कालियादेव स्थान पर भी भूतड़ी अमावस्या की रात्रि में विशाल मेले का आयोजन हुआ। यह मेला अपनी जनजातीय संस्कृति और परंपराओं की अनुपम छटा के लिए प्रसिद्ध है। यहां से निकलने वाली सीप नदी पर एक झरना है, जिसके नीचे बने कुंड को जनजातीय समुदाय के लोग पाताल लोक का रास्ता मानते हैं। इस विशेष तिथि पर दूर दराज से जनजातीय समुदाय के लोग, महिलाएं, पुरुष और बच्चे यहां एकत्रित हुए। उन्होंने पारंपरिक रीति रिवाजों के साथ सीप नदी में कालियादेव की पूजा अर्चना की।

 

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