जनजातीय गौरव दिवस विशेष: सीहोर का गिन्नौरगढ़ किला, जहां से रानी कमलापति ने फूंकी थी गोंडवाना के शौर्य की अंतिम फूंक

सीहोर। आज जनजातीय गौरव दिवस के अवसर पर मध्य प्रदेश के इतिहास में गोंडवाना रियासत के शौर्य और बलिदान का प्रतीक जिले में स्थित गिन्नौरगढ़ किला एक बार फिर चर्चा के केंद्र में है। सीहोर जिले की सीमाओं पर रातापानी वन्यजीव अभयारण्य के घने जंगल में स्थित यह किला न केवल अपनी स्थापत्य कला के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यह रानी कमलापति की वीरता और उनके कूटनीतिक संघर्ष की गाथा भी सुनाता है।
इतिहासकारों के अनुसार इस दुर्गम किले का निर्माण मूल रूप से 13वीं शताब्दी में परमार वंश के राजाओं ने विंध्याचल पर्वत श्रृंखला की 1975 फीट की ऊंची पहाड़ी पर करवाया था। बाद में यह गोंड शासकों के लिए एक अजेय गढ़ बन गया। गोंड वंश के राजा निजाम शाह ने इसे अपनी राजधानी बनाकर इसे एक शानदार स्वरूप दिया। इस किले में सात तल वाले महलों के खंडहर, विशाल जलाशय और शीतल जल की बावडिय़ां आज भी गोंड राजाओं की समृद्ध जीवनशैली की कहानी कहते हैं।

रानी कमलापति का संघर्ष केंद्र
गोंड रियासत की अंतिम शासिका रानी कमलापति के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण चरण इसी गिन्नौरगढ़ किले से जुड़ा हुआ है। पति निजाम शाह की मृत्यु के बाद, रानी ने अपने रिश्तेदार चैन शाह के षड्यंत्रों से बचने और अपने राज्य की रक्षा के लिए यहीं शरण ली थी। रानी कमलापति की बुद्धिमत्ता और राजनीतिक सूझबूझ ने उन्हें उस कठिन दौर में भी अपनी रियासत के स्वाभिमान को बनाए रखने के लिए मजबूर किया।
अधिकार परिवर्तन की ऐतिहासिक दास्तान
इतिहास गवाह है कि रानी कमलापति ने संकट के समय अपनी रियासत को बचाने के लिए इस्लामनगर के नवाब दोस्त मोहम्मद खान भोपाल के संस्थापक से मदद मांगी। हालांकि मदद के बदले हुए समझौते के परिणामस्वरूप रानी कमलापति के निधन के बाद यह किला दोस्त मोहम्मद खान के अधिकार क्षेत्र में चला गया। इस घटना ने मध्य भारत के राजनीतिक परिदृश्य को हमेशा के लिए बदल दिया और गोंडों के हाथ से सत्ता निकलकर पठानों के शासन में आ गई।
आज जनजातीय गौरव दिवस पर
यह किला एक प्रेरणास्रोत के रूप में खड़ा है। भले ही यह वर्तमान में खंडहर में बदल रहा हो और देखरेख का अभाव हो, लेकिन गिन्नौरगढ़ किला मध्य प्रदेश की समृद्ध जनजातीय विरासत और रानी कमलापति के अदम्य साहस का साक्षी है। यह किला हमें याद दिलाता है कि कैसे इन वीर शासकों ने अपने गौरव और स्वाभिमान की रक्षा के लिए संघर्ष किया था।


