भोपालमध्य प्रदेश

MP में बिना वैरिएंट की पहचान के चल रहा इलाज, अब भी जीनोम सीक्वेंसिंग के लिए दिल्ली के आसरे

भोपाल/सागर
एक तरफ कोरोना के नये वैरिएंट ओमीक्रोन और अब उसके सब स्ट्रेन Stealth Omicron (BA2) ने कोरोना की तीसरी लहर को घातक बना दिया है. इन दिनों लोगों में अजीब सी दहशत देखी जा रही है. वहीं दूसरी तरफ वैरिएंट की पहचान करने के लिए जरूरी जीनोम सीक्वेंसिंग की रिपोर्ट का महीनों इंतजार करना पड़ रहा है. प्रदेश के मेडिकल कॉलेजों द्वारा जीनोम सीक्वेंसिंग के लिए भेजे जा रहे सैंपल की रिपोर्ट में देरी के चलते वैरिएंट की पहचान नहीं हो पा रही है और कोरोना पॉजिटिव मरीजों का इलाज भगवान भरोसे किया जा रहा है.

जीनोम सीक्वेंसिंग की रिपोर्ट के इंतजार में बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज
सागर संभाग का बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज अब तक 30 सैंपल जीनोम सीक्वेंसिंग के लिए भेज चुका है,लेकिन अभी तक एक भी सैंपल की रिपोर्ट बीएमसी को हासिल नहीं हुई है. मेडिकल कॉलेज ने दो बार में 15-15 सैंपल दिल्ली में जीनोम सीक्वेंसिंग के लिए भेजे थे. दिसंबर 2021 में भेजे गये इन सैंपलों की रिपोर्ट आज तक नहीं आई. वहीं जिन कोरोना पॉजिटिव लोगों के सैंपल भेजे गये थे उनमें से कई लोगों की अब मौत भी हो चुकी है. जनवरी के 26 दिन में सागर जिले में 4,307 कोरोना पॉजिटिव मरीज मिल चुके हैं. 4 मरीजों की कोरोना से मौत हो चुकी है.

बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज के मीडिया प्रभारी डॉ. उमेश पटेल के अनुसार " दो चरणों में 15-15 सैंपल जीनोम सीक्वेंसिंग के लिए दिल्ली भेजे गए थे, इस तरह कुल 30 सैंपल दिल्ली भेजे जा चुके हैं. लेकिन अभी तक इनकी रिपोर्ट हासिल नहीं हुई है. इस मामले में कई बार बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज से रिमाइंडर भी भेजा गया है"

बिना वैरिएंट की पहचान के ही प्रदेश में चल रहा मरीजों का इलाज
जीनोम सीक्वेंसिंग के जरिए वेरिएंट की पहचान हो जाने पर कोरोना पॉजिटिव मरीज के इलाज में मदद मिलती है. वैरिएंट के लक्षण, वैरिएंट में होने वाले बदलाव और वैरीएंट पर कारगर दवाई का पता चल जाने के बाद आसानी से इलाज किया जा सकता है, लेकिन जीनोम सीक्वेंसिंग की रिपोर्ट ना मिलने के कारण बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज समेत प्रदेश के लगभग सभी मेडिकल कॉलेजों में लक्षणों के आधार पर ही इलाज किया जा रहा है.

MP में ओमिक्रॉन वैरिएंट के सब स्ट्रेन BA2 के 26 केस मिले
मध्य प्रदेश में अब तक ओमिक्रॉन वैरिएंट के सब स्ट्रेन BA2 के 26 केस सामने आ चुके हैं. इंदौर में 21 पेशेंट तो शिवपुरी में 5 पेशेंट में नए स्ट्रेन की पुष्टि हुई है. इंदौर में नये स्ट्रेन के 20 मरीज ठीक होकर डिस्चार्ज भी हो चुके हैं. राज्य में एक्टिव मरीजों का आंकड़ा 72,224 से अधिक हो गया है और वर्तमान में संक्रमण दर 12.3% तक पहुंच गई है.

जीनोम सीक्वेंसिंग के लिए अभी दिल्ली पर ही निर्भर रहना पड़ेगा
चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वाश कैलाश सारंग कहा कहते हैं थे कि उनकी बात केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय से हुई है और जल्द ही प्रदेश में जीनोम सीक्वेंसिंग की मशीनें लग जाएंगी, लेकिन कब तक ऐसा हुआ नहीं है.अब उनका कहना है कि यह बात केंद्र पर निर्भर है कि कब तक मशीनें लगेंगी. दिसंबर माह में चिकित्सा शिक्षा मंत्री ने दिल्ली में केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री मनसुख एल मांडविया से मुलाकात कर मध्यप्रदेश के लिए जीनोम्स सिक्वेन्सिंग मशीन उपलब्ध कराने का अनुरोध किया था. मांडविया ने भोपाल, इंदौर, जबलपुर, ग्वालियर और रीवा मेडिकल कॉलेज के लिए जीनोम्स सिक्वेन्सिंग मशीन प्रदान करने की स्वीकृति प्रदान कर दी थी. फिलहाल डब्ल्यूएचओ के नियमों के अनुसार 5% लोगों के सैंपल जीनोम सीक्वेंसिंग के लिए भेजे जा रहे हैं. ऐसे में कहा जा सकता है कि यह मशीनें जल्द स्थापित होती नजर नहीं आती.

क्या कहते हैं स्वास्थ्य विभाग से जुड़े एक्सपर्ट ?
स्वास्थ्य विभाग से जुड़े एक्सपर्ट कहते हैं कि सैंपल की जीनोम सिक्वेंसिंग करना आसान नहीं है, यह एक लंबा प्रोसेस है. कोविड के लिए बनी मध्य प्रदेश सलाहकार समिति के सदस्य एसपी दुबे के अनुसार शुरुआत में अगर 400 पॉजिटिव सैंपल की सीक्वेंसिंग करते हैं, तो इन सबकी रिपोर्ट आने में ही 2 से ढाई महीने का समय लग जाता है. जबकि, अगले दिन और 400 मरीजों के सैंपल सीक्वेंसिंग के लिए आ जाते हैं. इसलिए सभी लोगों की सीक्वेंसिंग होना नामुमकिन है. ऐसे में मान लिया जाए कि अगर 100 में से 35 से अधिक लोगों में ओमीक्रॉन की पुष्टि होती है तो ओमीक्रॉन लोगों के बीच पहुंच गया है. वैसे एक सैंपल को टेस्ट करने में लगभग 2 से 3 दिन का समय लगता है. लैब पर अगर प्रेशर बढ़ता है तो यह समय और बढ़ जाता है.

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