भोपालमध्य प्रदेश

मैनिट के दो प्राध्यापकों ने की विशेष प्राकृतिक रेशे की खोज, मिला पेटेंट, लकड़ी-फर्निशिंग उद्योग को मदद

भोपाल
राजधानी में स्‍थित मौलाना आजाद राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (मैनिट) के रसायन अभियांत्रिकी विभाग की प्राध्यापिका डा. सविता दीक्षित एवं यांत्रिकी विभाग के प्राध्यापक गजेंद्र दीक्षित को प्राकृतिक फाइबर की खोज के लिए भारत सरकार द्वारा संयुक्त रूप से पेटेंट दिया गया। डा. सविता दीक्षित का यह पांचवा पेटेंट है, इससे पहले उन्हें अपनी चार अन्य खोजों के लिए भारत सरकार द्वारा पेटेंट मिल चुका है। अपने पांचवे पेटेंट के बारे में बात करते हुए उन्होंने बताया कि कंप्रेशन माउल्डिंग तकनीक की मदद से प्राकृतिक रेशे, कायर और एपक्सी रेजिन को एक खास अनुपात में मिलाकर हम उच्च विशिष्ट मापांक और वांछित शक्ति का प्राकृतिक फाइबर बना सकते हैं।

उन्होंने यह भी बताया कि इस फाइबर के निर्माण में जरूरी सभी सामग्री को अपने प्राकृतिक रूप में ही इस्तेमाल किया जाता है, इसलिए इससे बनने वाले फाइबर पदार्थ एक जैव-निम्नीकरणीय फाइबर की श्रेणी में आते हैं। पुराने समय से लकड़ी उद्योग में कृत्रिम रेशों का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर किया जा रहा है, जिससे कि हमारे वातावरण को बहुत नुकसान हुआ है। लकड़ी का प्रयोग फर्निशिंग एवं कारपेंटरी में बहुतायत मात्रा में होने से प्रकृति पर इसके कई दुष्परिणाम व्यापक तौर पर दिखाई देते हैं। अत: प्राकृतिक फाइबर की नई खोज, लकड़ी और फर्निशिंग उद्योग के लिए एक महत्वपूर्ण प्राकृतिक समाधान है एवं वातावरण को सुरक्षित रखने में एक अनोखा कदम है। इससे वृक्षों की कटाई रोकने में मदद मिलेगी।

पृथ्वी की सतह पर मात्र छह प्रतिशत बची है नमभूमि
उधर, क्षेत्रीय प्राकृतिक विज्ञान संग्रहालय, भोपाल (आएमएनएच) द्वारा विश्व नमभूमि दिवस पर आनलाइन व्याख्यान का आयोजन किया गया। बरकतउल्ला विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर डा. विपिन व्यास ने 'लोगों और प्रकृति के लिए नमभूमि पर कार्य" विषय पर व्‍याख्यान दिया। उन्होंने नमभूमि के प्रकार- स्वच्छ जल नमभूमि (नदी, झील, जलाशय), खारा जलयुक्त नमभूमि (मुहाना, मैग्रोव), मानव निर्मित नमभूमि (मछली पालन तालाब, चावल के खेत) आदि के बारे में बताया। उन्‍होंने बताया कि पृथ्वी की सतह का छह प्रतिशत हिस्सा नमभूमि है। 1970 से अब तक विश्व की 35 प्रतिशत नमभूमि नष्ट हो चुकी है। नमभूमि के क्षरण और क्षति के कारणों जैसे जल निकासी और भराव, पानी का अधिक निष्कासन, प्रदूषण, अधिक मछली पकड़ना, जलवायु परिवर्तन आदि के बारे में विस्तार से बताया। इस व्याख्यान से देश भर के लगभग 173 श्रोता जुड़े।

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