हरीश रावत हाईकमान के दखल पर पड़े नरम ? बोले- मेरा ट्वीट तो रोजमर्रा जैसा ही था
नई दिल्ली
'हाथ पैर बांधे जाने' की शिकायत करने वाले हरीश रावत के तेवर 24 घंटे के भीतर ही नरम पड़ गए हैं। हाईकमान की ओर से तलब किए जाने के बाद उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री ने अपने उन ट्वीट्स को रोजमर्रा जैसा बताया है, जिन्होंने राज्य की सियासत से लेकर पार्टी मुख्यालय तक सनसनी फैला दी। हरीश रावत ने बुधवार शाम एक के बाद एक 3 ट्वीट के जरिए कहा था कि उन्हें काम करने की आजादी नहीं दी जा रही है और इसलिए उनके मन में विश्राम (राजनीति से संन्यास) का विचार भी आता है। चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष रावत के इस बयान को हाईकमान से नाराजगी के रूप में देखा गया तो बीजेपी को पार्टी की फूट पर निशाना साधने का मौका मिल गया। आनन-फानन में कांग्रेस हाईकमान ने रावत सहित उत्तराखंड के बड़े नेताओं को दिल्ली तलब कर लिया है। इस बीच रावत भी डैमेज कंट्रोल मोड में दिखे। उन्होंने गुरुवार को ट्वीट किया, ''मेरा ट्वीट रोजमर्रा जैसा ही ट्वीट है, मगर आज अखबार पढ़ने के बाद लगा कि कुछ खास है, क्योंकि भाजपा और आप पार्टी को मेरी ट्वीट को पढ़कर बड़ी मिर्ची लग गई है और इसलिए बड़े नमक-मिर्च लगाए हुए बयान दे रहे हैं।''
बताया जा रहा है कि रावत के साथ प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल और नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह आज शाम तक दिल्ली पहुंचेंगे। शुक्रवार को उत्तराखंड मामले को लेकर दिल्ली में हाईकमान के साथ इन नेताओं की बैठक हो सकती है। इस बैठक में राहुल गांधी के भी मौजूद रहने की संभावना है। बता दें कि बुधवार को हरीश रावत ने प्रदेश के पार्टी संगठन को आड़े हाथों लिया है। सोशल मीडिया पर संगठन की भूमिका पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि विधानसभा चुनाव में जिनके आदेश पर तैरना है, उनके नुमाइंदों ने मेरे हाथ-पांव बांध दिए हैं। रावत ने साफ था कि जिस चुनाव रूपी समुद्र को तैरना है, वहां संगठन का ढांचा अधिकांश स्थानों पर सहयोग का हाथ बढ़ाने के बजाय या तो मुंह फेर कर खड़ा हो जा रहा है या नकारात्मक भूमिका निभा रहा है। मन में बहुत बार विचार आ रहा है कि अब बहुत हो गया। बहुत तैर लिए, अब विश्राम का समय है। रावत ने कहा-फिर चुपके से मन के एक कोने से आवाज उठ रही है। बड़ेऊहापोह में हूं। नया साल शायद रास्ता दिखा दे। विश्वास है कि भगवान केदारनाथ मेरा मार्गदर्शन करेंगे।