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कच्चे तेल के बाद खाद्य तेल पर सबसे अधिक खर्च करता है भारत

नई दिल्ली
भारत दुनिया में खाद्य तेल का सबसे बड़ा आयातक है। इसका मतलब यह भी है कि भारतीय अर्थव्यवस्था और उसके घरों का बजट, वैश्विक खाद्य तेल बाजार में किसी भी हलचल के प्रति बेहद संवेदनशील है। वहीं दलहन के मामले में भी भारत आत्मनिर्भर नहीं है। इसके लिए कई देशों से आयात किया जाता है। हाल की वैश्विक हलचल के मद्देनजर खाद्य तेलों के दाम में काफी तेजी आई है। वहीं ताजा उपभोग खर्च सर्वे के मुताबिक भारतीय उपभोक्ता खाद्य तेल के मुकाबले दालों पर अधिक खर्च करते हैं। लेकिन हाल की वैश्विक हलचल भारतीय उपभोक्ताओं की मुश्किलें बढ़ा सकती है। 22 अप्रैल को पाम तेल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के इंडोनेशिया के फैसले से भारतीय उपभोक्ताओं झटका लगने की संभावना है।

इंडोनेशिया दुनिया का सबसे बड़ा पाम तेल उत्पादक है। हालांकि, उसने पूरी तरह से प्रतिबंध के इनकार किया है। तेल और दाल के खपत और दाम में वृद्धि के बीच गेहूं निर्यात करने का भारत का फैसला भी चुनौतियां बढ़ा सकता है। मात्रा के हिसाब से दाल और तेल के बाद अनाज की खपत सबसे अधिक है। यूक्रेन पर रूसी आक्रमण से पैदा हुई कमी को पूरा करने के लिए भारत इस साल एक से डेढ़ करोड़ टन गेहूं निर्यात करने की उम्मीद कर रहा है। गेहूं के मामले में भारत जिस कृषि कौशल का प्रदर्शन कर रहा है, वह देश के रिकॉर्ड के ठीक विपरीत है।

अनाज और दाल की खपत बढ़ी
आंकड़ों के अनुसार सबसे निचले पायदान पर खड़े 10 फीसदी गरीब परिवारों में कुल खपत में अनाज की हिस्सेदारी 21.4 फीसदी है। जबकि शीर्ष 10 फीसदी अमीरों के मामले में अनाज की खपत 3.4 फीसदी है। इसी तरह दाल एवं उससे जुड़े उत्पाद में निचले स्तर के 10 फीसदी गरीब परिवारों में खपत 4.9 फीसदी है। जबकि अमीरों के मामले में यह 1.1 फीसदी है। इसी तरह खाद्य तेल के मामले में निचले पायदान के 10 फीसदी गरीब परिवारों में खपत 5.8 फीसदी है। वहीं अमीरों के मामले में यह 1.3 फीसदी है। सब्जियों के मामले में भी कुछ ऐसा ही हाल है।

क्रूड के बाद खाद्य तेल के आयात पर ज्यादा खर्च
पेट्रोल-डीजल के मूल उत्पाद कच्चा तेल (क्रूड ऑयल) पर सबसे अधिक विदेशी मुद्रा खर्च होता है। इसके बाद खाद्य तेल के आयात पर सबसे अधिक खर्च होता है। उद्योग के आंकड़ों के अनुसार देश में हर साल करीब 1.5 लाख से दो लाख करोड़ रुपये का खाद्य तेल आयात होता है। इसमें सबसे ज्यादा 43 फीसदी आयात कच्चे पॉम ऑयल का होता है। इसके बाद पॉम ऑयल और उससे जुड़े उत्पाद (पॉमोलिन) का योगदान 21 फीसदी है। उसके बाद सोयाबीन तेल का आयात 20 फीसदी और सूरजमुखी तेल का योगदान 16 फीसदी है।

गरीबों पर पड़ रही सबसे अधिक मार
ताजा उपभोग खर्च सर्वे के आंकड़ों के मुताबिक खाद्य तेलों की महंगाई गरीबों पर सबसे अधिक पड़ रही है। वर्ष 2011-12 के आंकड़ों के आधार पर किए गए आकलन के अनुसार निचले स्तर पर सबसे गरीब 10 फीसदी आबादी के कुल खर्च में खाद्य तेलों का उपभोग बढ़ा है। ऐसे में इसके महंगा होने पर उन परिवारों के बजट पर सबसे अधिक बोझ बढ़ा है। इस अवधि में अमीर लोगों के कुल घरेलू बजट में खाद्य तेलों की हिस्सेदारी घटी है।

 

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