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अमेरिका की खुली पोल, यूक्रेन युद्ध के बाद भारत से अधिक ईंधन रूस से खरीदा

 नई दिल्ली।
 

यूक्रेन युद्ध के बाद से पश्चिमी देश लगातार रूस पर प्रतिबंध लगा रहे हैं। वहीं, अधिकांश देशों ने भारत से रूस से तेल खरीदने पर रोक लगाने की अपील की। हालांकि, भारत ने सबसे पुराने दोस्त के साथ अपने रिश्ते बनाए रखा। अब जो जानकारी निकलकर सामने आई है वह आईना दिखाने वाली है। रूस के खिलाफ एक्शन के लिए भारत पर लगातार दबाव बनाने वाले अमेरिका ने यूक्रेन युद्ध के बाद भारत की तुलना में अधिक जीवाश्म ईंधन खरीदे हैं। थिंक-टैंक सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (CREA) की एक रिपोर्ट ने संघर्ष शुरू होने के बाद के महीनों में भारत और मिस्र में रूसी तेल शिपमेंट में तेजी दिखाई है। स्थिति बदलने के लिए तैयार है।

भारत सरकार के अधिकारियों ने कहा कि भारी छूट (कुछ पश्चिमी एजेंसी की रिपोर्ट में $ 30 प्रति बैरल के रूप में आंकी गई है) भारतीय खरीदारों के लिए इतनी आकर्षक नहीं हो गई है क्योंकि उन्हें डिलीवरी लेने और फिर इसे शिप करने के लिए कहा जा रहा है।

सरकार के एक अधिकारी ने कहा, "तेल खरीदने के लिए शिपिंग लागत, बीमा और युद्ध प्रीमियम जोड़ने की जरूरत है। इसके बाद यह मुनाफे का सौदा नहीं रह जाता है।" रूसी अधिकारियों ने सरकार को प्रस्ताव दिया था कि वे कच्चे तेल पर छूट की पेशकश करने को तैयार हैं क्योंकि वे उन प्रतिबंधों से जूझ रहे हैं जो ऊर्जा, भोजन और फार्मा उत्पादों पर लागू नहीं होते हैं।

भारत की सरकारी कंपनियों और निजी क्षेत्र की रिलायंस ने संघर्ष शुरू होने के बाद से कुल 30 मिलियन बैरल रूसी क्रूड खरीदा था। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और अन्य यूरोपीय नेताओं ने इसकी तीखी आलोचना की थी। युद्ध समाप्त करने और कूटनीति की वकालत करते हुए भारत ने यह सुनिश्चित किया है कि वह अपने हितों की रक्षा करता रहेगा।

CREA की रिपोर्ट में बताया गया है कि यूक्रेन के आक्रमण के बाद के दो महीनों में रूस द्वारा निर्यात किए गए 63 बिलियन यूरो मूल्य के जीवाश्म ईंधन का 71% जर्मनी के साथ यूरोपीय देशों को निर्यात किया गया था। हालांकि, युद्ध पूर्व अवधि की तुलना में ये कम थे। भारत के मामले में, अप्रैल के पहले तीन हफ्तों में जनवरी-फरवरी की तुलना में कोयले के शिपमेंट में 130% और कच्चे तेल के लिए 340% की छलांग थी।

 

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