मांग न होने, ब्याज भुगतान के लिए सस्ते में बिकवाली करने से तेल तिलहन कीमतों में गिरावट
नई दिल्ली
बाजारों में मांग कमजोर होने और कर्ज पर आयात किये गये तेलों के ब्याज का भुगतान करने के लिए खरीद भाव के मुकाबले सस्ते में बिकवाली करने से दिल्ली तेल-तिलहन बाजार में शनिवार को सरसों, सोयाबीन, पामोलीन सहित लगभग सभी तेल तिलहनों में गिरावट आई। बाजार सूत्रों ने बताया कि खाद्य तेलों की मांग काफी कमजोर है। विदेश से आयात होने वाले खाद्य तेलों के भाव में लगभग 20 प्रतिशत की मंदी आई है। दूसरा आयातक, छह महीने पूर्व जिस डॉलर भाव पर खरीद कर तेल बेच चुके थे, उन्हें मौजूदा डॉलर के अधिक भाव पर ब्याज का भुगतान करने के लिए अपने खरीद भाव के मुकाबले सस्ते में तेल बेचना पड़ रहा है। तेल कीमतों में आई गिरावट का यह मुख्य कारण है।
सूत्रों ने कहा कि वर्तमान भाव के हिसाब से सोयाबीन डीगम के खरीद का भाव पड़ता है 136 रुपये किलो और कांडला बंदरगाह पर यही तेल बिक रहा है 133 रुपये किलो। भाव पड़ता न होने से आयातकों को भारी नुकसान है। आयातकों ने लाखों टन सोयाबीन डीगम और सीपीओ आयात कर रखा है और उन्हें अपनी साख चलाते रहने के लिए बैंकों के कर्ज का भुगतान करने के लिए कम कीमत पर अपना माल बेचना पड़ रहा है। आयातकों को तेल आयात करने में फिलहाल नुकसान है। सूत्रों ने कहा कि मंडियों में सरसों की आवक घटकर 2.25-2.50 लाख बोरी रह गई है। मांग कमजोर होने से सरसों तेल तिलहन में गिरावट आई जबकि विदेशी तेलों में आई गिरावट की वजह से मूंगफली तेल तिलहन के भाव कमजोर रहे। बिनौला तेल में कारोबार काफी नगण्य रह गया है। गिरावट के आम रुख और मांग कमजोर रहने से सीपीओ और पामोलीन में भी गिरावट रही।
सूत्रों ने कहा कि अभी हाल में कुछ बड़े ब्रांड की कंपनियों ने अपने खाद्य तेलों के अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) में कटौती की घोषणा की है। लेकिन एक उदाहरण से पूरी स्थिति को समझा जा सकता है। उदाहरण के लिए एक प्रमुख ब्रांड ने सूरजमुखी तेल का दाम (एमआरपी) घटाकर 180 रुपये कर दिया है वहीं एक अच्छी बिक्री रिकॉर्ड वाली दूसरी कंपनी ने सूरजमुखी तेल का दाम घटाकर 210 रुपये लीटर और देश की एक अन्य प्रमुख ब्रांड ने इसी तेल का दाम घटाकर 220 रुपये लीटर रखा है। एक सूरजमुखी तेल के ही दाम में तीन कंपनियों के दाम में लगभग 40 रुपये (लगभग 20 प्रतिशत) का फर्क है। सूत्रों ने कहा कि उपभोक्ताओं को सस्ते में तेल आपूर्ति करने वाले और तमाम शुल्कों का समय पर भुगतान करने वालों के यहां तो सरकार छापे डलवा रही है मगर एमआरपी की आड़ में मनमाने भाव पर खाद्तेल की बिक्री करने वालों के खिलाफ कुछ नहीं हो रहा। खाद्य तेल की जरुरतों का स्थायी समाधान देश में तेल-तिलहन उत्पादन बढ़ाना ही हो सकता है।