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रथ यात्रा के ठीक पहले प्रभु ‘जगन्नाथ’ क्यों पड़ते हैं 15 दिन बीमार?

नई दिल्ली
'जगन्नाथ रथ यात्रा 2022' की शुरुआत इस साल 1 जुलाई से होने जा रही है। हर साल इस यात्रा में सैकड़ों लोग भाग लेते हैं। माना जाता है कि पुरी की रथ यात्रा का रथ खींचने से इंसान के सारे पापों का खात्मा होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। मालूम हो कि इस वर्ष रथ यात्रा का प्रारंभ 1 जुलाई से होने वाला है, जिसकी तैयारियां जोरों पर हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि रथ यात्रा से पहले प्रभु जगन्नाथ 15 दिन के लिए बीमार पड़ जाते हैं और एकांतवास में चले जाते हैं।

 प्रभु 'जगन्नाथ' जी का एक परमभक्त थे माधवदास दरअसल इसके पीछे एक विशेष कारण है। कहा जाता है कि आदिकाल में प्रभु 'जगन्नाथ' जी के एक परमभक्त थे माधवदास, जिन्होंने बचपन से ही काफी दुख झेला था।उनके मां-बाप बचपन में ही भगवान को प्यारे हो गए थे, वो अपने भाईयों के साथ रहा करते थे और प्रभु की पूजा किया करते थे,एक दिन उनके भाई ने उनसे कहा कि वो शादी कर लें, अपने बड़े भाई की बात मानकर माधवदास ने शादी कर ली लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था, शादी के कुछ दिन बाद ही उनकी पत्नी चल बसी।

माधवदास की हालत हुई खराब काल के इस क्रूर प्रहार को वो सहने की कोशिश कर ही रहे थे कि एक प्राकृतिक आपदा ने उनके भाई को भी लील लिया, जिसके बाद माधवदास अत्यंत दुखी होकर पुरी आ गए और खुद को प्रभु जगन्नाथ की सेवा में लगा दिया। माधवदास ने मना कर दिया वो दिन भर पुरी मंदिर में काम करते, उनकी निस्वार्थ सेवाभाव से प्रभु बहुत ज्यादा खुश हुए लेकिन दुर्बल शरीर कितना काम करता और वो बीमार हो गए।

मंदिर में बहुत सारे सेवक थे, उन्होंने माधवदास की मदद करनी चाही लेकिन माधवदास ने मना कर दिया और बीमारी हालत में प्रभु की सेवा करते रहे और एक दिन उनकी स्थिति इतनी बिगड़ गई कि वो मूर्छित हो गए। प्रभु जगन्नाथ सेवक के रूप में प्रकट हुए तब प्रभु जगन्नाथ सेवक के रूप में प्रकट हुए और वो माधवदास की सेवा करने लगे, जिससे थोड़े ही दिन में माधवदास ठीक हो गए लेकिन उन्हें एहसास हो गया कि उनका सेवक कोई और नहीं स्वयं प्रभु ही हैं, वो उनके चरणों में गिर पड़े और प्रभु से माफी मांगी, जिस पर प्रभु ने कहा कि अरे तुम बीमार थे और इसमें मैंने सेवा कर दी तो तुम माफी क्यों मांग रहे हो? इस पर माधवदास ने कहा कि 'भक्त प्रभु की सेवा करते हैं, प्रभु नहीं।' जिसे सुनने के बाद प्रभु जगन्नाथ ने माधवदास को गले लगा लिया।

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