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बीमा नियामक इरडा का फैसला, कोरोना काल में खारिज बीमा दावों की फिर जांच होगी

 नई दिल्लीं
 
 बीमा नियामक इरडा ने अब बीमा कंपनियों द्वारा कोविड-19 बीमारी में खारिज दावों की जांच करने का फैसला किया है। इससे हजारों पॉलिसीधारकों को राहत मिल सकती है। स्वास्थ्य बीमा कंपनियों ने कोरोना काल मे 46 फीसदी दावों को खारिज कर दिया था। यह स्वास्थ्य बीमा उद्योग में औसत दावा निपटान का करीब 50 फीसदी है जिसे बेहद खराब माना जाता है। बॉम्बे हाईकोर्ट में बीमा कंपनियों के खिलाफ एक जनहित याचिका दायर होने के बाद इरडा ने कोविड-19 के खारिज दावों पर विचार करने की बात कही है। मानव सेवा धाम नामक एक गैर सरकारी संगठन ने यह जनहित याचिका दायर की थी। याचिका में हाईकोर्ट से बीमा कंपनियों को कोविड-19 से संबंधित दावों को मनमाने तरीके से खारिज करने से रोकने के लिए आदेश जारी करने की मांग की थी।

80 हजार क्लेम के आवेदन
जनहित याचिका में आरोप लगाया गया है कि बीमा कंपनियां गलत तरीके से कोविड-19 से संबंधित दावों को खारिज कर रही हैं। कोविड-19 के कारण बीमा कंपनियों के पास दावों की संख्या बढ़ गई। गैर-जीवन बीमा कंपनियों के पास ही 80 हजार क्लेम के आवेदन आए। याचिका में कहा गया है कि कोराना की दूसरी लहर में बीमा कंपनियों ने मार्च 2021 तक केवल 54 फीसदी उन दावों का ही निपटारा किया, जिनमें अतिरिक्त कोविड स्वास्थ्य बीमा कवर था। इस तरह 46 फीसदी दावों को खारिज कर दिया गया। बीमा उद्योग के एक शीर्ष अधिकारी ने कहा कि यह आंकड़ा बेहद चौंकाने वाला है क्योंकि बीमा क्षेत्र में क्लेम का औसत 90 फीसदी से भी अधिक है।

बिना कारण बताए खारिज किए दावे
याचिका में कहा गया है कि कुल 7,900 करोड़ रुपये के दावों का ही निपटारा किया गया है, जबकि कोरोना स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत कुल 14,680 करोड़ रुपये के दावे किए गए थे। इसमें कहा गया है कि बाकि के दावों को बिना कोई ठोस कारण बताए मनमाने ढंग से रद्द कर दिया। इसके अलावा बीमाधारक के पास कॉम्प्रिहेन्सिव बीमा पॉलिसी होने के बावजूद अस्पताल में कोविड-19 के इलाज में खर्च हुई कुल राशि का 45 से 80 फीसदी का ही भुगतान बीमा कंपनियों ने किया।

बीमाधारकों के पैसे का गलत इस्तेमाल कर रहीं कंपनियां
जनहित याचिका में आरोप लगाया गया है कि बीमा कंपनियों ने अनुचित तरीकों से कोविड-19 के अधिकतर दावों को रद्द कर दिया। इसमें कहा गया है कि बीमा कंपनियों का प्रीमियम सालाना आधार पर 12.47 फीसदी की दर से बढ़ा है। जबकि उनका मुनाफा कम हुआ है। वहीं दूसरी ओर क्लेम आधा से भी कम निपटाया है। ऐसे में प्रीमियम की राशि कहां गई इसकी भी जांच होनी चाहिए। इसमें आरोप लगाया गया है कि कंपनियां प्रीमियम की राशि का उपयोग अपने निजी फायदे और एजेंटों को मोटा कमीशन देने के साथ संदिग्ध निवेश कर रही हैं।

 

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