7 माह का गर्भ गिराने की दिल्ली हाईकोर्ट ने दी मंजूरी, भ्रूण में पाई गई थी दुर्लभ बीमारी
नई दिल्ली
दिल्ली हाईकोर्ट ने 30 सप्ताह से अधिक की गर्भावस्था वाली एक महिला के भ्रूण में दुर्लभ गुणसूत्रीय विकार (Rare Chromosomal Disorder) रहने के चलते गर्भपात कराने की अनुमति दी है। साथ ही, हाईकोर्ट ने कहा कि यदि महिला शिशु को जन्म देती है तो उस बच्चे/बच्ची में इस तरह की गंभीर विकृतियां होंगी जो कभी सामान्य जीवन जीने नहीं देगा। हाईकोर्ट ने कहा कि यदि महिला को गर्भावस्था जारी रखने के लिए मजबूर किया गया तो उसे प्रसव से पहले या उसके दौरान शिशु की मृत्यु होने का निरंतर डर बना रहेगा। यदि शिशु का जन्म हो भी जाएगा तो भी माता को कुछ महीनों के अंदर शिश की मृत्यु होने का अंदेशा बना रहेगा। सुनवाई के दौरान महिला ने हाईकोर्ट को बताया कि उसे प्रक्रिया में शामिल जोखिमों के बारे में बताया गया है।
जस्टिस रेखा पल्ली ने कहा कि इस समय गर्भवास्था जारी रखने से याचिकाकर्ता को कुछ खतरे हैं। उन्होंने कहा कि मुझे यह कहने में कोई हिचक नहीं है कि यह याचिकाकर्ता को अपनी पसंद के चिकित्सा केंद्र में गर्भपात कराने की अनुमति देने का एक उपयुक्त मामला है। हालांकि, इसे वह अपने खुद के जोखिम पर कराएगी। अदालत ने महिला की उस याचिका का निपटारा कर दिया, जिसमें एमटीपी अधिनियम के तहत याचिका दायर करने के समय 28 सप्ताह के गर्भ का चिकित्सकीय गर्भपात कराने की अनुमति मांगी गई थी। याचिका के अनुसार, भ्रूण न केवल एडवर्ड सिंड्रोम (ट्राइसोमी 18) से पीड़ित था, बल्कि गैर-अस्थिकृत नाक की हड्डी और द्विपक्षीय पाइलेक्टासिस से भी पीड़ित था। डॉक्टरों की राय के अनुसार, यदि गर्भावस्था को उसके तार्किक निष्कर्ष पर ले जाया जाता है, तो बच्चे के एक वर्ष से अधिक जीवित रहने की संभावना नहीं है और वह भी निरंतर चिकित्सा सहायता से, इससे न केवल उसके शारीरिक स्वास्थ्य बल्कि मानसिक स्वास्थ्य को भी गंभीर नुकसान होगा। वकील ने बताया कि एमटीपी अधिनियम महिलाओं को 24 सप्ताह की गर्भावस्था अवधि के बाद भी अपनी गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति देता है यदि यह पाया जाता है कि इसे जारी रखने से उसके शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान होने की संभावना है। अदालत के आदेश पर महिला और उसके भ्रूण की जांच के लिए एक मेडिकल बोर्ड का गठन किया गया था।