ज्ञानदीक्षा समारोह सम्पन्न: स्वामी विवेकानंद विश्वविद्यालय में हुआ युवा महोत्सव का समापन
सागर
स्वामी विवेकानंद विश्वविद्यालय में 12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद जयंती के साथ ज्ञान दीक्षा कार्यक्रम को आधार बनाते हुए युवा महोत्सव का समापन गणमान्य अतिथियों के सानिध्य में संपन्न हुआ। दीप प्रज्जवलन के उपरांत स्वागत के साथ मंच -मुख्य अतिथि डॉ.नीलिमा गुप्ता कुलपति डॉ.हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर, संस्थापक कुलपति डॉ.अनिल तिवारी, कुलाधिपति डॉ.अजय तिवारी, मुख्य वक्ता डॉ.श्याम सुंदर दुबे सेवानिवृत्त प्राचार्य हटा, दमोह, योगाचार्य श्री विष्णु आर्य, श्री आर.एल.शुक्ला, धर्म गुरु ज्ञानी जी से सुशोभित हुआ।
सर्वप्रथम कुलाधिपति डॉ.अजय तिवारी द्वारा ज्ञान दीक्षा का औचित्य और विवेकानंद के शिक्षा दर्षन पर अपना वक्तव्य दिया गया जिसमें आपने कहा कि- स्वामी विवेकानंद जी सर्वधर्म सम्भव थे, इसी दर्शन को आगे बढ़ाते हुए यह विष्वविद्यालय भी ज्ञान-दीक्षा कार्यक्रम आयोजित करता है। विश्वविद्यालयके प्रति सामाजिक सरोकार के प्रति अग्रसर होते हुए। भारत की भूमि पर एक-से-एक राजवंश एवं गुरूजन विद्वान पैदा हुए है सतयुग से लेकर द्वापर युग तक बहुत से राजवंषों ने जन्म लिया। जिन्होंने अपने तप बहुत महर्षि, ऋषि मुनि जन्मवत् हुए। माननीय कुलाधिपति ने स्वामी विवेकानंद के जन्म से लेकर उनकी युवावस्था तक की यात्रा, उनकी रूचि, उनके ज्ञान, तथा उनकी क्या जिज्ञासा थी। इन सभी के बारे में विस्तार से चर्चा की उन्होंने विवेकानंद जी के गुरु परमहंस रामकृष्ण के बारे में बताया। विवेकानंद के भारत भ्रमण के बारे में बताया जो उन्होंने दर्शन किए उसमें क्या-क्या सुधार और कैसे किया जाए इस बारे में भी विस्तार से बताया। यदि भारत में अध्यात्म है तो विदेश में भौतिकवाद है उन्होंने विवेकानंद जी के साहित्य को, विचारों को अपने जीवन में उतारने की बात कही। किसी वृक्ष की जड़ को सींधा जाए तो उसके तत्व को सींचा जाता है। विवेकानंद जी ने सदैव ही शिक्षा पर बल दिया। शिक्षा से ही मनुष्य पूर्णता प्राप्त करता है, उसका सर्वांगीण विकास षिक्षा से ही होता है मनुष्य सेवा ही सबसे बड़ा धर्म है शिक्षा का उद्देष्य व्यक्तित्व का विकास करना है। कुलाधिपति महोदय ने समाज सेवा में विशिष्ट योगदान देने वाले 10 लोगों को सम्मानित किया और विभिन्न प्रतियोगिताओं के पुरस्कार वितरण किये। मनुष्य का विकास उन्होंने विश्व-बन्धुत्व की भी चर्चा की। विवेकानंद के ध्येय वाक्य-उठो, जागो और तब तक मत रूको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो।
मुख्य अतिथि की आसंदी से बोलते हुए डॉ.नीलिमा गुप्ता कुलपति डॉ.हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर ने वि.वि. द्वारा चलाई जा रही मुहिम ज्ञान दीक्षा कार्यक्रम की प्रशंसा की। युवा दिवस के उपलक्ष्य में बताया कि विवेकानंद जी प्रत्येक युवा के लिए प्रेरणास्रोत है। वि.वि. के शिक्षक भी यहां के विद्यार्थियों के लिए ऊर्जावान बनाने हेतु सदैव तत्पर रहते हैं। आज का समय चुनौतिपूर्ण है, और इसी चुनौति को हमें संकल्पित होकर उसका सामना करना है। परिस्थिति के अनुकूल चलते रहना है, और कदम-दर-कदम आगे बढ़ते रहना चाहिए। इसी अवसर पर यह प्रसन्नता का विषय है कि आत्मनिर्भर भारत पर स्वामी वि.वि. सागर और डॉ.हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर वि.वि. के मध्य (कौशल विकास से संबंधित) अनुबंध हुआ।
हमारे विश्वविद्यालय और विवेकानंद की युवा दृष्टिकोण विषय पर अपना वक्तव्य देते हुए संस्थापक कुलपति डॉ.अनिल तिवारी ने कहा कि- विवेकानंद विश्वविद्यालय अपने स्थापना दिवस से ही युवा दिवस मनाता आ रहा है। विवेकानंद की शिक्षा को प्रेरणा मनाते हुए ही इस विश्वविद्यालय की नींव रखी गई। और इन्हीं के चिंतन, और आदर्श को मानते हुए ही इस विश्वविद्यालय की शिक्षा शुरू की गई एवं विद्यार्थियों को उन्हीं के आदर्षों पर चलने हेतु प्रेरणावत् किया जाता है। विवेकानंद जी ने सदैव सनातन् धर्म और मानव सेवा के लिए कार्य किया। विवेकानंद जी की जयंती पर हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हमें भी इस देश के प्रति समर्पित होकर धर्म एवं मानव सेवा का भाव होना चाहिए। विवेकानंद जी ने अध्यात्म और चिंतन मानव के साथ धर्म को सर्वोपरि मानते हुए कार्य किया और षिक्षा को ही उन्होंने मनुष्य के विकास का आधार माना था। उन्होंने बताया कि विवेकानंद जी कितने कम समय में विश्वगुरू बनें। हमें उनसे यह सीखना चाहिए कि कम समय में भी बड़े से बड़ा कार्य किया जा सकता है। हम भी उनकी चरणों की धूल है क्योंकि हम उसी विश्वविद्यालय से सरोकार रखते हैं जिनके नाम पर यह विष्वविद्यालय है। सिर्फ उनका नाम ही बार-बार लेने से उनके कुछ गुण हममें आ जाते हैं। स्वामी विवेकानंद जी ने हमेशा विश्व के लिए कुछ करने का निर्णय लिया अपने लिए नहीं। आज प्रत्येक व्यक्ति यही सोचता है कि मुझे क्या चाहिए पर विवेकानंद जी यह सोचते थे कि मैंं विश्व को क्या दे सकता हूं अर्थात् हम योगदान लेने के लिए सोचते हैं परंतु विवेकानंद जी हमेशा योगदान देने की बात करते हैं यही भाव हमें अपने अन्दर ही पैदा करना है कि हम विष्व के लिए क्या दे सकते हैं और यही हमारी उनके प्रति सही श्रृद्धांजलि होगी यही हमारा विवेकानंद जयंती मनाने का उद्देष्य है। विष्वविद्यालय द्वारा कोरोनाकाल के दौरान सागरष्षहर के विभिन्न व्यक्तियों द्वारा किये गए सराहनीय कार्यों के लिए उन्हें सम्मानित किया गया।
मुख्य वक्ता की आसंदी से बोलते हुए डॉ.श्याम सुंदर दुबे सेवा निवृत्त प्राचार्य हटा, दमोह ने कहा कि- विवेकानंद जी ने तर्क से सर्मपण तक की यात्रा ही उनके जीवन का सूत्र था ये तर्क से समर्पण तक की यात्रा वस्तुतः धर्म की विज्ञान से जुड़ी हुई नींव है हम जहां तर्क से प्रारंभ करते हैं और समर्पण पे जहां खत्म होते हैं वहां विज्ञान से प्रारंभ करके अध्यात्म तक पहुंचने का एक पूरा अवकाश हमें प्राप्त होता है। ईष्वर की अनुभूति और उस अनुभूति को दूसरों के हृदय में संस्थापित करने की जो चेष्टा है वो कठिन चेष्टा है। उसी चेष्टा को लेकर के स्वामी रामकृष्ण परमहंस हम सबसे अपनी बात कहते हैं। उन्होने बताय कि भावानुप्रवेष क्या होता है। उन्होंने बताया कि किस तरह स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी ने स्वामी जी को परखा कि किस तरह इसके तर्क के साथ इसके भीतर पिघलता हुआ आत्मतत्व भी है इस पिघले हुए आत्मतत्व को मैं गढ़ सकता हूं चेतना के साथ ही उन्होने स्वामी विवेकानंद को अपना षिष्य स्वीकार कर लिया। षक्ति जब तक पिघलती नहीं तब तक वह मनुष्यों को जोड़ने मेंष्षक्तिवादी नहीं षक्ति का पिघलना जरूरी है। श्रम से जो पसीना निकलता है पसीनें से स्नान करने से मन पवित्र होता है और ज्ञान के जल से जो स्नान करता है उसकी आत्मा पवित्र होती है। आपने कहा कि स्नातक होने का अर्थ क्या है स्नान की क्रिया ही स्नातक के साथ जुड़ी हुई है। ज्ञान के जल से जो स्नान कर चुका है वही स्नातक है।
आभार कुलपति डॉ.नीरज तोपखाने द्वारा दिया गया। इस अवसर पर नगर में वैष्विक आपदा में जिन्होेंने अपना सामाजिक एवं आर्थिक, चिकित्सकीय सहयोग समाज में प्रदान किया उनको भी स्वामी विवेकानंद के कुलाधिपति एवं कुलपति के द्वारा सम्मानित किया गया जिसमें- बुन्देलखण्ड मेडीकल कॉलेज के डॉ.मनीष जैन, डॉ.सत्येन्द्र मिश्रा, एवं डॉ.उमेश पटेल को सम्मानित किया गया। एवं समाजसेवी – श्री गोविंद राय, श्री गुरमीत सिंह, श्री चंदू बुधवानी, श्री जसपाल सिंह, श्री कुलदीप बाल्मीकि, श्री अनिरूद्ध चाचौदिया जिसमें महानुभावों को सम्मानित कर हम कृतार्थ हुए। इसी अवसर पर विष्वविद्यालय में होने वाली क्रियात्मक एवं सृजनात्मक प्रतियोगिता में सहभागिता करने वाले एवं क्रीड़ा में अपना विशेष योगदान देने वाले छात्र-छात्राओं को पुरस्कार दिया गया एवं विष्वविद्यालय में अनुसंधान एवंष्षोध कार्य के लिए उत्कृष्ट कार्य हेतु जिन्हें सम्मान का गौरव प्राप्त हुआ वो डॉ. षैलेन्द्र पाटिल, डॉ. वर्षा काषव हैं। सौहार्दपूर्ण वातावरण में विवेकानंद जयंती एवं ज्ञान दीक्षा का कार्यक्रम संपन्न हुआ विष्वविद्यालय परिवार के साथ नगर के गणमान्य शिक्षा विद् डॉ एवं समाजसेवी लोग उपस्थित रहे एवं शांति मंत्र के साथ कार्यक्रम संपन्न हुआ।