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संषर्घों में भी नहीं हारी हिम्मत, अब बच्चोें की कर रही हैं परवरिश

- ऐसी महिलाएं जो नौैकरी के साथ घर-परिवार एवं बच्चों को दे रही बेहतर जिंदगी

सीहोर। जिंदगी में कभी-कभी ऐसे मुकाम भी आते हैैं, जब लगता है कि सब कुछ खत्म हो गया है। ऐसी स्थितियां जब आती हैं तो दिल-दिमाग भी काम करना बंद कर देतेे हैं, लेकिन कई बार स्थितियोें से समझौता करकेे भी जिंदगी कोे जीना ही पड़ता है। महिलाओं के साथ यदि इस तरह की स्थितियां आती हैैं तोे यह और भी ज्यादा चिंताजनक हो जाती है, क्योंकि उन्हें बच्चों, परिजनों के साथ परिवार के भरण-पोषण की भी चिंता करनी पड़ती है। 8 मार्च अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर हमने ऐसी ही कुछ महिलाओें से चर्चा की, जिन्होंने बताई अपनी संघर्ष की गाथा।
मनोबल टूटा, लेकिन बच्चों की खातिर फिर खड़ी हुईं-
कोरोना काल का समय था। पता नहीं था कि ये कोरोना हमारेे परिवार पर भी बज्रपात करेगा। सब कुछ बेेहतर चल रहा था, लेकिन कोरोना काल में पति की तबीयत बिगड़ी और देखतेे ही देखतेे आंखों के सामनेे ही वेे हमारे बीच से बहुत दूर चले गए। उस समय ऐसा लगा कि अब जिंदगी में कुुछ भी नहीं है। मनोबल भी पूरी तरह से टूट गया, लेकिन फिर बच्चों की खातिर खुद को संभाला और फिर से जिंदगी को पटरी पर लाने की कोशिश कर रही हूं। ये कहना है रेहटी स्थित शासकीय महाविद्यालय की प्राचार्या डॉ. अंजलि गढ़वाल का, जिन्होंने कोरोनाकाल में अपनेे पति को खोया है। वे बताती हैं कि पति के निधन के बाद तो जिंदगी में ऐसा पहाड़ टूट गया, जिसने सब कुछ खत्म कर दिया। उनके घर में वृव्द्ध सास भी हैं, जोे पैरालिसिस से ग्रसित हैं। इसकेे बाद बच्चेे की शादी भी की। डॉ. अंजलि गढ़वाल भोपाल सेे रेहटी कॉलेज आती हैं औैर दिनभर की मेहनत के बाद जब देर शाम तक घर पहुंचती हैं तोे उन्हें परिवार को भी देखना होता है, लेकिन वेे अपनी नौकरी के साथ-साथ परिवार को भी बेेहतर जिंदगी दे रही हैं। वे बताती हैं कि ये सब मनोेबल ईश्वर की कृपा के बिना नहीं आ पाता। भगवान ने ऐसी कृपा की है, लेकिन हमनेे जोे खोेया है उसकी भरपाई कभी नहीं हो सकती।
छोेटे-छोटे बच्चों के लिए बनाए रखी हिम्मत-
भोपाल में घर का काम चल रहा था, तभी एक दिन खुली छत सेे पति का पैर फिसल गया औैर वेे नीचे गिर। सिर में गहरी चोंट आनेे के कारण उनका निधन हो गया। पति के निधन के बाद तो ऐसा लगा कि पूरा जीवन ही नष्ट हो गया, लेकिन दो छोटेे-छोटे बच्चोें के कारण खुद कोे संभाला। ये कहना है कि रेहटी कॉलेज में कैमिस्ट्री की अतिथि प्रोफेसर डॉ. निधि मालवीय का। वे बताती हैं कि 4 जून 2021 का दिन हमारे परिवार के लिए काल बनकर आया था। इस दिन पति का निधन हो गया, लेकिन 13 वर्ष की बेटी और 10 वर्ष के बेटे नेे जीवन जीने के लिए प्रेरित किया और उनकी खातिर खुद कोे संभाला। अब परिवार में एक वृद्ध सास, दो छोटे-छोटे बच्चे और मैं हूं। वे कहती हैं कि उनके ससुर का भी पहले ही निधन हो गया था और अब पति भी नहीं है, इसलिए घर-परिवार के भरण-पोषण की जिम्मेदारी भी पूरी तरह से उन पर ही है। दिनभर कॉलेज की नौकरी करने के बाद देर शाम तक घर पहुंचकर बच्चों की पढ़ाई, उनकी देखभाल के साथ सासु मां कोे भी समय देेना होता है। बच्चों केे लिए कुछ करनेे की ललक एवं दृढ़ इच्छाशक्ति के कारण ये सब कर पा रही हूं।
एक छोटी सी कोशिश से बदली दिशा-
छोटे-भाई बहनों की देखभाल और परिवार की आर्थिक तंगी के चलते जिस आशा ने सात साल पहले पढ़ाई छोड़ दी थी, आज वही आशा पूरे परिवार का सहारा और भविष्य की आशा बन गई है। पढ़ाई छोड़ चुकी आशा को पुनः पढ़ाई शुरू करने के लिए निरंतर प्रोत्साहित करने और उसके माता-पिता को इसके लिए सहमत कराने की कोशिश रंग लाई। इस छोटी सी कोशिश ने आशा के जीवन की तस्वीर बदल दी। साल 2013 में 6वीं क्लास से पढ़ाई छोड़ने के बाद आशा के मन में यह कशक तो थी कि वो भी औरों की तरह पढ़ाई करती। लेकिन अपने नाम के अर्थ को सार्थक करते हुए एक बार फिर सरकारी स्कूल में कक्षा आठवीं में दाखिला लिया। आशा ने पूरी लगन के साथ परिश्रम किया और आगे बढ़ते हुए 12वीं के बाद भोपाल से लैब टैक्निशियन का डिप्लोमा किया। आशा आज भोपाल के एक निजी अस्पताल में लैब टेक्नीशियन है। माता ममता और पिता मनोहर बरखने अपनी बेटी आशा की कामयाबी पर गर्व करते हैं। दरअसल नसरुल्लागंज तहसील के ग्राम सुकरवास निवासी आशा बरखाने के संघर्ष की कहानी तब शुरू हुई जब वह छटवीं क्लास में थी। पारिवारिक समस्याओं के चलते उसकी पढ़ाई छूटी, स्कूल जाना बंद हो गया।
कड़ी मेहनत और दृढ़ इच्छा शक्ति से बनी खिलाड़ी-
कड़ी मेहनत और लगन से नर्मदा में नाव चलाते हुए मछली पकड़ने से लेकर राष्ट्रीय स्तर की केनोईंग खिलाड़ी बन गई। कावेरी की कहानी से यह प्रेरणा मिलती है कि अभाव एवं विपरीत परिस्थतियों में भी दृढ़ इच्छा शक्ति से और कठिन परिश्रम से आगे बढ़ा जाए तो बाधाएं भी नहीं रोक पाती। पिता का कर्ज उतारने और मछली पकड़ने में पिता का हाथ बंटाने वाली सीहोर जिले के नसरूल्लागंज के पास ग्राम चींच निवासी कावेरी की देश में अपनी एक अलग पहचान है। आज वह राष्ट्रीय केनाईंग खिलाड़ी के नाम से जानी जाती हैं। कावेरी ने न केवल अपना, बल्कि अपने जिले और प्रदेश का नाम भी रोशन किया है। कावेरी को वर्ष 2018 में एक गोल्ड, दो सिलवर जूनियर, 2019 में 6 गोल्ड जूनियर, 2020 में तीन गोल्ड सीनियर, 2021 में 5 गोल्ड जूनियर तथा 7 गोल्ड मेडल सीनियर में मिले हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने नसरूल्लागंज में आयोजित कार्यक्रम में कावेरी को 11 लाख रूपए पुरूस्कार स्वरूप देने की घोषणा कर सम्मानित किया।
चालीस हजार से अधिक लोगों का टीकाकरण कर चुकी है मीना सोनी-
मानवता की सेवा से बड़ा कोई धर्म नहीं। ईश्वर ने मुझे यह सौभाग्य दिया कि मैंने कोरोना से पीड़ित लोगों की सेवा की। मुझे लोगों की सेवा का जो अवसर मिला उसका एक एक पल मैंने सेवा मे लगाया। यह कहना है जिला चिकित्सालय स्थित कोविड-19 टीकाकरण का कार्य कर रही एएनएम मीना सोनी का। श्रीमती मीना अभी तक 40 हजार से अधिक लोगों को कोविड का टीका लगा चुकी हैं। मीना सोनी ने विगत एक वर्ष के अपने अनुभव को साझा करते हुए बताया कि जब कोविड पॉजिटिव रिपोर्ट आती है तो वह व्यक्ति और परिवारजन नर्वस हो जाते हैं। पीड़ित को इलाज के साथ ही परिजनों का हौसला बढ़ाया कि सब ठीक हो जाएगा आप चिन्ता न करें। हम है इलाज और उसकी सेवा के लिये। जब पिछले साल कोरोना संक्रमण फैलना शुरू हुआ था तब मैंने घर-घर जाकर सर्वे किया था। सर्वे के दौरान कई लोग ऐसे भी मिले, जिन्हें विश्वास दिलाना कठिन होता था कि हम उनकी स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए सर्वें कर रहे हैं। मैंने कन्टेमेंट एरिये में जांच और दवा वितरित की है। अब लोगो में कोरोना को लेकर जागरूकता आयी है। लोग स्वयं अपना सैंपल देने आ रहे हैं। पिछले एक साल में कई लोग स्वस्थ होकर अस्पताल से गए और जाते समय मरीज एवं उनके परिजनों ने ढेरों दुआएं दी। उनकी दुआएं मेरे लिए अनमोल है।
स्वसहायता समूह ने बबीता को बनाया आत्मनिर्भर-
महिला स्व-सहायता समूह के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाएं खुद का व्यवसाय प्रारंभ कर न केवल परिवार को आगे बढ़ाने में मदद कर रही हैं, बल्कि वे आत्मनिर्भर भी हो रही हैं। रेहटी तहसील के ग्राम ढाबा की बबीता बाई अन्य महिलाओं के लिए प्रेरणा बन गई हैं। बबीता बाई का परिवार मजदूरी करता था। बबीता बाई ने सोचा कि उसे भी परिवार की आर्थिक स्थिति बेहतर करने के लिए कुछ करना चाहिए। बबीता तीन साल पहले कृष्णा स्व-सहायता समूह से जुड़ी। बबीता ने स्व-सहायता समूह से 5 हजार रूपए लिए और अपना व्यवसाय प्रारंभ किया। वह हाट बाजारों में दैनिक उपयोग सामान का विक्रय करने लगी। कभी वह बस से जाती तो कभी साइकिल से। बबीता ने कुछ ही समय में समूह का लोन चुका दिया। उसे लगभग 5 हजार रूपए महीने की आमदनी हुई।
सीहोर की बेटियों ने बढ़ाया जिले का गौरव-
सीहोर शहर की दो प्रतिभाशाली बेटियों का चयन केरल नेशनल फुटबाल प्रतियोगिता के लिए हुआ। यह भी गर्व का विषय है कि मध्यप्रदेश फुटबाल टीम की कप्तान का जिम्मा भी सीहोर शहर की बेटी शिवानी गौर को दिया गया। सीहोर शहर में प्रतिभाओं की कमी नहीं है, इनको मंच देने और तलाशने का जिम्मा मध्यप्रदेश महिला फुटबाल टीम की कोच ललिता सैनी ने बखूबी निभाया। जिनके कारण सीहोर की प्रतिभाओं को प्रदेश ही नहीं देश में खेलने का अवसर प्राप्त हुआ। शहर की प्रतिभाशाली फुटबाल खिलाड़ी शिवानी गौर जो मिड हाफ पोजिशन में कई बार मध्यप्रदेश टीम के लिए खेली है। इसके अलावा मधु राघव का चयन भी नेशनल फुटबाल टीम के लिए हुआ। शिवानी गौर ने अब तक उडीसा, असम, केरल, तमिलनांडु और उत्तराखंड में नेशनल में उत्घ्तम प्रदर्शन किया है। इसके अलावा आधा दर्जन से अधिक बार मधु राघव ने उडीसा, गोवा, गुजरात, कर्नाटक तमिलनांडु, केरल और राजस्थान में शानदार प्रदर्शन किया है।
मध्यप्रदेश की एक मात्र महिला रेफरी बनी ज्योति गौर-
जिले की महिला फुटबॉल खिलाड़ी ज्योति गौर एक शानदार फुटबॉल खिलाड़ी होने के साथ ही मध्यप्रदेश की एक मात्र फुटबॉल टीम की इंडिया रेफरी हैं। ज्योति गत 6 वर्षाे से फुटबॉल में रेफरी है। उन्होंने अभी तक नेशनल लेवल पर कई मैच खेले है और हीरो इंडियन वूमेंस लीग एवं खेलो इंडिया फुटबाल प्रतियोगिता में भी ज्योति ने मध्यप्रदेश रेफरी बोर्ड की तरफ से रेफरशिप की। ज्योति ने 02 दर्जन से ज्यादा बार नेशनल फुटबॉल प्रतियोगिता में रेफरशिप की हैं। वे वर्तमान में एक निजी स्कूल में फुटबॉल कोच के रूप में पदस्थ हैं एवं शिक्षक के रूप में अपनी भूमिका निभा रही हैं। ज्योति हाल ही में भारत के सबसे बड़े महिला फुटबॉल प्रतियोगिता में मैच खिलाया, जिसमे ज्योति गौर भारतीय फुटबॉल संघ की तरफ से बतोर मैच निर्णायक के रूप में पोस्टेड की गई थी।

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