दो साल में 10000 से 17000 हुए मजदूर, मनरेगा में दिया जा रहा है काम
सागर
कोरोना के चलते बाहर काम करने वाले लोग वापस घर लौट आए हैं, जिससे मनरेगा में मजदूरी की मांग भी बढ़ गई है। दो वर्ष में सात हजार मजदूर मनरेगा में बढ़ गए हैं। मार्च 2020 में लगे लॉकडाउन के बाद दूसरे शहरों में रहकर काम करने वाले लोग अपने गांव वापस लौट आए थे और फिर स्थानीय स्तर पर ही रोजगार की तलाश शुरू की थी। इस स्थिति में मनरेगा में ज्यादा से ज्यादा लोगों को काम दिया जा रहा है। वर्ष 19-20 में काम करने वाले लोगों की संख्या 10376 थी, जो अब 17560 पर पहुंच गई है। साथ ही स्रजित मानव दिवस भी बढ़ गए हैं। कोरोना काल में मनरेगा से मजदूरों को काम मिला है और उन्हेें परेशान नहीं होना पड़ा। ग्रामीण क्षेत्रों में मनरेगा के तहत खेत तालाब, कपिलधारा कूप, स्टाप डैम और प्रधानमंत्री आवास योजना, तालाब जीर्णोद्वार, रुफ वॉटर हार्वेसिंटग, नाडेप निर्माण आदि कार्य चल रहे हैं।
सौ दिन का मिल रहा काम
मनरेगा के तहत वर्ष में एक व्यक्ति को सौ दिन की मजदूरी दी जाती है। गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वालों को इसमें काम मिलता है। इसमें परिवार का एक जॉब कार्ड बनता है और उसमें कुल सौ दिन की मजदूरी रहती है। यदि मुखिया के साथ परिवार के अन्य सदस्य भी मजदूरी करते हैं तो उसी सौ दिनों में उसे जोड़ा जाता है।
पहले नहीं मिलते थे मजदूर
कोरोना काल के पहले मनरेगा में यह स्थिति थी कि मजदूर नहीं मिलते थे। जॉब कार्ड तो बनाए गए थे, लेकिन मजदूरी करने बहुत कम लोग ही पहुंचते थे, क्योंकि वह शहर से बाहर या फिर दूसरी जगह काम कर रहे थे। मजदूर न मिलने के कारण काम पूरे नहीं हो पा रहे थे।
बड़ी है संख्या
कोरोना काल के बाद मजदूरों की संख्या मनरेगा में बढ़ी है और योजनाओं के तहत चल रहे कामों में उन्हें मजदूरी दी जा रही है। ज्यादा से ज्यादा लोगों को काम देने का प्रयास किया जा रहा है।
आशीष जोशी, सीइओ, जनपद पंचायत, बीना