घट स्थापना के साथ शुरू हुई श्रीमद देवी भागवत महापुराण

गुरूदेव दत्तकुटी तीर्थ क्षेत्र मेें 7 दिनों तक बहेगी दिव्य ज्ञान की गंगा

सीहोर। रेहटी तहसील के पावन आंवलीघाट तट स्थित गुरूदेव दत्तकुटी तीर्थ क्षेत्र में शुक्रवार से घट स्थापना के साथ श्रीमद देवी भागवत महापुराण शुरू हुई। प्रत्येक वर्ष दत्तात्रेय जयंती महोत्सव के उपलक्ष्य मेें गुरूदेव दत्तकुटी तीर्थ क्षेत्र में कथा का आयोजन किया जाता है। पहले दिन कथा वाचक अर्जुन राम शास्त्री कान्हाजी महाराज ने उपस्थित भक्तोें को बताया कि देवी भागवत सशक्त उपासना की श्रेष्ठतम संहिता है। वेद को चार भागों में विभक्त करने वाले, महाभार, 18 पुराण व ब्रह्मसूत्र के रचयिता महर्षि कृष्ण द्वैपायन व्यास महाराज द्वारा रचित इस महापुराण में 12 स्कंध, 318 अध्याय व 18 हजार श्लोक हैं। उन्होंने श्रीमद् देवी भागवत महापुराण का महत्व बताते हुए कहा कि भगवती मां आद्य सनातनी शक्ति मां दुर्गा की साक्षात् वांगमय विग्रह हैं। बिना शक्ति के किसी भी प्राणी-पदार्थ की गति संभव ही नहीं है। मां जिनको कहा गया है, उनके 51 शक्तिपीठ हैं। वैष्णो, चामुण्डा, महाकाली, अम्बिका, दुर्गा आदि-आदि नामों से प्रसिद्ध भगवती मां के कृपामय चरित्रों का सागर श्रीमद देवीभागवत महापुराण है।
मां की कृपा से सुद्युम्न ने प्राप्त किया था पुरुषत्व-
अर्जुन रामशास्त्री कान्हाजी महाराज ने व्यास पीठ से श्रीमद् देवी भागवत कथा का विस्तार से निरूपण करते हुए कहा कि स्कन्द पुराण के मानस खंड में 5 अध्यायों में वर्णित प्रथम महात्म्य की कथा है। इसमें वैवस्वत मनु के पुत्र सुद्युम्न की कथा है, जो आदिदेव महादेव भगवान शिव के बनाए किम्पुरुष नामक क्षेत्र में प्रवेश कर स्त्री बन गए थे। उन्होंने जगदम्बा मां की कृपा से सदा के लिए पुरुषत्व प्राप्त किया। भगवान श्रीकृष्ण मणि प्रसंग में जब जाम्बवान से युद्ध कर रहे थे, तो भगवान नारद जी की प्रेरणा से वासुदेव जी ने नवाह यज्ञ किया। विप्रदेवों को दक्षिणा बांटकर आशीर्वाद ले ही रहे थे कि श्रीकृष्ण का वहां सपत्नीक आगमन हुआ। मां के ही एक भक्त ने मातारानी की कृपा से रेवती नक्षत्र जिसका पतन हो गया था, उसकी स्थापना की। जगदम्बा मां की कृपा से कुछ भी असंभव नहीं है।