गांव के लोगों ने जमीन पर कब्जा किया तो खरगा बनीं थी डकैत, 85 साल की उम्र में सम्मानित
ग्वालियर
चंबल की पहली महिला डकैत खरगा कपूरी बाई का गांधी आश्रम जौरा में सम्मान किया गया। यह सम्मान केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने किया। कपूरी बाई ने विपरीत परिस्थितियों में डकैत का जीवन अपनाया था। बाद में डॉ. एसएन सुब्बाराव के समझाने पर स्वेच्छा से आत्मसमर्पण किया था। खरगा कपूरी बाई की इस समय उम्र 85 वर्ष है। वह राजा खेड़ा गांव, धौलपुर की रहने वाली हैं। उनकी जमीन पर उनके गांव के लोगों ने कब्जा कर लिया था। जिसका बदला लेने के लिए उन्होंने शस्त्र उठाए थे। वह डकैतों के गिरोह में रहीं तथा उन्होंने उन लोगों से बदला लिया। सन 1972 में गांधी आश्रम में उन्होंने डॉ. एसएन सुब्बाराव के समझाने के बाद आत्मसर्मपण कर दिया था। उसके बाद उन्होंने जेल में अपनी सजा पूरी की तथा आज वे अपने गांव राजा खेड़ा में अपना जीवन व्यतीत कर रही हैं।
चाचा ने जमीन पर कब्जा किया तो हत्या कर रमेश बन गए थे डकैत
रमेश स्वीकार करते हैं कि पिता की मौत के बाद सगे चाचा ने उनकी जमीन हड़प ली थी। इसलिए चाचा को हत्या उन्होंने की थी। चंबल में 90 फीसदी झगड़ों में जमीन विवाद है। श्योपुर जिले के लहरौनी गांव के रमेश सिकरवार सरेंडर के बाद भी गनमैनों से घिरे रहते हैं। वजह ये है कि सरेंडर के बाद रमेश राजनीतिक रूप से सक्रिय हुए तो पांच साल पहले उनके खिलाफ झूठे मुकदमे दर्ज करा दिए गए। जमीन पर कब्जा हो गया। 2017 में रमेश सिंह ने फिर से बीहड़ में कूदने की चेतावनी दी तो प्रशासन ने झूठे मुकदमे खारिज किए और कब्जा खाली करा दिया।
अजमेर सिंह ने मोहर सिंह के गैंग में शामिल होकर किया था अपने दुश्मन का खात्मा
बागी अजमेर सिंह यादव की उम्र इस वर्ष 85 वर्ष है। 24 वर्ष की उम्र में उन्होंने बदला लेने के लिए अपने दुश्मन की हत्या कर दी थी। उसके बाद उस समय के सबसे खतरनाक गिरोह तथा दो लाख रुपए के इनामी बागी सरदार मोहरसिंह की गैंग में वे शामिल हो गए थे। उन पर उस जमाने में पुलिस ने जिंदा या मुर्दा पकड़ने वाले को 2000 रुपए का इनाम घोषित कर रखा था। बागी सरदार मोहर सिंह की गैंग में वे 8 वर्ष रहे। उसके बाद वर्ष 1972 में उन्होंने डॉ. एसएन सुब्बाराव के समझाने के बाद गांधी आश्रम में आत्मसर्पण किया था। उस जमाने में उनके पास स्टेनगन हुआ करती थी जो हर किसी के पास नहीं मिलती थी। उन्होंने स्टेनगन समर्पित कर बागी जीवन से सन्यास ले लिया था। अपनी सजा पूरी करने के बाद वे अब अपने गांव कुलैथ में अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
75 साल के बागी घमंडी सिंह के चेहरे पर अब भी खूंखारपन
बागी घमंडी सिंह की उम्र 75 वर्ष है लेकिन चेहरे पर वहीं खूंखारपन स्पष्ट झलकता है। बागी सम्मेलन में वे अपनी माउजर बंदूक व कारतूसों का पट्टा पहनकर पहुंचे थे। वे मुरैना के कोटसिरथरा गांव के रहने वाले हैं। 20 वर्ष की उम्र में परिवार में हुए जमीन के विवाद के कारण उन्होंने अपने दुश्मन की हत्या कर दी थी। हत्या करने के बाद वे उस समय की सबसे खूंखार गैंग सरदार माधौ सिंह की गैंग में शामिल हो गए थे। तत्कालीन सरकार ने उनको जिंदा या मुर्दा पकड़ने वाले को 500 रुपए इनाम देने की घोषणा कर रखी थी। वे खूंखार बागी माधव सिंह की गैंग के सक्रिय सदस्य थे। 6 वर्ष तक वे गैंग में रहे। उसके बाद सन 1972 में अन्य बागियों के साथ अपनी माउजर समर्पित कर आत्मसर्मपण कर दिया था। अपनी सजा काटने के बाद आज वे अपने गांव में जीवन यापन कर रहे हैं।