पिता के जाने के बाद 13 साल में कंधों पर आ गई थी परिवार की जिम्मेदारी, ऐसा रहा सफर
नई दिल्ली
संगीत जगत को एक बड़ा झटका लगा है, जहां सुर कोकिला के नाम से पहचानी जाने वालीं भारत की महान गायिका और भारत रत्न लता मंगेशकर का निधन हो गया। वो पिछले महीने कोरोना पॉजिटिव पाई गई थीं, जिसके बाद 8 जनवरी को उनको मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में भर्ती करवाया गया। जनवरी के अंत में उनकी हालत में थोड़ा सुधार हुआ था। जिस वजह से उनको वेंटिलेटर से हटाया गया, लेकिन 4-5 दिन बाद उनकी हालत फिर से खराब हो गई और उन्होंने अस्पताल में ही अंतिम सांस ली।
पिता चलाते थे थिएटर कंपनी
लता मंगेशकर का जन्म 28 सितंबर 1929 को मध्य प्रदेश के इंदौर जिले में हुआ था। उनके पिता दीनानाथ मंगेशकर महाराष्ट्र में एक थिएटर कंपनी चलाते थे, लेकिन लता की जिंदगी आगे और मुश्किल भरी होने वाली थी। 1942 में उनके पिता दुनिया छोड़कर चले गए। इसके बाद सारी जिम्मेदारी लता जी पर आ गई और उन्हें रोजी-रोटी के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा।
पहले मराठी फिल्म में गाया गाना
लता मंगेशकर ने उस्ताद अमान अली खान और अमानत खान से संगीत की शिक्षा ली थी, ऐसे में उन्होंने 1942 में ही एक मराठी फिल्म 'किती हासिल' में गाना गाकर अपने करियर की शुरूआत की, लेकिन उनकी किस्मत ने साथ नहीं दिया और गाने को फिल्म से हटा दिया गया। इसके पांच साल बाद देश आजाद हुआ और लता मंगेशकर ने हिंदी फिल्मों में अपना कदम रखा। इसके साथ ही उन्हें हिंदी फिल्म 'आपकी सेवा में' में गाने का मौका मिला। वैसे लता जी के करियर की शुरुआत हो गई थी, लेकिन उनके गानों को ज्यादा प्रसिद्धी नहीं मिली।
गिनीज बुक में नाम दर्ज
1949 में लता जी की लाइफ में बड़ा मोड़ आया, जहां उनको लगातार चार फिल्मों 'बरसात', 'दुलारी', 'महल' और 'अंदाज' में गाने का मौका मिला। अब वो धीरे-धीरे फेमस होने लगी थीं। पचास के दशक में नूरजहां के पाकिस्तान जाने के बाद लता मंगेशकर ने हिंदी फिल्म पार्श्वगायन में अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया था। उन्होंने 20 से ज्यादा भारतीय भाषाओं में 30 हजार से ज्यादा गाने गए हैं। जिस वजह से 1991 में ही उनका नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज किया गया था। इसके बाद 2001 में भारत सरकार ने उन्हें भारत रत्न सम्मानित किया।
1962 में भारत और चीन के बीच जंग हुई, जिसमें कई सैनिक शहीद हो गए। इस पर कवि प्रदीप ने एक गीत लिखा, ताकी देशवासियों में आत्मविश्वास फिर से जगाया जा सके। इसके बाद दिल्ली के स्टेडियम में आयोजित एक कार्यक्रम में पूर्व पीएम जवाहर लाल नेहरू के सामने उन्होंने 'ये मेरे वतन के लोगो' गाया। उस दौरान नेहरू जी के साथ स्टेडियम में बैठे सभी लोगों की आंखें नम हो गईं थी।