सुनील कुमार गुप्ता
“कोविड -19 ने हमें दिखा दिया कि जिंदगी कितनी छोटी है, कितनी अनमोल है. किस तरह परिजनों, मित्रों, कामकाजी सहयोगियों के साथ छोटी-छोटी अनचाही बातो, अनबन से हमारे मन के कुएं में जमा कड़वाहट का कचरा जीवन को बर्बाद कर देता है? कैसे हम दूसरे से बदला लेने के चक्कर में अपनी पूरी जिंदगी तबाह कर देते हैं? कैसे जिंदगी का नायक खलनायक में बदल जाता है ‘बदलापुर’ फिल्म की तरह? मेरी गुजारिश है कि आप अपनी जिंदगी को ‘बदलापुर’ मत बनने दीजिए. माफी मांग लीजिए, माफ कर दीजिए, अपने मन को हल्का कीजिए और जिंदगी में भर दीजिए प्रेम, दया और करूणा की रोशनी.
मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े तमाम सवालों को तलाशती जीवन संवाद की ट्विटर स्पेस पर जारी श्रृंखला में यह विचार संवाद के सूत्रधार, वरिष्ठ पत्रकार, लेखक दयाशंकर मिश्र ने सहभागियों के बीच रखे. बता दें कि मानसिक स्वास्थ्य जैसे गंभीर विषय पर श्रृंखला की शुरूआत करने वाले दयाशंकर मिश्र की ‘डिप्रेशन और आत्महत्या’ के विरुद्ध लिखी पुस्तक ‘जीवन संवाद’ लगातार चर्चा के केन्द्र में हैं.रविवार को प्रसारित इस श्रृंंखला की छठवी कड़ी का विषय था ‘माफी मांगना और माफ करना’.
परिचर्चा में श्री मिश्र ने जीवन और मनुष्यता की कहानियां और विश्व की महानतम विभूतियों के उद्हरणों से यह बताने, समझाने का प्रयास किया कि किस तरह हम भी मन के कचरे और अतीत के जालों से मुक्ति पा सकते हैं. इस परिचर्चा में मानसिक सेहत के मुद्दों पर सोचने, काम करने वाले विशेषज्ञोंं के साथ ही पाकिस्तान के अमन मलिक की सहभागिता उल्लेखनीय थी.
माफ करना या माफी मांगना कमजोरी नहीं
उन्होंने कहा जीवन को ‘बदलापुर’ मत बनने दीजिए. ‘बदलापुर’ उस फिल्म का नाम है, जहां नायक अपने जीवन की एक घटना का बदला लेने के लिए अपना जीवन नष्ट कर लेता है. इसलिए मन के कचरे को अतीत की स्मृतियों में फंसने से रोकिए. अपनों-दूसरों से नाराजगी हमारी पूरी उर्जा को रोक देता. हम उसके आसपास ही चक्कर लगाते रहते हैं.
किसी को माफ करना या माफी मांंगना आसान काम नहीं है. लेकिन हमें जीवन के लिए इसे हल करना है. इस काम में देर मत कीजिए. उन्होंने राहुल गांधी और प्रियंका गांधी का उल्लेख करते हुए कहा कि दोनों किस भावना से अपने पिता, पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी के हत्यारों से जेल में मिलने पहुंचे थे. और उन्होंने अपने पिता के हत्यारों को माफ करते हुए उनकी रिहाई की मांग की. यह किसी को माफ करने और अपने मन के बोझ को हल्का कर लेने का उत्कृष्ट उदाहरण है.
यह बहुत जरूरी है कि बेहतर मानसिक स्वास्थ्य के लिए आपके मन में कोमलता हो, स्नेह हो. नोबेल पुरस्कार विजेताओं की बायोग्राफी देखेंगे तो पाएंगे कि वह सूची ऐसे लोगोंं की है, जिन्हें दुनिया ने बहुत पीछे धकेल दिया था, लेेकिन वह जीवन में वहुत सफल हुए. हमने जीवन की सफलता को परीक्षाओं, प्रतिद्वंदिताओं में सफलता का पैमाना बना दिया. यह ठीक नहीं हैै. यह सोचनेे-समझने और अपने भीतर झांककर पूछने की जरूरत है कि जिंदगी में अकेलापन, अवसाद, निराशा का भाव क्यों बढ़ रहा है? इस सवाल से आप एक बेहतर शुरूआत कर सकते कि क्या मैं अपने को बदल सकता हूं. यह देखें कि हमारे पास माफी के कितने आवेदन पेंडिंग हैंं.
एक बार इस प्रयोग को करके जरूर देखिए
माफी और माफ करने संबंधी इस परिचर्चा में सहभागी सुश्री दीप्ति कटियार ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि इस प्रक्रिया में सामने वाला माफ करता है या नहीं, लेकिन आपके माफी मांगने से यह तय है कि आपके मन पर अरसे से घर जमाए बैठा बड़ा बोझ हट जाएगा. उन्होंने कहा कि मेरी गुजारिश है कि आप इस बात को अपने जीवन में एक बार उतार कर देखेंं, बहुत बड़ा बदलाव पाएंगे.
सबके अनुभव अलग-अलग
चर्चा में शामिल एक प्रतिभागी पूजा प्रियंवद ने मत व्यक्त किया कि हर व्यक्ति की जीवन यात्रा, उसके रिश्तों के बननेे-बिगड़ने के अनुभव जिस तरह अलग-अलग होते हैं, उसी तरह उसकी क्षमा करने की क्षमता भी अलग-अलग होती है. सबके मन, परिस्थतियों को एक जैसा मानकर माफी मांगने या माफ करने की प्रक्रिया का एक जैसा फार्मूला नहीं अपनाया जा सकता.
उनकी इस बात पर कार्यक्रम के मुख्य प्रस्तोता दयाशंकर मिश्र ने भी माना कि हम सभी को अपने अनुभवों को अपने-अपने हिसाब से देखना चाहिए. यह जरूरी नहीं जो बात या प्रक्रिया मेरे काम की हो, वह अन्य पर भी लागू हो.
सामाजिक कार्यकर्ता नवीन जयहिन्द ने परिचर्चा में सहभागिता करते हुए कहा कि माफी मांगना और माफ करना एक आतंरिक भावना है. माफी मांगना तो एकबारगी बहुत आसान है, लेकिन किसी को माफ करना बहुत ही मुश्किल होता है. अगर आप किसी को माफ कर सकें तो यह बहुत ही बड़ी बात है. अपनेे जीवन का अनुभव साझा करते हुए नवीन जयहिन्द ने एक घटना का जिक्र करते हुए बताया कि एक बार उन्होंंने बहुत खुशहाल, शारीरिक रूप से सक्रिय कुछ अति वरिष्टजनों या बुजुर्गोंं से उनकी लंबी आयु का राज पूछा तो उन बुजुर्गों का जवाब था कि हम कभी पड़े नहीं रहे यानी चलते-फिरते, काम करते रहे. दूसरा-कभी शरीर के लिए नुकसानदायक भोजन नहीं किया और तीसरा- हमने कभी किसी का बुरा नहीं किया, किसी के बारे में बुरा नहीं सोचा, इससे हमारे जीवन में सकारात्मकता बनी रही. यही हमारे लंबे जीवन का राज है. नवीन जयहिन्द ने जीवन संवाद की मानसिक स्वास्थ्य पर केन्द्रित श्रृंखला की बहुत सराहना की.
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