देश

CRPF में अलग-अलग वजहों से जा रही जान, 3 साल में 950 जवान हुए शहीद

 नई दिल्ली।

आतंकवाद और नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में ड्यूटी पर तैनात अर्धसैन्य बलों की शहादत के आंकड़े बढ़ रहे हैं। इनमें सर्वाधिक संख्या सीआरपीएफ जवानों की है। जम्मू-कश्मीर के आतंक प्रभावित से लेकर नक्सल प्रभावित इलाकों तक में तैनात सीआरपीएफ के 950 जवान तीन वर्षों में ड्यूटी के दौरान शहीद हुए हैं। जवानों में आत्महत्या के आंकड़े भी बढ़ रहे हैं। वर्ष 2021 में 153 जवानों ने आत्महत्या की। इनमें से 58 सीआरपीएफ और 42 बीएसएफ के जवान थे। सीआरपीएफ जवानों की शहादत नक्सल प्रभावित इलाकों में ज्यादा हुई है। यह करीब 57 फीसदी है। सभी बलों को मिलाकर वर्ष 2019 में 15 गजटेड अफसर समेत 622, 2020 में 14 गजटेड समेत 691 और वर्ष 2021 में 18 गजटेड अफसर समेत 729 जवान शहीद हुए।

आत्महत्या से मौत मुठभेड़ से भी ज्यादा
गृह मंत्रालय के अनुसार, वर्ष 2015 से वर्ष 2020 के छह वर्षों में मुठभेड़ों की तुलना में बीएसएफ, सीआरपीएफ और एसएसबी सहित केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों के जवानों की आत्महत्या से ज्यादा मौत हुई है। वर्ष 2015 और 2020 के बीच आत्महत्या से लगभग 680 कर्मियों की मौत हुई, जबकि मुठभेड़ों में 323 कर्मियों की शहादत हुई थी। यानी आत्महत्या के आंकड़े दोगुने से ज्यादा थे। जानकारों के मुताबिक समय से छुट्टी न मिलना, कठिन ड्यूटी का दबाव न झेल पाना, मानसिक तनाव, घरेलू परेशानी की वजह से आत्महत्या होती है।

ड्यूटी पर शहीद होने पर मदद

>> शहीद जवानों के परिवार को 25 लाख रुपये से 45 लाख रुपये तक एकमुश्त मुआवजा राशि।
>> भारत के वीर पोर्टल पर 15 लाख तक का सार्वजनिक अंशदान।
>> मारे गए विवाहित कार्मिकों के माता पिता को भारत के वीर कार्पस से दस लाख की अतिरिक्त मदद।
>> सीएपीएफ वेतन पैकेज स्कीम के अंतर्गत बीमा कवरेज।
>> निकटतम संबंधियों को कुछ लाभों जैसे हवाई और रेल यात्रा भाड़े में छूट।
>> रिटेल पेट्रोल पंपों के आवंटन आदि के लिए ऑपरेशनल केजुअल्टी प्रमाण पत्र जारी किया जाता है।
>> पात्र आश्रितों को सरकार के दिशा निर्देश के अनुरूप अनुकंपा नियुक्ति भी दी जाती है
>> एमबीबीएस और बीडीएस पाठ्यक्रम में प्रवेश हेतु कोटा।

अलग अलग होते हैं कारण
जवानों को कई बार उन्नत तकनीक न होने का खामियाजा भुगतना पड़ता है। एसओपी का पालन करने में थोड़ी चूक भी भारी पड़ती है। सीआरपीएफ सुकमा, नारायणपुर, बस्तर के घने जंगल, दंतेवाड़ा सहित घोर नक्सल इलाको में अग्रिम मोर्चे पर तैनात है। इनके कैम्प भी नक्सली इलाको में हैं। आतंकग्रस्त इलाकों में सेना और बीएसएफ भी तैनात रहती है। इससे सीआरपीएफ को सपोर्ट ज्यादा मिलता है। पारिवारिक वजहों से आत्महत्या, दुरूह इलाको में बीमारी, हार्टअटैक आदि भी मौत की वजह बनता है।
 -पीके मिश्रा, पूर्व एडीजी

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button