नहीं दिखाई पति ने आमदनी तो न्यूनतम मजदूरी के आधार पर देना होगा गुजाराभत्ता
नई दिल्ली
एक महत्वपूर्ण फैसले के तहत अदालत ने कहा कि अगर घरेलू हिंसा के मामले में पति किसी भी तरह अलग रह रही पत्नी को गुजाराभत्ता देने से नहीं बच सकता। यदि वह अपनी आमदनी को छिपाता है और शपथपत्र में कोई भी आमदनी नहीं होने की बात कहता है तो उसे राज्य द्वारा निर्धारित न्यूनतम मजदूरी के आधार पर पत्नी को गुजाराभत्ता देना होगा। दिल्ली की तीस हजारी स्थित प्रिंसीपल जिला एवं सत्र न्यायाधीश गिरीश कठपाड़िया की अदालत ने पति की उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें उसने कहा था कि उसके पास कमाने कोई साधन नहीं है। परन्तु महिला अदालत ने उसे निर्देश दिया है कि वह पत्नी को चार हजार 450 रुपये प्रतिमाह गुजाराभत्ते के तौर पर दें।
प्रिंसीपल जिला एंव सत्र न्यायाधीश की अदालत ने महिला अदालत के निर्णय को सही ठहराते हुए कहा है कि पत्नी व परिवार की जिम्मेदारी से पति भाग नहीं सकता। यदि उसके पास कमाई के कोई उचित साधन नहीं है और वह शारीरिकतौर पर स्वस्थ है तो उससे एक मजदूरी जितना कमाने की अपेक्षा किया जाना न्यायसंगत है। इस मामले में भी यही किया गया है। लिहाजा वह बिना किसी ना-नुकुर के पत्नी को प्रतिमाह चार हजार 450 रुपये का भुगतान करे।
बी कॉम तक की शिक्षा बताई है पर कमाने के नाम पर चुप्पी
इस मामले में दंपति की शादी जनवरी 2017 में हुई थी। दंपति करीब डेढ़ साल साथ रहा और फिर अलग हो गया। पत्नी ने पति पर घरेलू हिंसा, नशे का आदी होना, मारपीट करने का आरोप लगाया। मामला अदालत पहुंचा तो पति ने अपने आप को बी कॉम तक पढ़ा बताया, लेकिन साथ ही रोजगार के नाम पर महज सात हजार रुपये महीने की कमाई बताई। पति का कहना था कि यदि व पत्नी को चार हजार 450 रुपे महीने का भुगतान करेगा तो उसके पास तो अपने खर्च के लिए कुछ नहीं बचेगा।
दिल्ली में न्यूनतम मजदूरी 13 हजार 350 रुपये
अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि दिल्ली में सरकार द्वारा न्यूनतम मजदूरी 13 हजार 350 रुपये है। इसलिए पति की कमाई को इतना ही मानते हुए पत्नी का 4 हजार 450 रुपये प्रतिमाह गुजाराभत्ता तय किया गया है। अदालत ने यह भी कहा कि कुल कमाई में से दो हिस्से पति के लिए रखे गए हैं जबकि तीसरा हिस्सा पत्नी के गुजाराभत्ते के तौर पर तय किया गया है। कानून के हिसाब से यह सही एकदम सही फैसला है। इसे पति को मंजूर करना होगा।