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भारत का रूस से तेल  खरीदना पूरी तरह से उचित – गीता गोपीनाथ

नई दिल्‍ली ।  रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच भारत का रूस से तेल  खरीदना पूरी तरह से उचित है क्‍योंकि जी7 देशों और उनके सहयोगियों ने रूसी ऑयल पर  प्राइस कैप  पर सहमति जताई है। यह बात अंतरराष्‍ट्रीय मुद्रा कोष की पहली उप प्रबंध निदेशक  गीता गोपीनाथ कही है। जी20 बैठकों में भाग लेने के लिए भारत आईं गोपीनाथ ने एक समाचार चैनल से कहा कि दुनिया के नजरिये से यह महत्‍वपूर्ण है कि बाजार में तेल की आपूर्ति उच्च स्तर पर बनी रहे और भारत का रूस से तेल खरीदना अमेरिका और यूरोप की मौजूदा मूल्‍य सीमा रणनीति  के अनुरूप है।
गीता गोपीनाथ ने कहा बाजार में सप्‍लाई आने की जरूरत है और यदि भारत जैसे देश इसे आयल प्राइस कैप के साथ कम कीमत पर प्राप्‍त करते हैं तो यह बिल्‍कुल उचित है।  गौरतलब है कि धनी लोकतंत्र के जी7 ग्रुप और ऑस्‍ट्रेलिया इस माह की शुरुआत में रूसी तेल के लिए  60 डॉलर प्रति बैरल की सीमा तय करने पर सहमत हुए हैं क्‍योंकि वे यूक्रेन पर हमले को लेकर रूस के संसाधन इस्‍तेमाल करना चाहते। हालांकि भारत ने जी7 के इस कदम का समर्थन नहीं किया है।
ज्ञात रहे कि पश्चिमी देश यूक्रेन में युद्ध के बीच रूस से तेल खरीदना जारी रखने के भारत के कदम की आलोचना करते रहे हैं जबकि भारत ने कई बार यूक्रेन मुद्दे पर शांति वार्ता का आह्वान किया है। भारत अपने इस रुख पर अडिग रहा है कि जहां से उसे अच्‍छी डील मिलेगी वहां से तेल खरीदना वह जारी रखेगा। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने 7 दिसंबर को संसद को बताया था कि हालांकि सरकार भारतीय कंपनियों को रूस से तेल खरीदने के लिए नहीं कहती है लेकिन यह भारतीय लोगों के हित में सबसे अच्छा सौदा पाने के लिए एक समझदार नीति है। रूस से कच्चे तेल के आयात को लेकर जयशंकर ने कहा था कि यह बाजार से जुड़े कारकों से प्रेरित हैं। उन्होंने कहा कि फरवरी से नवंबर तक यूरोपीय संघ ने रूस से अधिक मात्रा में जीवाश्म ईंधन का आयात किया है। विदेश मंत्री जयशंकर से जब यह पूछा गया था कि भारत क्यों रूस से कच्चा तेल खरीद रहा है तो उन्होंने कहा था ‘‘ मैं समझता हूं कि संघर्ष की स्थिति (यूक्रेन में) है। मैं यह भी समझता हूं कि यूरोप का एक विचार है और यूरोप अपने विकल्प चुनेगा यह यूरोप का अधिकार है। लेकिन यूरोप अपनी पसंद के अनुसार ऊर्जा जरूरतों को लेकर विकल्प चुने और फिर भारत को कुछ और करने के लिये कहे।  उन्होंने कहा था कि पश्चिम एशिया से यूरोप द्वारा तेल खरीदने से भी दबाव पड़ा है।

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