धरती से 16 लाख KM की दूरी पर तैनात हुआ जेम्स वेब स्पेस टेलिस्कोप, ‘टाइम मशीन’ की पहली तस्वीर
वॉशिंगटन
अंतरिक्ष में पृथ्वी की आंख कहे जाने वाले जेम्स वेब स्पेस टेलिस्कोप अपनी कक्षा में स्थापिक हो गया है और कक्षा में स्थापित होने के बाद इस टेलिस्कोप की पहली तस्वीर खींची गई है। कल ही जेम्स वेब टेलीस्कोप को पृथ्वी से लगभग 15,00,000 किलोमीटर की दूरी पर दूसरे लैग्रेंज बिंदु (L2) पर अपनी कक्षा में सफलतापूर्वक पार्क किया गया है, और अब सैटेलाइट के जरिए इस टेलिस्कोप की पहली तस्वीर ली गई है।
जेम्स वेब स्पेस टेलिस्कोप की पहली तस्वीर
नासा की रिपोर्ट के मुताबिक, रोम में वर्चुअल टेलीस्कोप प्रोजेक्ट 2.0 ने जेम्स वेब स्पेस टेलिस्कोप की पहली छवि को कैप्चर किया है। करीब एक महीने पहले जेम्स वेब स्पेस टेलिस्कोप को पृथ्वी से लॉंच किया गया था और एक महीने की लंबी यात्रा के बाद जेम्स वेब स्पेस टेलिस्कोप लैग्रेंज बिंदु, यानि जिसे एल-2 कहा जाता है, वहां स्थापित हो गया है। जेम्स वेब स्पेस टेलिस्कोप की तस्वीर वर्चुअल टेलिस्कोप प्रोजेक्ट में एक रोबोटिक यूनिट के द्वारा ली गई है। नासा के प्रोजेक्ट टीम ने तस्वीर जारी करते हुए कहा है कि, "हमारे रोबोटिक टेलीस्कोप ने जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कॉप (जेडब्लूएसटी) की स्पष्ट गति को ट्रैक किया, जिसे केंद्र में एक तीर द्वारा चिह्नित किया गया है।"
अंतरिक्ष में पृथ्वी की नई आंख
जेम्स वेब स्पेस टेलिस्कोप को अंतरिक्ष में पृथ्वी की नई आंख कहा जाता है और पिछले 30 दिनों की यात्रा के बाद टेलिस्कोप धरती से 16 लाख 9 हजार 344 किलोमीटर की दूरी पर स्थिति अपनी कक्षा में पहुंचा है। यानि, अपनी कक्षा तक पहुंचने के लिए जेम्स वेब स्पेस टेलिस्कोप ने हर दिन 53 हजार 644 किलोमीट की यात्रा की है। नासा की रिपोर्ट के मुताबिक, पृथ्वी से 16 लाख 9 हजार किलोमीटर की दूरी पर पहुंचकर जेम्स वेब स्पेस टेलिस्कोप पृथ्वी के चारों तरफ चक्कर काट रहा है। यह इस टेलिस्कोप की अंतिम कक्षा है। इंसानों के अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए ये एक ऐतिहासिक घटना है, क्योकि अभी तक पृथ्वी से इतनी दूरी तक एक भी टेलिस्कोप को नहीं भेजा गया है।
अंतरिक्ष में कैसे पहुंचा टेलिस्कोप
नासा के एडमिनिस्ट्रेटर मैनेजर कीथ पैरिश ने कहा है कि, जेम्स वेब स्पेस टेलिस्कोप के थ्रस्टर्स को पांच मिनट के लिए ऑन करके टेलिस्कोप को अंतम कक्षा तक पहुंचाया गया। उन्होंने कहा कि, टेलिस्कोप की दिशा को सही करने में करीब 55 मिनट का वक्त लगा। आपको बता दें कि, पिछले महीने 25 दिसंबर को इस टेलिस्कोप को लॉंच किया गया था और इसे अपनी कक्षा तक पहुंचाना एक बहुत बड़ा लक्ष्य था, क्योंकि थोड़ी सी गलती से भी ये कार्यक्रम फेल हो सकता था। इस टेलिस्कोप को धरती और सूर्य के बीच स्थिति लैरेंज प्वाइंट-2 पर तैनात किया गया है। आपको बता दें कि, लैरेंज प्वाइंट-2 वो प्वाइंट होता है, जहां पर गुरुत्वाकर्षण संतुलन बना रहता है और बिना किसी ऊर्जा के कोई ऑब्जेक्ट पूरी तरह से स्थिर रहता है।
20 सालों तक काम करेगा टेलिस्कोप
नासा एडमिनिस्ट्रेटर कीथ पैरिश के मुताबिक, इसके ऑर्बिट में बनाए रखने के लिए हर 21 दिनों पर वैज्ञानिक इसके थ्रस्टर्स को कुछ सकेंड्स के लिए ऑन करेंगे। यानि, इस टेलिस्कोप के मशीन को हर 21 दिनों पर कुछ सेकंड्स के लिए ऑन करना पड़ेगा और इतनी उर्जा खत्म करने पर अगले 10 सालों तक ये टेलिस्कोप काम करता रहेगा। हालांकि, वैज्ञानिकों का कहना है कि, इस टेलिस्कोप में इतना ईंधन है, कि ये अगले 20 सालों तक काम कर सकता है।
ब्रह्मांड की रहस्यमयी जानकारियों का चलेगा पता
नासा के मुताबिक, इस टेलिस्कोप से ब्रह्मांड में अनंत गहराईयों तक की तस्वीर कैद करना संभव हो पाएगा। नासा के मुताबिक, इस टेलिस्कोप के जरिए अलग अलग आकाशगंगाएं, एस्टेरॉयड, ब्लैक होल्स, ग्रहों, एलियन ग्रहों और सौर मंडलों की तस्वीरें ली जाएंगी। इसीलिए इस टेलिस्कोप को इंसानों द्वारा बनाया गया धरती का आंख कहा जा रहा है। आपको बता दें कि, पिछले महीने 25 दिसंबर को एरिएन-5 रॉकेट से फेंच गुएना से इस टेलिस्कोप से लॉंच किया गया था।
बेहद असाधारण था मिशन
नासा के अधिकारी बिल नेल्सन ने कहा था कि, "जब हम बड़े सपने देखते हैं तो हम क्या हासिल कर सकते हैं इसका एक चमकदार उदाहरण है। हम हमेशा से जानते हैं कि यह परियोजना एक जोखिम भरा प्रयास होगा। लेकिन, निश्चित रूप से, जब आप एक बड़ा इनाम चाहते हैं, तो आपको आमतौर पर एक बड़ा जोखिम उठाना पड़ता है।" आपको बता दें कि, जेम्स वेब स्पेस टेलिस्कोप की लॉन्चिंग काफी मुश्किल भरा मिशन था और इसकी कामयाबी को लेकर कितनी प्रतिशत गारंटी है, उसपर नासा ने कुछ भी नहीं कहा था।
जेम्स वेब स्पेस टेलिस्कोप की खासियत
जेम्स वेब स्पेस टेलिस्कोप का व्यास 6.5 मीटर है, जो हबल टेलिस्कोप के 2.4 मीटर दर्पण से काफी बड़ा है। नासा के जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप में सोने का शीशा लगा हुआ है, जिसकी चौड़ाई करीब 21.32 फीट है और इस मिरर को बेरेलियम से बने 18 षटकोण टुकड़ों को एक साथ जोड़कर तैयार किया गया है। बेरेलियम के हर टुकड़े पर 48.2 ग्राम सोने की परत चढ़ी हुई है, ताकि ये एक परावर्तक की तरह काम कर सके।