खनन विवाद में झारखंड सीएम हेमंत सोरेन बुरी तरह फंसे
रांची
खनन पट्टे के चलते विवादों में घिरे झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की तरफ से अभी तक मामले पर बयान नहीं आया है। वहीं, कोर्ट की तरफ से भी इस केस में कोई ताजा सुनवाई नहीं हुई हैं। इधर, विपक्ष ने भी सरकार के खिलाफ अपनी कार्रवाई तेज कर दी है और सोरेन को सीएम के तौर पर अयोग्य घोषित करने की मांग की जा रही है। आरोप है कि उन्होंने रिप्रेजेंटेशन ऑफ पीपुल्स एक्ट 1951 का उल्लंघन किया है। साथ ही इस पूरे विवाद में चुनाव आयोग की भी एंट्री हो चुकी है। इस पूरे मामले को विस्तार से समझते हैं…
कहां से शुरू हुई कहानी
फरवरी में झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी। इस दौरान उन्होंने कुछ दस्तावेज सामने रखे थे, जिनमें सोरेने पर 'पद का दुरुपयोग' कर रांची जिले में अपने पक्ष में पत्थर की खदान के पट्टे के लिए मंजूरी हासिल करने के आरोप लगाए थे। खास बात है कि ECI ने भी राज्य के पर्यावरण और खनन विभाग संभालने वाले सोरेन से उनका मत पूछा था। खनन विभाग के दस्तावेजों को लेकर दास ने आरोप लगाए कि यह रिप्रेजेंटेशन ऑफ पीपुल्स एक्ट की धाराओं का उल्लंघन है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि इससे भ्रष्टाचार रोकथाम अधिनियम के तहत आरोप लग सकते हैं। 25 अप्रैल को एक और प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान दास ने आरोप लगाए थे कि सोरेन के पद पर रहते हुए उनकी पत्नी को 11 एकड़ औद्योगिक भूमि मिली थी।
क्या कहते हैं दस्तावेज
केंद्र के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के पोर्टल पर दर्ज दस्तावेज दिखाते हैं कि सोरेन ने रांची जिले के अंगारा ब्लॉक में 0.88 एकड़ में खनन पट्टे की मंजूरी के लिए आवेदन दिया था। खदान में उत्पादन 6 हजार 171 टन प्रति वर्ष दिखाया गया था और प्रोजेक्ट की अनुमानित लागत 26 लाख रुपये बताई गई थी। इसमें बताया गया था कि प्रस्तावित योजना 5 साल की है और खदान का अनुमानित जीवन 5 साल का था।
मामले की गहराई में चलते हैं
अंगारा ग्राम पंचायत की कार्यवाही से जुड़े दस्तावेज बताते हैं कि सोरेन का आवेदन 28 मई 2021 को रांची के जिला खनन अधिकारी (DMO) के पास पट्टे की मांग के लिए पहुंचा था। वहीं, 1 जून को डीएमओ ने अंगारा के सर्किल ऑफिसर को जांच के लिए कहा। खनन पर सहमति जताने के लिए 7 जून को अंगारा ग्राम पंचायत बुलाई गई। खास बात है कि उसी दिन अंगारा ब्लॉक विकास अधिकारी ने डीएमओ को लिखित में जानकारी दी कि ग्रामसभा ने खनन के पट्टे के लिए सहमति दे दी है। 14 मार्च को सोरेन और गांव के 9 लोगों के बीच समझौते पर हस्ताक्षर हुए। इसके बाद 16 जून 2021 को रांची के डीएमओ ने बताया कि रांची उपायुक्त ने 15 जून 2021 के आदेश में एक लैटर ऑफ इंटेंट जारी किया है। जिसमें कुछ शर्तों के साथ खनन के पट्टे के लिए 'इन प्रिंसिपल अप्रूवल' दिया गया है। दस्तावेज दिखाते हैं कि 9 सितंबर को सीएम ने खदान के लिए पर्यावरण मंजूरी मांगी थी और राज्य के विभाग ने उन्हें 22 सितंबर को मंजूरी दे दी थी।
क्या कहना है सरकार का
8 अप्रैल को हुई मामले में सुनवाई के दौरान एड्वोकेट जनरल राजीव रंजन ने कहा था कि राज्य ने खनन के लि मंजूरी देने में 'एक गलती की है।' उन्होंने कहा था कि यहां 'आचार संहिता का उल्लंघन हुआ था।' उन्होंने बताया था कि भले ही सोरेन मंत्री रहते हुए कारोबारों में शामिल रहे हों, लेकिन कोई भी वैधानिक या संवैधानिक उल्लंगन नहीं हुआ था। उन्होंने कहा था कि सोरेन ने 'लीज सरेंडर कर 11.02.22 को इससे खुद को अलग कर लिया था।' हालांकि, कोर्ट ने इस मामले को 'गंभीर' माना और सोरेन और राज्य को हलफनामा दायर करने के लिए नोटिस जारी किए। झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य ने दावा किया है कि सोरेन को दिया गया पट्टा 'रिन्यूअल' था और लीज पर ली गई जमीन को ईसीआई के कई हलफनामों में दिखाया गया था।