देश

करौली हिंसा: वसुंधरा गुट ने किरोड़ी से किया किनारा, क्या किरोड़ी लाल अपना अस्तित्व बचाने के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं?

जयपुर
राजस्थान में करौली हिंसा को लेकर सबस ज्यादा मुखर रहने वाले भाजपा सांसद किरोड़ी लाल मीणा के लिए करौली हिंसा पूर्वी राजस्थान में उनके लिए संजीवनी बनेगी? 2018 के विधानसभा चुनावों में भाजपा नेता किरोड़ी लाल ने अपने 17 समर्थकों को टिकट दिलवाए थे। लेकिन इन सभी को हार का सामना करना पड़ा था। पूर्वी राजस्थान से भाजपा का सूपड़ा साफ हो गया था। भाजपा को 39 विधानसभा सीटों में सिर्फ 4 सीटों पर जीत मिलीं थीं। किरोड़ी लाल अपनी पत्नी और भतीजे को भी जीत दिलवाने में भी विफल रहे।

वसुंधरा गुट ने किया किनारा

प्रदेश भाजपा से अलग-थलग रहकर धरना प्रदर्शन करने वाले किरोड़ी लाल को करौली हिंसा मामले में वसुंधरा और पूनिया गुट का अपेक्षित साथ नहीं मिला। वसुंधरा गुट ने पूरी तरह से किनारा कर लिया। पूनिया गुट का खुलकर साथ नहीं मिला। जबकि करौली हिंसा मामले में गहलोत सरकार पर लगातार हमलावर हो रहे हैं। सतीश पूनिया नहीं चाहते हैं कि करौली हिंसा मामले की वाहवाही लूटे करौली हिंसा मामले में वसुंधरा गुट के किसी विधायक ने किरोड़ी के पक्ष में बयान नहीं दिया।

2018 के चुनावों में किरोड़ी को करना पड़ा था हार का सामना
पूर्वी राजस्थान के करौली, धौलपुर, भरतपुर, दौसा और सवाई माधोपुर में मीणा समुदाय पर वर्चस्व रखने वाले किरोड़ी को विधानसभा चुनाव 2018 में करारी हार का सामना करना पड़ा था। करौली से किरोड़ी के शिष्य लाखन सिंह मीणा ने चुनावी जीत दर्ज कर किरोड़ी समर्थक भाजपा प्रत्याशी को हरा दिया। लाखन सिंह बसपा के टिकट पर चुनाव लड़े और जीत दर्ज की। 2008 के विधानसभा चुनाव में लाखन सिंह किरोड़ी की पार्टी एनपीपी से करौली से उम्मीदवार रहे। चुनाव जीतने के बाद लाखन सिंह कांग्रेस में शामिल हो गए।

करौली में मंत्री रमेश मीणा ने दी किरोड़ी के वर्चस्व को चुनौती
करौली की सपोटरा सीट से पंचायतीराज मंत्री रमेश मीणा ने किरोड़ी लाल की पत्नी गोलमा देवी को हराकर किरोड़ी के वर्चस्व की सीधी चुनौती दे दी। दौसा जिले की महुआ विधानसभा से किरोड़ीलाल का भतीजा राजेंद्र मीणा निर्दलीय प्रत्याशी ओमप्रकाश हुडला से चुनाव हार गए। यही नहीं भाजपा ने किरोड़ी लाल के आग्रह को अस्वीकार करते हुए दौसा लोकसभा सीट से किरोड़ी की धुर विरोधी जसकौर मीणा को टिकट को दे दिया। किरोड़ी अपनी पत्नी गोलमा देवी के लिए टिकट मांग रहे थे। किरोड़ी के विरोध के बावजूद जसकौर मीणा ने दौसा लोकसभा सीट से शानदार जीत हासिल की। राजस्थान के सियासी जानकारों का कहना है कि किरोड़ी लाल को रीट भर्ती मामले में गहलोत सरकार को खिलाफ मुखर रहने के बावजूद अपेक्षित जन समर्थन नहीं मिला। किरोड़ी लाल करौली हिंसा के माध्यम से पूर्वी राजस्थान में अपना खोया हुआ जनाधार प्राप्त करना चाहते हैं।

गुर्जर आंदोलन के दौरान किरोड़ी मसीहा के तौर पर उभरे
राजस्थान में वर्ष 2006 में गुर्जर पहली बार आरक्षम की मांग को लेकर  करौली जिले के हिंडौन शहर में सड़कों पर उतरे थे। तब गुर्जर  खुद को अनुसूचित जनजाति यानी एसटी में शामिल करने की मांग कर रहे थे। इस मांग के विरोध में पूर्वी राजस्थान में मीणाओं का आंदोलन उभरा और जिसका नेतृत्व किरोड़ी लाल ने किया था।  वसुंधरा सरकार में तब खाद्य मंत्री किरोड़ी लाल ने वसुंधरा राजे से मुलाकात कर जनजातीय आरक्षण से छेड़छाड़ नहीं करने की मांग की थी।  2007 में गुर्जर आंदोलन  हिंसक हुआ और पूरे राजस्थान में फैल गया था।  उसी दौरान किरोड़ी लाल का राजधानी जयपुर में एसएमएस रोड पर स्थित सरकारी आवास आंदोलन के विरोध का केंद्र बन गया था। किरोड़ी मीणा समाज के मसीहा के तौर पर उभरे। यहां तक की पूर्वी राजस्थान में किरोड़ी के नाम से लोकगीत तक बनने लग गए थे।

2013 के बाद किरोड़ी का घटता गया वर्चस्व
किरोड़ी लाल 2013 के विधानसभा चुनाव में पीएम संगमा की पार्टी एनपीपी में शामिल हो गए। किरोड़ी लाल ने 2013 के विधानसभा चुनाव में 200 में से 150 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए। लेकिन जीत सिर्फ 4 सीटों पर ही मिली। ये किरोड़ी लाल की उनकी जाति में ही घटते वर्चस्व का नतीजा था। किरोड़ी और उनकी पत्नी के अलावा कोई मीणा चुनाव नहीं जीत पाया था।

 

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button