अब 8 मई को बद्रीनाथ के कपाट खुलेंगे
देहरादून
उत्तराखंड के विश्व प्रसिद्ध चारधाम यात्रा का आगाज 3 मई को गंगोत्री और यमुनोत्री के कपाट खुलने के साथ ही हो गया। शुक्रवार को बाबा केदार के कपाट भी खुल गए। अब 8 मई को बद्रीनाथ के कपाट खुलेंगे। 7 मई को योग ध्यान बदरी मंदिर से कुबेर जी व उद्धव जी की उत्सव डोलीके साथ बद्रीनाथ के लिए रवाना होंंगे। 8 मई को सुबह सवा 6 बजे बद्रीनाथ के कपाट खोल दिए जाएंगे।जिसको लेकर मंदिर समिति और प्रशासन ने तैयारियां तेज कर दी है।
शुरू हुई कपाट खुलने की प्रक्रिया
बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलने की प्रक्रिया शुक्रवार से शुरू हो गई है। शुक्रवार को बदरीनाथ के रावल ईश्वर प्रसाद नंबूदरी, धर्माधिकारी भुवन चंद्र उनियाल व अन्य वेदपाठियों के साथ नृसिंह मंदिर में पूजा अर्चना के बाद गुरू शंकराचार्य की डोली और गाडू घड़ा कलश यात्रा के साथ पांडुकेश्वर रवाना हो गए। 7 मई को योग ध्यान बदरी मंदिर से कुबेर जी व उद्धव जी की उत्सव डोलीके साथ बद्रीनाथ के लिए रवाना होंंगे। 8 मई को सुबह सवा 6 बजे बद्रीनाथ के कपाट खोल दिए जाएंगे। राज्य सरकार ने किसी तरह की प्रतिबंध तो नहीं लगाई है लेकिन एक दिन में दर्शन के लिए 15 हजार की लिमिट तय की गई है। इसके साथ ही पर्यटन विभाग की वेबसाइट पर रजिस्ट्रेशन अनिवार्य है।
भगवान बदरीनाथ को गरुड़ में किया धाम के लिए रवाना
बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने से पहले होने वाला गरुड़ छाड़ मेला बृहस्पतिवार को आयोजित किया गया। बदरीनाथ के रावल ईश्वर प्रसाद नंबूदरी ने भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की। इस दौरान श्रद्धालुओं ने भगवान बदरीनाथ को गरुड़ में बैठाकर बदरीनाथ धाम के लिए रवाना किया। बदरीनाथ के कपाट खुलने से पहले हर साल जोशीमठ में गरुड़छाड़ मेले का आयोजन होता है।
तेल कलश यात्रा को धाम के लिए रवाना
बृहस्पतिवार सुबह से डिम्मर गांव में लक्ष्मी नारायण मंदिर के पुजारी मोहन प्रसाद डिमरी ने गाडू घड़ा तेलकलश की पूजा की और अरुण डिमरी, मुकेश डिमरी को गाड़ू घड़ा सुपुर्द कर तेल कलश यात्रा को बदरीनाथ धाम के लिए रवाना किया।
बद्री-विशाल की क्या है धार्मिक मान्यता
बद्रीनाथ अथवा बद्रीनारायण मन्दिर उत्तराखण्ड के चमोली में अलकनन्दा नदी के तट पर स्थित है। विष्णु को समर्पित मंदिर है और यह स्थान इस धर्म में वर्णित सर्वाधिक पवित्र स्थानों, चार धामों, में से एक यह एक प्राचीन मंदिर है। बद्रीनाथ मन्दिर में हिंदू धर्म के देवता विष्णु के एक रूप "बद्रीनारायण" की पूजा होती है। यहां उनकी 1 मीटर लंबी शालिग्राम से निर्मित मूर्ति है, जिसके बारे में मान्यता है कि इसे आदि शंकराचार्य ने 8वीं शताब्दी में समीपस्थ नारद कुण्ड से निकालकर स्थापित किया था। इस मूर्ति को कई हिंदुओं द्वारा विष्णु के आठ स्वयं व्यक्त क्षेत्रों (स्वयं प्रकट हुई प्रतिमाओं) में से एक माना जाता है। यद्यपि, यह मन्दिर उत्तर भारत में स्थित है, "रावल" कहे जाने वाले यहां के मुख्य पुजारी दक्षिण भारत के केरल राज्य के नम्बूदरी सम्प्रदाय के ब्राह्मण होते हैं।
विष्णु पुराण, महाभारत तथा स्कन्द पुराण जैसे कई प्राचीन ग्रन्थों में इस मन्दिर का उल्लेख मिलता है। इस मन्दिर को बद्री-विशाल के नाम से पुकारते हैं और विष्णु को ही समर्पित निकटस्थ चार अन्य मन्दिरों – योगध्यान-बद्री, भविष्य-बद्री, वृद्ध-बद्री और आदि बद्री के साथ जोड़कर पूरे समूह को "पंच-बद्री" के रूप में जाना जाता है।