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गोशाला संचालन के लिए पर्यावरण मंजूरी लेने से धार्मिक अधिकारों का हनन नहीं होता : एनजीटी

नई दिल्ली |  

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने कहा है कि गोशाला संचालन के लिए वायु और जल कानूनों के तहत पर्यावरण मंजूरी लेने को अनिवार्य किया जाना किसी के धार्मिक अधिकार का हनन नहीं है। ट्रिब्यूनल ने गोशाला समितियों को पर्यावरण मंजूरी से छूट देने से इनकार करते हुए यह टिप्पणी की है।

एनजीटी के अक्टूबर 2020 के आदेश पर दिल्ली समेत देशभर में गोशाला संचालन के लिए पर्यावरण मंजूरी लेना अनिवार्य कर दिया गया है। एनजीटी प्रमुख जस्टिस ए.के. गोयल की अगुवाई वाली बेंच ने फैसले में कहा है कि ‘जन स्वास्थ्य के हित में सिर्फ गोशालाओं के संचालन में पर्यावरण के नियमों का पालन करने से किसी के धार्मिक अधिकार या धर्मार्थ संस्थाओं के अधिकार का उल्लंघन नहीं होता है।’ बेंच ने कहा है कि पर्यावरण कानूनों को कोई चुनौती नहीं दी जा सकती है और ना ही याचिका में ऐसी चुनौती दी गई है। बेंच ने कहा कि हम न तो गोशालाओं के कामकाज के विरोध में हैं और न ही धार्मिक अधिकारों के। बेंच ने कहा है कि हमने जो कुछ भी आदेश दिया है वह पर्यावरण मानदंडों का पालन करने के लिए दिया है, जिस पर संभवत: कोई वैध आपत्ति नहीं हो सकती है।
 

छूट देने की मांग ठुकराई : एनजीटी ने बीकानेर गोशाला सेवा समिति एवं अन्य, गोसेवा केंद्र, तुलसी सर्कल, बीकानेर की ओर से की गई चैरिटेबल ट्रस्ट को गोशाला संचालन के लिए वायु और जल अधिनियम के तहत पर्यावरण मंजूरी लेने से छूट देने की मांग को ठुकराते हुए यह फैसला दिया है।

याचिका में अक्टूबर 2020 के एनजीटी के आदेश में संशोधन की मांग की गई थी। एनजीटी ने नुगेहल्ली जय सिम्हा बनाम दिल्ली सरकार के मामले में डेयरी और गोशाला के संचालन के लिए पर्यावरण मंजूरी को अनिवार्य कर दिया था। एनजीटी ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को पूरे देश में यह फैसला लागू करने का आदेश दिया था।

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