देशद्रोह कानून पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक,पुनर्विचार तक नए मामले नहीं दर्ज हो सकेंगे

नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में बुधवार को देशद्रोह के मामलों को लेकर फिर सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट ने पुनर्विचार तक फिलहाल राजद्रोह के तहत मुकदमे दर्ज करने पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने कहा कि केंद्र हो या राज्य सरकार पुनर्विचार तक 124A के तहत कोई एफआईआर दर्ज नहीं करेंगे। अब इस मामले की अगली सुनवाई 3 जुलाई को होगी।
बता दें कि राजद्रोह के मामलों में लगने वाली आईपीसी की धारा 124A को 10 से ज़्यादा याचिकाओं के ज़रिए सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। बुधवार को हुई सुनवाई में सरकार ने कहा कि अगर पुलिस अधीक्षक(SP) संतुष्ट हुआ, तो ही केस दर्ज होगा। इस दलील के साथ सॉलिसिटर जनरल ने कोर्ट से कहा कि फिलहाल इस कानून पर रोक न लगाई जाए। सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि पुलिस अधिकारी राजद्रोह के प्रावधानों के तहत एफआईआर दर्ज करने को लेकर पहले पूरी पड़ताल करेंगे, फिर बताएंगे कि यह केस क्यों लगना चाहिए। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि राजद्रोह के अपराध को दर्ज होने से नहीं रोका जा सकता है। केंद्र सरकार ने सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट से मौजूदा मुकदमे को चलते रहने देने की भी बात कही है। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि 124 (A) मामले में एसपी के संतुष्ट होने के बाद ही राजद्रोह का केस दर्ज किया जाएगा। इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस एनवी रमना और जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ कर रही है।
मंगलवार को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से ये पूछा था
मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से बुधवार तक यह बताने को कहा कि क्या भविष्य में देशद्रोह के मामलों (sedition cases) के रजिस्ट्रेशन को तब तक के लिए स्थगित रखा जा सकता है जब तक कि वह देशद्रोह कानून के संबंध में पुनर्विचार की प्रक्रिया पूरी नहीं कर लेता। इससे पहले एक ताजा हलफनामे में केंद्र ने सोमवार को बताया था कि उसने धारा 124 ए के प्रावधानों की फिर से जांच करने और पुनर्विचार करने का फैसला किया है। साथ ही केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया था कि जब तक सरकार द्वारा मामले की जांच नहीं की जाती, तब तक मामले को नहीं उठाया जाए।
इस कानून को रोकने लगाई गई हैं याचिकाएं
सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिकाओं में इस कानून पर तत्काल रोक लगाए जाने की मांग की गई है, जबकि सरकार ने लंबित केसों और पुनर्विचार की दलीलें पेश करते हुए इस पर फिलहाल रोक लगाने से मना किया है। बता दें कि राजद्रोह कानून को 17वीं शताब्दी में इंग्लैंड में अधिनियम के दायरे में लाया गया था। तब कानून बनाने वालों का तर्क था कि सरकार के प्रति अच्छी राय रखने वाले विचारों को ही सार्वजनिक रूप से सामने आना चाहिए। इसके पीछे कहा गया कि गलत राय सरकार और राजशाही दोनों के लिए नकारात्मक प्रभाव पैदा करती है।
कानून का दुरुपयोग हो रहा है
इन तमाम दलीलों को सुनने के बाद कोर्ट ने राजद्रोह कानून के इस्तेमाल पर रोक लगा दी है. कोर्ट ने कहा कि नागरिकों के अधिकारों की रक्षा सर्वोपरि है. इस कानून का दुरुपयोग हो रहा है. इसकी पुष्टि अटॉर्नी जनरल ने भी अपने मंतव्य में साफ कही है. कोर्ट ने कहा कि जिनके खिलाफ देशद्रोह के आरोप में मुकदमें चल रहे हैं और वो इसी आरोप में जेल में बंद हैं वो जमानत के लिए समुचित अदालतों में अर्जी दाखिल कर सकते हैं. क्योंकि केंद्र सरकार ने इस कानून पर पुनर्विचार के लिए कहा है, लिहाजा कोर्ट ने कहा है कि जब तक पुनर्विचार नहीं हो जाता तब तक इस कानून के तहत कोई केस नहीं होगा. साथ ही लंबित मामलों में भी कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी.
बता दें कि अभी तीन जजों की बेंच राजद्रोह कानून की वैधता पर सुनवाई कर रही है. इस बेंच में चीफ जस्टिस एनवी रमणा, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली शामिल हैं.
इस मामले में केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर कहा था कि सरकार ने राजद्रोह कानून पर पुनर्विचार और उसकी पुन: जांच कराने का निर्णय लिया है. केंद्र सरकार ने कोर्ट को बताया है कि वो राजद्रोह कानून की धारा 124 A की वैधता पर फिर से विचार करेगी. लिहाजा, इसकी वैधता की समीक्षा किए जाने तक इस मामले पर सुनवाई न करे. लेकिन कोर्ट ने केंद्र के इस पक्ष को नहीं माना है और कानून पर रोक लगा दी है.