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गिन्नौरगढ़ के किले का हो सकता है जीर्णोद्धार!

- कलेक्टर-एसपी ने किया निरीक्षण, पिछले दिनों पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा भी पहुंचे थे

सीहोर। रानी कमलापति के महल गिन्नौरगढ़ के किले को लेकर जल्द ही कवायद शुरू हो सकती है। दरअसल यह सब कवायद पिछले दिनों हुई राजनीतिक घटना के बाद की जा रही है। शुक्रवार को कलेक्टर चंद्रमोहन ठाकुर एवं पुलिस अधीक्षक मयंक अवस्थी ने भी गिन्नौरगढ़ के किले का निरीक्षण किया। हालांकि इस दौरान प्रशासन का अन्य अमला मौजूद नहीं था, लेकिन अब किले के जीर्णोद्धार को लेकर चर्चाएं भी शुरू हो गईं हैं।
भोपाल के हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम रानी कमलापति होने के बाद से गिन्नौरगढ़ का किला लगातार चर्चाओं मेें हैं। गिन्नौरगढ़ का किला सीहोर जिले की सीमा में आता है। अब अधिकारियों ने भी इस किले पर अपनी नजर गढ़ाई है। अधिकारियों द्वारा लगातार किले का भ्रमण किया जा रहा है।
किले पर राजनीति भी शुरू-
गिन्नौरगढ़ के किले पर राजनीति भी शुरू हो गई है। पिछले दिनों पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा भी अपने सैकड़ों समर्थकों के साथ किले मेें साफ-सफाई के लिए पहुंचे थे, लेकिन वन विभाग के अमले ने उन्हें नियमों का हवाला देते हुए अंदर नहीं जाने दिया था। इसके बाद वे किले के बाहर ही अपने समर्थकों के साथ धरने पर बैठ गए थे। मामला बुधनी विधानसभा का है, इसलिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी किले को लेकर चर्चाओं की शुरूआती की है। हालांकि किले के जीर्णोद्धार को लेकर कवायद कब शुरू होगी, ये सब भविष्य के गर्त में है, लेकिन फिलहाल अधिकारियों ने किले के निरीक्षण को लेकर सक्रियता दिखाई है।
ये है किले का इतिहास-
गिन्नौरगढ़ स्थित रानी कमलापति का महल राजधानी भोपाल से 65 किमी दूरी पर स्थित है। बताया जाता है कि गौंड शाह की सात रानियां थीं और इनमें कमलापति प्रमुख थीं। किले के समीप एक पहाड़ी है, जो अशर्फी पहाड़ी के नाम से प्रसिद्ध है। इतिहासकारों का कहना है कि इस किले को बनाने के लिए अन्य स्थान से मिट्टी मंगाई गई थी। मिट्टी की डलिया लाने वाले प्रत्येक मजदूर को एक अशर्फी दी जाती थी। किले का निर्माण विंध्याचल की पहाड़ियों के मध्य समुद्र सतह से 1975 फीट ऊंचाई पर किया गया है। प्रकृति की गोद में बसे और हरियाली से घिरे इस किले की संरचना अद्भुत है। लगभग 3696 फीट लंबे और 874 फीट चौड़े इलाके में फैले इस किले की विशालता देखने योग्य है। एडवेंचर के शौकीनों को यह किला अपनी ओर आकर्षित करता है। इस किले का निर्माण परमार वंश के राजाओं ने किया था। इसके बाद निजाम शाह ने किले को नया रूप प्रदान कर इसे अपनी राजधानी बनाया था। गौंड शासन की स्थापना निजाम शाह ने की थी। यह ऐतिहासिक किला 800 वर्ष पूर्व अस्तित्व में आया। यहां पर परमार और गौंड शासकों के बाद मुगल तथा पठानों ने भी शासन किया है। इतनी ऊंचाई पर बना होने के बावजूद यहां पर पानी भरपूर मात्रा में है। किले और उसके आसपास लगभग 25 कुएं-बावड़ी और 4 छोटे तालाब हैं। किले की दीवार करीब 82 फीट ऊंची और 20 फीट चौड़ी है। यहां पहाड़ी पर काले और हरे पत्थर बिखरे हुए हैं। इन्हीं पत्थरों का इस्तेमाल किले को बनाने में किया गया है। यहां के महल आकर्षक स्थापत्य कला का अनुपम उदाहरण है। यहां पर सुंदर बावड़ी, बादल महल और इत्रदान जैसे महत्वपूर्ण महल देखने योग्य हैं। किले के नीचे सदियों पुरानी एक गुफा है। इस गुफा में शीतल जलकुंड है, जिसकी वजह से यहां गर्मियों में भी ठंडक बनी रहती है।
तीन हिस्सों में बंटा है किला-
इस किले को तीन हिस्सों में बांटा गया है। पहला भाग किले से तीन मील दूर का एरिया है, जिसे बाहर की घेराबंदी के नाम से जाना जाता है। किले का दूसरा भाग दो मील दूर का इलाका है, जहां कभी बस्ती आबाद थी। यहीं पर एक तालाब भी है। तीसरे भाग में किला है। इसके मुख्य द्वार के पास रानी महल है, जिसे निजाम शाह ने अपनी पत्नियों के लिए बनवाया था।

प्रशासन करे किले का रखरखाव-
कांग्रेस नेता राजेंद्र गुप्ता का कहना है कि इतने वर्षों तक तो किसी का ध्यान इस धरोहर को लेकर नहीं गया। जब हमारे नेता सज्जन सिंह वर्मा ने इस किले की साफ-सफाई का बीड़ा उठाया तो हमें अंदर नहीं जाने दिया गया। राजेंद्र गुप्ता कहते हैं कि ऐतिहासिक धरोहरों को देखने में भी कांग्रेस केे साथ भेदभाव किया जाता है। हम तो साफ-सफाई के लिए पहुंचे थे, लेकिन वन विभाग के अमले ने हमें अंदर नहीं जाने दिया। गिन्नौरगढ़ का किला जीर्ण-शीर्ण अवस्था में हैै और अब इसका रखरखाव प्रशासन को करना चाहिए।
इधर भाजयुमो के सलकनपुर मंडल के ग्रामीण अध्यक्ष चेतन पटेल का कहना है कि हमारी सरकार ने हबीबगंज स्टेशन का नाम बदलकर रानी कमलापति किया है। इतने वर्षों तक देश-प्रदेश में कांग्रेस की सरकारें रहीं, लेकिन उनका ध्यान इस तरफ कभी नहीं गया। जब स्टेशन का नाम बदला गया तो उन्हें किले की याद आई है। चेतन पटेल का कहना है कि किला पुरातत्व विभाग की देखरेख में आता है। ऐतिहासिक धरोहरों पर राजनीति करना कांग्रेस की पुरानी आदत रही है। इन पर राजनीति उचित नहीं है।

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