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रूस को बदनाम करने की फिराक में अमेरिका-यूरोप, प्रचार युद्ध में यूक्रेन को मिल रही सहानुभूति

नई दिल्ली।
रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर एक प्रचार युद्ध भी चल रहा है। पश्चिमी मीडिया इस युद्ध की जो तस्वीर पेश कर रहा है, वह करीब-करीब पूरी दुनिया पर हावी हो चुकी है।  इस संचार युद्ध में रूस कटघरे में खड़ा हो चुका है। यूक्रेन के साथ पूरे विश्व की सहानुभूति पैदा हो गई है। इससे चिंतित विभिन्न देशों में रूस के दूतावासों द्वारा स्थिति साफ करने की कोशिश की जा रही है। उसके द्वारा इन तथ्यों को भी खारिज किया जा रहा है कि नागरिक ठिकानों पर टारडेटेड हमले किये जा रहे हैं।

रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार निश्चित रूप से युद्ध से तबाही होती है। जिन देशों के बीच युद्ध होता है, उनका नुकसान तो होता ही है। पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था पर इससे असर पड़ता है। लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध की जहां तक बात है इस युद्ध को रोकने का विकल्प खुद इन दो देशों के अलावा अमेरिका, यूरोप समेत तमाम बड़े देशों के पास उपलब्ध था लेकिन किसी ने भी उस विकल्प का इस्तेमाल नहीं किया।

अमेरिका और यूरोप के पास था रूस की चिंताओं का समाधान
रक्षा विशेषज्ञ लेफ्टिनेंट जनरल राजेन्द्र सिंह के अनुसार इस युद्ध में कौन सही था और कौन गलत था, यह तो इतिहास तय करेगा। लेकिन रूस की चिंताओं का समाधान अमेरिका और यूरोप के पास था। उन्होंने अब तक यूक्रेन को नाटो का सदस्य नहीं बनाया। आगे भी आसार नहीं हैं। लेकिन वे यदि रूस को इस बाबत आश्वस्त कर देते तो हो सकता था यह युद्ध टल जाता।
 

यूक्रेन को नाटो सेनाएं साथ होने का भरोसा दिलाते रहे
अमेरिका और यूरोप की एक चाल यह भी रही कि वह यूक्रेन को यह भरोसा दिलाते रहे कि नाटो सेनाएं उसके साथ हैं, जिससे चलते यूक्रेन पहले वार्ता की मेज पर नहीं आया। लेकिन बाद में अमेरिका ने साफ कर दिया कि नाटो सेनाएं कोई मदद नहीं कर पाएंगी। इससे यूक्रेन धोखे में रहा। यदि उसके सामने पहले यह स्थिति स्पष्ट होती तो वह दूसरे विकल्पों पर विचार कर सकता था। इसी प्रकार मीडिया में बड़े पैमाने पर नागरिक ठिकानों पर हमले की तस्वीरों दिखाई जा रही हैं जिनकी सच्चाई पर पूर्णत: संदेह होता है। रूस के सूत्रों का कहना है कि यह दुनिया में सहानुभूति हासिल करने की कोशिश है। कोई भी हमला नागरिक ठिकानों को लक्ष्य करके नहीं किया जा रहा है।

युद्ध की भयावहता में वास्तविक तथ्य दबे
विशेषज्ञों के अनुसार जहां तक रूस का प्रश्न है, उसने यह कदम सोच-समझकर उठाया है। उसकी सुरक्षा चिंताएं जायज हैं। इसे उसी प्रकार समझ सकते हैं कि जैसे हमारी पड़ोसी देश में हमारे दुश्मन की सेनाएं काबिज हो जाएं तो हम कभी बर्दाश्त नहीं कर सकते। डोकलाम इसका एक छोटा सा उदाहरण है जब चीनी सेनाए वहां भूटान के हिस्से में पहुंचीं तो भारत ने पुरजोर विरोध कर उन्हें पीछे हटने के लिए विवश किया। क्योंकि कोई भी देश सुरक्षा से समझौता नहीं कर सकता। लेकिन युद्ध की भयावहता और मीडिया के प्रचार युद्ध में वास्तविक तथ्य दब गये हैं तथा रूस की छवि खलनायक एवं तानाशाह के रूप में उभर कर सामने आई है और अमेरिका और यूरोप के अलावा भी उसके समर्थन में खड़े देशों की संख्या गिनी चुनी है। जो देश समर्थन में हैं भी वे भी युद्ध की आलोचना कर रहे हैं।

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