
सीहोर। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भूतड़ी अमावस्या के पावन पर्व पर नकारात्मक विचारों से मुक्ति और आध्यात्मिक शुद्धि के लिए पवित्र नदियों में स्नान और पूजन का विशेष महत्व होता है। इस वर्ष भी यह विशेष तिथि जिले के दो प्रमुख धार्मिक केंद्र आंवलीघाट और कालियादेव पर हजारों श्रद्धालुओं के आगमन का गवाह बनेगी। इन स्थानों पर पर्व की तैयारियों को अंतिम रूप दिया जा रहा है।
नर्मदा तट पर स्थित आंवलीघाट का पौराणिक और आध्यात्मिक महत्व बहुत गहरा है। यह स्थान न सिर्फ नर्मदा नदी का तट है, बल्कि यहां हत्याहरणी हथेड़ नदी और नर्मदा का पवित्र संगम भी होता है। माना जाता है कि वनवास के दौरान पांडवों ने यहां कुछ समय बिताया था। लोक कथाओं के अनुसार यहां मौजूद विशाल चट्टानें महाभारत काल में भीम द्वारा मां नर्मदा का प्रवाह रोकने के प्रयास का प्रमाण हैं। वहीं यह भी कहा जाता है कि देवी लक्ष्मी रथ पर सवार होकर यहां आईं थीं और उनके रथ के पहियों के निशान आज भी पत्थरों पर देखे जा सकते हैं। भूतड़ी अमावस्या के दिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां नर्मदा में डुबकी लगाकर पुण्य लाभ अर्जित करेंगे।
कालियादेव मेले में दिखेगी जनजातीय संस्कृति की झलक
इछावर तहसील के ग्राम नादान के पास घने जंगलों में स्थित कालियादेव स्थान पर भी भूतड़ी अमावस्या की रात्रि में एक विशाल मेले का आयोजन होगा। यह मेला अपनी जनजातीय संस्कृति और परंपराओं की अनुपम छटा के लिए प्रसिद्ध है। यहां से निकलने वाली सीप नदी पर एक झरना हैए जिसके नीचे बने कुंड को जनजातीय समुदाय के लोग पाताल लोक का रास्ता मानते हैं। इस विशेष तिथि पर दूर.दराज से जनजातीय समुदाय के लोग, महिलाएं, पुरुष और बच्चे यहां एकत्रित होंगे। वे पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ सीप नदी में कालियादेव की पूजा-अर्चना करेंगे।