सुमित शर्मा, सीहोर।
9425665690
हाल ही में संपन्न हुए सीहोर जिले के बुधनी विधानसभा के उपचुनाव के नतीजों ने स्पष्ट कर दिया है कि अब भाजपा को चिंतन, चिंता के साथ ही फिल्टर की भी जरूरत है। बुधनी विधानसभा में एक लाख से अधिक वोटों की लीड लेकर जीतते रहे शिवराज सिंह चौहान की लीड अब महज 13 हजार 901 पर आ गई। इससे साफ जाहिर है कि कहीं न कहीं बुधनी विधानसभा के नेताओं की आपसी खींचतान एवं गुटबाजी सबसे ज्यादा चुनाव पर हॉवी रही। इस गुटबाजी के कारण यहां पर भाजपा को पूरा जोर भी लगाना पड़ा। कभी अपने चुनाव में प्रचार करने नहीं आए केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान को खुद यहां पर मैदान संभालना पड़ा। इसका असर झारखंड में भी दिखा। अंतिम समय में शिवराज सिंह चौहान लगातार बुधनी में रहे, इसके कारण झारखंड के चुनाव नतीजे भाजपा के हाथ से निकल गए। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को भी यहां पर चार सभाएं लेनी पड़ी। चुनाव आचार संहिता से पहले भैरूंदा में हुई बड़ी सभा एवं उसमें की गई घोषणाएं भी जनता ने स्वीकार नहीं की। इसके अलावा आधा दर्जन से अधिक मंत्रियों, सांसदों, विधायकों, संगठन के नेताओं ने भी बुधनी में मोर्चा संभाले रखा, इसके बावजूद भी चुनाव नतीजे उतने बेहतर नहीं आए, जो आना चाहिए थे। अब भाजपा को इस पर चिंतन तो करना ही चाहिए, लेकिन अब भाजपा के लिए चिंता की भी जरूरत है। बुधनी विधानसभा के गांव-गांव, घर-घर में भाजपा नेता होने के बावजूद भी चुनाव नतीजे बेहद चिंताजनक आए। पिछले 17-18 वर्षों में सबसे ज्यादा लाल बत्तियां बुधनी विधानसभा के नेताओं को मिली। निगम-मंडल, आयोगों में बुधनी विधानसभा के करीब 19 नेताओं को अध्यक्ष, उपाध्यक्ष बनाया गया। वर्तमान में भी तीन नेता राज्यमंत्री दर्जा प्राप्त हैं। इसके अलावा गांव-गांव में भाजपा नेताओं की बाढ़ है, लेकिन इन नेताओं ने सबसे ज्यादा अपना भला किया। ये नेता जनता के बीच अपनी छवि बनाने में असफल रहे और इसके कारण चुनाव में स्थितियां बेहद गंभीर रही। यदि केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान एवं मुख्यमंत्री यहां पर मोर्चा नहीं संभालते तो यह तय था कि बुधनी विधानसभा की सीट भाजपा के हाथों से निकल जाती। भाजपा प्रत्याशी रमाकांत भार्गव को जितने वोट मिले हैं उतने वोटों से तो यहां पर शिवराज सिंह चौहान चुनाव जीते थे। हालांकि इस बार शिवराज सिंह चौहान मैदान में नहीं थे तो लीड कम होनी थी, लेकिन इतनी लीड कम होगी, इसकी किसी को भी उम्मीदें नहीं थी। चुनाव से पहले बुधनी विधानसभा में टिकट के लिए भाजपा के कई नेताओं के भी नाम सुर्खियों में रहे। चिंताजनक बात तो यह है कि इन नेताओं के स्थानीय मतदान केंद्रों पर ही भाजपा की स्थिति बेहद गंभीर रही। पदों पर काबिज नेताओं के मतदान केंद्रों पर ही भाजपा कई जगह से हार गई तो कई ऐसे भी मतदान केंद्र रहे, जिन पर एक-दो वोटों से हार-जीत हुई। अब आने वाले समय में संगठन के चुनाव हैं। ऐसे में भाजपा को अब चिंतन, चिंता तो करनी ही चाहिए, लेकिन अब फिल्टर लगाने की भी जरूरत है, ताकि आने वाले समय में पार्टी को मजबूती मिले।
आपसी गुटबाजी, खींचतान ने बनाई ये स्थितियां-
भाजपा में चल रही नेताओं की आपसी खींचतान एवं गुटबाजी का असर चुनाव नतीजों पर साफ तौर पर देखने को मिला। केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान के मुख्यमंत्री रहते हुए ये गुटबाजी कभी भी सामने नहीं आई, लेकिन इस बार भाजपा नेताओं ने अपना खेल दिखा दिया। बुधनी उपचुनाव में इस बार भाजपा के एक दर्जन नेताओं के नाम टिकट के प्रबल दावेदारों के तौर पर सामने आए। वरिष्ठ भाजपा नेता एवं पूर्व विधायक राजेंद्र सिंह राजपूत का तो खुले तौर पर विरोध दिखा। हालांकि बाद में उन्होंने भाजपा के लिए चुनाव मैदान संभाला, लेकिन राजपूत समाज ने निर्दलीय प्रत्याषी के तौर पर अजय सिंह राजपूत को खड़ा कर दिया। उन्हें करीब 975 वोट भी मिले, लेकिन गुटबाजी, खींचतान, विरोध के कारण वोटों का ध्रुवीकरण हो गया।
अब संगठन चुनाव की कवायद-
भाजपा में अब संगठन चुनाव की कवायद भी शुरू हो गई है। दिसंबर तक संगठन के चुनाव भी होने हैं। नए सिरे से बूध, मंडल एवं जिला अध्यक्ष की नियुक्ति होगी। ऐसे में अब भाजपा को चाहिए कि ऐसे नेताओं को इन पदों पर आसीन करें, जो संगठन को मजबूती देने के साथ ही बेहतर छवि के हों, ताकि आने वाले समय में भाजपा को ऐसी विपरीत परिस्थितियों का सामना नहीं करना पड़े।
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हाल ही में संपन्न हुए सीहोर जिले के बुधनी विधानसभा के उपचुनाव के नतीजों ने स्पष्ट कर दिया है कि अब भाजपा को चिंतन, चिंता के साथ ही फिल्टर की भी जरूरत है। बुधनी विधानसभा में एक लाख से अधिक वोटों की लीड लेकर जीतते रहे शिवराज सिंह चौहान की लीड अब महज 13 हजार 901 पर आ गई। इससे साफ जाहिर है कि कहीं न कहीं बुधनी विधानसभा के नेताओं की आपसी खींचतान एवं गुटबाजी सबसे ज्यादा चुनाव पर हॉवी रही। इस गुटबाजी के कारण यहां पर भाजपा को पूरा जोर भी लगाना पड़ा। कभी अपने चुनाव में प्रचार करने नहीं आए केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान को खुद यहां पर मैदान संभालना पड़ा। इसका असर झारखंड में भी दिखा। अंतिम समय में शिवराज सिंह चौहान लगातार बुधनी में रहे, इसके कारण झारखंड के चुनाव नतीजे भाजपा के हाथ से निकल गए। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को भी यहां पर चार सभाएं लेनी पड़ी। चुनाव आचार संहिता से पहले भैरूंदा में हुई बड़ी सभा एवं उसमें की गई घोषणाएं भी जनता ने स्वीकार नहीं की। इसके अलावा आधा दर्जन से अधिक मंत्रियों, सांसदों, विधायकों, संगठन के नेताओं ने भी बुधनी में मोर्चा संभाले रखा, इसके बावजूद भी चुनाव नतीजे उतने बेहतर नहीं आए, जो आना चाहिए थे। अब भाजपा को इस पर चिंतन तो करना ही चाहिए, लेकिन अब भाजपा के लिए चिंता की भी जरूरत है। बुधनी विधानसभा के गांव-गांव, घर-घर में भाजपा नेता होने के बावजूद भी चुनाव नतीजे बेहद चिंताजनक आए। पिछले 17-18 वर्षों में सबसे ज्यादा लाल बत्तियां बुधनी विधानसभा के नेताओं को मिली। निगम-मंडल, आयोगों में बुधनी विधानसभा के करीब 19 नेताओं को अध्यक्ष, उपाध्यक्ष बनाया गया। वर्तमान में भी तीन नेता राज्यमंत्री दर्जा प्राप्त हैं। इसके अलावा गांव-गांव में भाजपा नेताओं की बाढ़ है, लेकिन इन नेताओं ने सबसे ज्यादा अपना भला किया। ये नेता जनता के बीच अपनी छवि बनाने में असफल रहे और इसके कारण चुनाव में स्थितियां बेहद गंभीर रही। यदि केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान एवं मुख्यमंत्री यहां पर मोर्चा नहीं संभालते तो यह तय था कि बुधनी विधानसभा की सीट भाजपा के हाथों से निकल जाती। भाजपा प्रत्याशी रमाकांत भार्गव को जितने वोट मिले हैं उतने वोटों से तो यहां पर शिवराज सिंह चौहान चुनाव जीते थे। हालांकि इस बार शिवराज सिंह चौहान मैदान में नहीं थे तो लीड कम होनी थी, लेकिन इतनी लीड कम होगी, इसकी किसी को भी उम्मीदें नहीं थी। चुनाव से पहले बुधनी विधानसभा में टिकट के लिए भाजपा के कई नेताओं के भी नाम सुर्खियों में रहे। चिंताजनक बात तो यह है कि इन नेताओं के स्थानीय मतदान केंद्रों पर ही भाजपा की स्थिति बेहद गंभीर रही। पदों पर काबिज नेताओं के मतदान केंद्रों पर ही भाजपा कई जगह से हार गई तो कई ऐसे भी मतदान केंद्र रहे, जिन पर एक-दो वोटों से हार-जीत हुई। अब आने वाले समय में संगठन के चुनाव हैं। ऐसे में भाजपा को अब चिंतन, चिंता तो करनी ही चाहिए, लेकिन अब फिल्टर लगाने की भी जरूरत है, ताकि आने वाले समय में पार्टी को मजबूती मिले।
आपसी गुटबाजी, खींचतान ने बनाई ये स्थितियां-
भाजपा में चल रही नेताओं की आपसी खींचतान एवं गुटबाजी का असर चुनाव नतीजों पर साफ तौर पर देखने को मिला। केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान के मुख्यमंत्री रहते हुए ये गुटबाजी कभी भी सामने नहीं आई, लेकिन इस बार भाजपा नेताओं ने अपना खेल दिखा दिया। बुधनी उपचुनाव में इस बार भाजपा के एक दर्जन नेताओं के नाम टिकट के प्रबल दावेदारों के तौर पर सामने आए। वरिष्ठ भाजपा नेता एवं पूर्व विधायक राजेंद्र सिंह राजपूत का तो खुले तौर पर विरोध दिखा। हालांकि बाद में उन्होंने भाजपा के लिए चुनाव मैदान संभाला, लेकिन राजपूत समाज ने निर्दलीय प्रत्याषी के तौर पर अजय सिंह राजपूत को खड़ा कर दिया। उन्हें करीब 975 वोट भी मिले, लेकिन गुटबाजी, खींचतान, विरोध के कारण वोटों का ध्रुवीकरण हो गया।
अब संगठन चुनाव की कवायद-
भाजपा में अब संगठन चुनाव की कवायद भी शुरू हो गई है। दिसंबर तक संगठन के चुनाव भी होने हैं। नए सिरे से बूध, मंडल एवं जिला अध्यक्ष की नियुक्ति होगी। ऐसे में अब भाजपा को चाहिए कि ऐसे नेताओं को इन पदों पर आसीन करें, जो संगठन को मजबूती देने के साथ ही बेहतर छवि के हों, ताकि आने वाले समय में भाजपा को ऐसी विपरीत परिस्थितियों का सामना नहीं करना पड़े।