क्या 200 साल बाद भी किसी को इतनी शिद्दत के साथ याद किया जा सकता है..!

रघुवर दयाल गोहिया
मध्यप्रदेश में भोपाल के निकट स्थित नरसिंहगढ़ रियासत के राजकुमार कुंवर चैन सिंह 24 जुलाई 1824 को अंग्रेज हुकूमत के विरुद्ध लड़ते हुए अपने 54 विश्वस्त साथियों के साथ वीर गति को प्राप्त हुए थे। इनमें हिम्मत खां और बहादुर खां के नाम प्रमुख हैं। साथ ही इस युद्ध में चैन सिंह के साथ आईं वीरांगना उमेदा बाई भी शहीद हुई थीं जिनके बारे में कहा जाता है कि वह युद्ध कला में निपुण होने के साथ साथ कुशल नृत्यांगना भी थीं। इस युद्ध में सभी जाति, वर्ग और धर्म के वीर योद्धा शामिल हुए थे। 1857 के सशस्त्र स्वाधीनता संग्राम से लगभग 33 वर्ष पूर्व की यह घटना कुंवर चैन सिंह को मालवा अंचल के पहले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के रूप में प्रतिष्ठित करती है। अमर शहीद कुंवर चैन सिंह को लेकर भोपाल दूरदर्शन केंद्र ने कुछ साल पहले एक शार्ट मूवी भी प्रदर्शित की थी। संवत 1951 में बुद्धा सिंह ने कुंवर चैन सिंह जी का ख्याल नाम से भी एक पुस्तक लिखी है। जिसमें सीहोर में हुए युद्ध का विस्तार से वर्णन है। यह पुस्तक अंबादत्त भारतीय स्मृति पत्रकारिता संग्रहालय एवं शोध संस्थान में सुरक्षित है। इसके अलावा इनोवेंट सेडेट स्टूडेंट सोसायटी भोपाल ने साल 2013 में शहीद भवन के सभागार में “अलख” नाम से एक नाटक का मंचन भी किया था। जिसका निर्देशन फिल्म कलाकार प्रखर सक्सेना ने किया था। इस नाटक में चैन सिंह की भूमिका शाजापुर जिले की कालापीपल तहसील के युवा रंगकर्मी प्रशांत विलय ने निभाई थी। कुंअर चैन सिंह पर अनेक लोगों ने काफी कुछ लिखा है। इसके बाद भी उनके बारे में गहराई के साथ शोध कार्य होना अभी बाकी है। मध्य प्रदेश सरकार ने वर्ष 2015 से सीहोर स्थित कुंवर चैन सिंह की छतरी पर गार्ड आॅफ आॅनर प्रारम्भ किया है। इस दिन यहां अमर शहीदों का पुण्य स्मरण किया जाता है और उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित किये जाते हैं। इसके अलावा राजगढ़ जिले के नरसिंहगढ़ में भी 24 जुलाई को राज घराने के छार बाग स्थित कुंअर चैन सिंह के समाधि स्थल पर भी हर साल श्रद्धांजलि कार्यक्रम आयोजित किया जाता है।
फौजी छावनी नहीं होती तो शहादत भी न होती –
सन 1818 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने भोपाल रियासत के तत्कालीन नवाब से समझौता कर सीहोर में एक हजार सैनिकों की छावनी स्थापित की। कंपनी द्वारा नियुक्त पॉलिटिकल एजेंट मैडॉक को इन फौजियों का प्रभारी बनाया गया। इस फौजी टुकड़ी का वेतन भोपाल रियासत के शाही खजाने से दिया जाता था। समझौते के तहत पॉलिटिकल एजेंट मैडॉक को भोपाल सहित नरसिंहगढ़, खिलचीपुर और राजगढ़ रियासत से संबंधित राजनीतिक अधिकार भी सौंप दिए गए। बाकी तो चुप रहे, लेकिन इस फैसले को नरसिंहगढ़ रियासत के युवराज कुंवर चैन सिंह ने गुलामी की निशानी मानते हुए स्वीकार नहीं किया।
अंग्रेज परस्त दीवान और मंत्री की ह्त्या का आरोप –
रियासत के दीवान आनंदराम बख्शी और मंत्री रूपराम बोहरा अंग्रेजों से मिले हुए थे। यह पता चलने पर कुंवर चैन सिंह ने इन दोनों को मार दिया। मंत्री रूपराम के भाई ने इसकी शिकायत कलकत्ता स्थित गवर्नर जनरल से की, जिसके निर्देश पर पॉलिटिकल एजेंट मैडॉक ने कुंवर चैन सिंह को भोपाल के नजदीक बैरसिया में एक बैठक के लिए बुलाया। बैठक में मैडॉक ने कुंवर चैन सिंह को हत्या के अभियोग से बचाने के लिए दो शर्तें रखीं। पहली शर्त थी कि नरसिंहगढ़ रियासत, अंग्रेजों की अधीनता स्वीकारे। दूसरी शर्त थी कि क्षेत्र में पैदा होने वाली अफीम की पूरी फसल सिर्फ अंग्रेजों को ही बेची जाए।
सीहोर आने का दिया आदेश –
कुंवर चैन सिंह द्वारा दोनों ही शर्तें ठुकरा देने पर मैडॉक ने उन्हें सीहोर पहुंचने का आदेश दिया। अंग्रेजों की बदनीयती का अंदेशा होने के बाद भी कुंवर चैन सिंह नरसिंहगढ़ से अपने विश्वस्त साथी सारंगपुर निवासी हिम्मत खां और बहादुर खां सहित 54 सैनिकों के साथ सीहोर पहुंचे। जहां पॉलिटिकल एजेंट मैडॉक और अंग्रेज सैनिकों से उनकी जमकर मुठभेड़ हुई। कुंवर चैन सिंह और उनके मु_ी भर विश्वस्त साथियों ने शस्त्रों से सुसज्जित अंग्रेजों की फौज से डटकर मुकाबला किया। घंटों चली लड़ाई में अंग्रेजों के तोप खाने ओर बंदूकों के सामने कुंवर चैन सिंह और उनके जांबाज लड़ाके डटे रहे।
अष्ट धातु की तोप काट दी थी तलवार के प्रहार से-
ऐसा कहा जाता है कि युद्ध के दौरान कुंवर चैन सिंह ने अंग्रेजों की अष्ट धातु से बनी तोप पर अपनी तलवार से प्रहार किया जिससे तलवार तोप को काटकर उसमे फंस गई। मौके का फायदा उठाकर तोपची ने उनकी गर्दन पर तलवार का प्रहार कर दिया जिससे कुंवर चैन सिंह की गर्दन रण भूमि में ही गिर गई और उनका धड़ काफी देर तक लड़ता रहा। कुंवर चैन सिंह की धर्म पत्नी कुंवरानी राजावत जी ने उनकी याद में नरसिंहगढ़ स्थित परशुराम सागर के पास एक मंदिर भी बनवाया जिसे कुंवरानी जी के मंदिर के नाम से जाना जाता है।
भारत जोड़ो आन्दोलन की महती भूमिका –
नरसिंहगढ़ रियासत के राजकुमार कुंवर चैन सिंह की स्मृति को अक्षुण बनाए रखने में भारत जोड़ो आन्दोलन के संस्थापक संयोजक डा. बलबीर तोमर और साथियों का महत्वपूर्ण योगदान है। उनके बिना इस आयोजन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। इस बार भी गुरुवार को नगर के दशहरा बाग स्थित कुंवर चैन सिंह स्मारक पर संगठन के माध्यम से सुबह 10 बजे श्रद्धांजलि समारोह का आयोजन किया किया गया है। सभी देशभक्त नागरिकों से श्री तोमर ने श्रद्धांजलि कार्यक्रम में शामिल होने की अपील की है।