आदिवासी दिवस के बहाने शक्ति-प्रदर्शन, जगह-जगह निकाली गई रैलियां, बताए गए अधिकार

सीहोर। 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर जहां जगह-जगह रैलियां निकाली गई तो वहीं आदिवासियों को उनके अधिकार भी बताए गए। सीहोर जिले में जिला मुख्यालय सहित अन्य स्थानों पर भी रैलियां निकालकर आदिवासी समुदाय द्वारा शक्ति प्रदर्शन किया गया। जिला मुख्यालय सीहोर में भोपाल नाका अंबेडकर धर्मशाला में कार्यक्रम के शुभारंभ अवसर पर टंट्या मामा, बिरसा मुंडा, डॉ. भीमराव अम्बेडकर, राणा पुंजा भील, रेंगा कोरकु, रानी दुर्गावती के चित्र पर माल्यार्पण के पश्चात कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया। तत्पश्चात भोपाल नाका से कोतवाली चौराहा, लीसा टाकीज चौराहा होते हुए तहसील चौराहा पर रैली का समापन हुआ। रैली में हजारों की संख्या में जिले से आए आदिवासी समाज के लोगों ने भाग लिया। विश्व आदिवासी दिवस पर जिला मुख्यालय में जिलेभर से आए समाज के लोगों ने रैली में अपनी पारंपरिक वेशभूषा, आभूषण, वाद्य यंत्रों के साथ शामिल होकर आदिवासी संस्कृति का सम्मान करने का प्रयास किया।
विश्व आदिवासी दिवस कार्यक्रम के अध्यक्ष रवि सोलंकी ने संबोधित करते हुए आदिवासी दिवस के महत्व, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, आदिवासियों का विकास के नाम पर विस्थापन, वन संरक्षण अधिनियम, आदिवासियों के संविधान में वर्णित संवैधानिक अधिकार के बारे में विस्तार से जानकारी दी। जिला सीहोर जयस संरक्षक एवं वरिष्ठ आदिवासी समाजसेवी रामदास सोलंकी ने विश्व आदिवासी दिवस के बारे में कार्यक्रम में शामिल समाजजन को संक्षिप्त में जानकारी दी। उन्होंने कहा कि समाज को शिक्षा के लिए अधिक से अधिक आदिवासी समाजजन को जागरूक करने की आवश्यकता है। शिक्षा से समाज के युवा अपने मौैलिक अधिकारों को जानेंगे। शिक्षा एक ऐसा हथियार है, जिससे हम अपने अधिकार की जानकारी हासिल कर सकते हैं। शिक्षा से हम अपने संविधान का अध्ययन कर सकेंगे। शिक्षा एक हथियार है, जिससे हम अपनी गरीबी को दूर कर सकते हैं। शिक्षा ही एक ऐसी दौलत है, जिसको हमसे कोई नहीं छीन सकता।
क्या है आदिवासी दिवस-
26 अक्टूबर 1945 को संयुक्त राष्ट्र संघ का गठन किया गया, जिसमें भारत सहित 193 देश इसके सदस्य हैं। अपने गठन के 50 वर्ष बाद संयुक्त राष्ट्र संघ ने यह महसूस किया कि 21वी सदी में भी विश्व के विभिन्न देशों में निवासरत आदिवासी समाज उपेक्षा, गरीबी, अशिक्षा, स्वास्थ्य सुविधा का अभाव, बेरोजगारी एवं बंधुआ मजदूर आदि समस्याओं से ग्रसित हैं। अदिवासी समाज की उक्त समस्या के निवारण हेतु विश्व ध्यानाकर्षण करने के लिए 23 दिसम्बर 1994 को पारित प्रस्ताव 46/214 के तहत विश्व अदिवासी दिवस घोषित किया गया। यह दिवस 1995 से प्रतिवर्ष विश्व के सभी देशों में हर्षाेल्लास के साथ मनाया जाता है। इसके पीछे संयुक्त राष्ट्र संघ का उद्देश्य यह है कि आदिवासी समाज के मानवीय अधिकारों का संरक्षण हो, उनके जल, जंगल-जमीन के अधिकार सुरक्षित रहें, अस्मिता, आत्मसम्मान, कला, इतिहास, ज्ञान संस्कृति, अस्तित्व कायम रहे एवं स्वावलंबन, स्वास्थ्य, शिक्षा का व्यापक प्रचार-प्रसार हो। इसी उद्देश्य तथा जनजागृति लाने हेतु यह दिवस मनाया जाता है।

 

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