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भगवान श्रीकृष्ण की जन्म कथा का प्रसंग सुनकर श्रद्धालु हुए भाव विभोर

सीहोर। शहर के नगर पालिका के समीपस्थ मैदान पर चमत्कारेश्वर महादेव मंदिर समिति के तत्वाधान में जारी सात दिवसीय संगीतमय भागवत कथा के चौथे दिन भगवान श्रीकृष्ण की जन्म कथा का प्रसंग सुनकर श्रद्धालु भाव विभोर हो उठे। भगवान श्रीकृष्ण ने अपने भक्तों का उद्धार व पृथ्वी को दैत्य शक्तियों से मुक्त कराने के लिए अवतार लिया था। इस मौके पर कथा व्यास पंडित देवेन्द्र व्यास ने कहा कि जब-जब पृथ्वी पर धर्म की हानि होती है, तब-तब भगवान धरती पर अवतरित होते हैं। जब अत्याचारी कंस के पापों से धरती डोलने लगी, तो भगवान कृष्ण को अवतरित होना पड़ा। सात संतानों के बाद जब देवकी गर्भवती हुई, तो उसे अपनी इस संतान की मृत्यु का भय सता रहा था। भगवान की लीला वे स्वयं ही समझ सकते हैं। भगवान कृष्ण के जन्म लेते ही जेल के सभी बंधन टूट गए और भगवान श्रीकृष्ण गोकुल पहुंच गए।
उन्होंने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण गोकुल में नित्य ही माखन चोरी लीला करते हैं। मां यशोदा के बार-बार समझाने पर भी श्रीकृष्ण नहीं मानते हैं तो मां यशोदा ने भगवान को रस्सी से बांधना चाहा पर भगवान को कौन बांध सकता है, लेकिन भगवान मां की दयनीय दशा को देखते हुए स्वयं बंध जाते हैं। इसलिए भगवान को न धन, पद व प्रतिष्ठा से नहीं बांध सकता। भगवान तो प्रेम से बंध जाते हैं। पंडित श्री व्यास ने कहा कि सोलह कलाओं के कृष्णावतार में भगवान ने असत्य पर सत्य की विजय और धर्म की स्थापना के लिए अर्जुन का सारथी बनना स्वीकार किया था। सहनशीलता मनुष्य को श्रेष्ठ बनाती है। देवकी और वसुदेव ने अपनी सात संतानों को काल के गाल में जाते हुए देखा और उनका दुख बर्दाश्त किया। इसी के परिणामस्वरुप कृष्ण का प्राकट्य हुआ। उन्होंने कहा कि सतयुग में भगवान गरुण की पीठ पर बैठकर आते हैं जबकि त्रेतायुग में भगवान मानव रुप में मानव मूल्यों को निभाते हुए मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के रुप में आते हैं। श्रीकृष्ण का जन्म मनुष्य जीवन के उद्धार के लिए हुआ है। कंस ने उनके जन्म लेने को रोकने के लिए अथक प्रयास किए लेकिन सफल नहीं हो पाया। अंत में अपने पापों का घड़ा भरने पर श्रीकृष्ण के हाथों मरकर मोक्ष की प्राप्ति की। उन्होंने बताया मनुष्य जीवन सबसे उत्तम माना जाता है। इसी योनी में भगवान भी जन्म लेना चाहते हैं। जिससे वे अपने आराध्य ईश्वर की भक्ति कर सके। श्रीकृष्ण ने भागवत गीता के माध्यम से बुराई व सदाचार के बीच अंतर बताया। ईश्वर को धन दौलत व यज्ञों से कोई सरोकार नहीं है। वह तो केवल स्वच्छ मन से की गई आराधना के अधीन होता है। इस संबंध में जानकारी देते हुए समिति के अध्यक्ष मनोहर राय ने बताया कि शुक्रवार को कथा के पांचवे दिवस गोवर्धन पूजन आदि के प्रसंग का विस्तार से वर्णन किया जाएगा। शुक्रवार को महंत उद्वावदास महाराज भी कथा स्थल पर पहुंचे और उन्होंने भी संदेश और प्रवचन दिए।

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