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स्वर्ग और नर्क इसी संसार में है, जिस घर में शांति हो वही स्वर्ग: पंडित प्रदीप मिश्रा

विठलेश सेवा समिति ने एक लाख से अधिक श्रद्धालुओं को कराया भोजन-प्रसादी

सीहोर। एक बार भगवान शिव से माता पार्वती ने प्रश्न किया कि स्वर्ण और नर्क कहां है तो भगवान शिव ने कहा कि संसार में ही स्वर्ग और नर्क है। हम जिस वातावरण में रहते हैं, वही उसी तरह का माहौल व्याप्त हो जाता है। जिस घर में शांति रहती है, त्याग रहता है, एक-दूसरे के लिए समर्पण रहता है, वहां स्वर्ग है। उक्त विचार कुबेरेश्वर महादेव मंदिर के भव्य परिसर में जारी आठ दिवसीय महोत्सव के दूसरे दिन अंतर्राष्ट्रीय कथा वाचक पंडित प्रदीप मिश्रा ने कहे। सोमवार को विठलेश सेवा समिति की ओर से व्यवस्थापक पंडित समीर शुक्ला, पंडित विनय मिश्रा सहित अन्य ने यहां पर आने वाले एक लाख से अधिक श्रद्धालुओं के लिए भोजन प्रसादी और पेयजल का इंतजाम किया।
उन्होंने कहा कि धर्मशास्त्रों में वर्णित स्वर्ग-नरक सभी को रोमांचित करते हैं, पर आज तक किसी ने देखा नहीं। चाहे ये अन्यत्र भले न हों, पर इस धरती पर अवश्य हैं। दुनिया का हर व्यक्ति इसका अनुभव करता है, पर समझता नहीं। यहीं स्वर्ग जैसे सुख हैं और नर्क जैसे दुख भी। जिस समाज और घर में शांति, सद्भाव और भाईचारा हैं वहीं स्वर्ग है, क्योंकि वहां सुख-समृद्धि है। इसके विपरीत जहां इनका अभाव है वहीं नर्क है, क्योंकि वहां हिंसा, घृणा, द्वेष और अशांति के सिवा कुछ नहीं होता। स्वर्ग और नरक की परिभाषा भी यही है। यह पूर्णतरू मनुष्य पर निर्भर है कि वह किसकी स्थापना करना चाहता है। इसके लिए अन्य कोई कारक जिम्मेदार नहीं।
संत और गुरु का जीवन जन कल्याण के लिए होता –
पंडित श्री मिश्रा ने कहाकि संत और गुरु का जीवन जन कल्याण के लिए होता है। अपने जीवन में ऐसा गुरु रखो जिससे ज्ञान हासिल कर सको, जिससे जीवन में कल्याण हो सके। उन्होंने कहा कि जीवन में जब भी दुख आता है हम भगवान को कोसते हैं, लेकिन दुख हमारे जीवन को निखारने के लिए ही आता है। अगर माता पिता का मार्गदर्शन हमारे जीवन मे है तो आप उलझ नही सकते अगर उलझ भी गए तो उनके आशीर्वाद से सुलझ जाएंगे। हर मनुष्य के जीवन में चार गुरु होते है। जिसमें माता, पिता, शिक्षक और सद्गुरु शामिल है। शास्त्र कहते हैं कि गुरु वह है, जो हमें अंधेरे से उजाले की ओर ले जाए। जो हमें रोशनी प्रदान करे, तो सबसे पहले ऐसा कौन करता है, सबसे पहले यह रोशनी हमें मां दिखाती है। उसके बाद पिता। वहीं हमारे प्रथम गुरु हैं। इसीलिए शास्त्रों में यह भी लिखा है कि माता-पिता का यथायोग्य सम्मान करना चाहिए। जरा सोचो कि अगर हमें हमारे माता-पिता द्वारा कुछ भी सिखाया न जाता तो हमारी क्या स्थिति होती। क्या हम ढंग से चल पाते, बात कर पाते, लिख पाते, व्यवसाय कर पाते। यहां तक कि हम अपने जीवन और इस शरीर की रक्षा कैसे करना है, यह भी नहीं जान पाते। मान-अपमान, प्यार और अहंकार जैसी मूल वृत्तियों को पहचानना भी हमें वही सिखाते हैं। संसार सागर में सबसे बड़ा गुरु भगवान शिव है, उसके विश्वास और आस्था बनाए।

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