मौत के ‘मुस्कान अस्पताल’ जैसे और कितने क्लीनिक?
- आमजनों की मांग: सीएमएचओ कार्यालय तुरंत जारी करे जिले के वैध अस्पतालों की सूची

सीहोर। जिले के बरखेड़ी गांव में अवैध रूप से संचालित मुस्कान अस्पताल में दो वर्षीय मासूम दीक्षा कुशवाहा की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत के बाद सीएमएचओ कार्यालय की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। जहां एक ओर अस्पताल संचालक अशोक विश्वकर्मा पर फिलहाल सिर्फ स्वास्थ्य विभाग के नियमों के उल्लंघन दिसंबर 2024 में बंद करने के आदेश के बाद भी अवैध संचालन के आरोप में एफआईआर दर्ज हुई है, वहीं दूसरी ओर आम नागरिक अब जिले में संचालित फर्जी अस्पतालों की संख्या पर सवाल उठा रहे हैं।
घटना के बाद आम नागरिकों और बुद्धिजीवियों ने सीएमएचओ सुधीर कुमार डेहरिया के कार्यालय से जिले के सभी वैध निजी अस्पतालों और क्लीनिकों की सूची को सार्वजनिक करने की मांग की है। नागरिक रंजीत सिंह ठाकुर ने कहा कि यदि सीएमएचओ कार्यालय वैध अस्पतालों की सूची जारी करता है तो आमजनों को इलाज के लिए गफलत नहीं होगी। साथ ही यह भी पता चल सकेगा कि जिले में मिलीभगत से कितने अवैध अस्पताल संचालित हो रहे हैं।
दुकानदार लक्ष्मीनारायण पंवार का कहना है कि मुस्कान अस्पताल के कारनामे ने साफ कर दिया है कि जिले में अनेक फर्जी निजी क्लीनिक चल रहे हैं। दोबारा ऐसी घटना न हो, इसलिए सीएमएचओ को तुरंत वैध अस्पतालों की सूची जारी करनी चाहिए।
सीएमएचओ की गंभीरता पर सवाल
शिक्षाविद् संतोष सिसोदिया ने सीएमएचओ कार्यालय की कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए कहा जब सीएमएचओ कार्यालय को महज 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित अवैध क्लीनिक का 10 महीने तक पता नहीं चलाए तो उनकी गंभीरता पर सवाल खड़े होना लाजिमी है।
दीक्षा को न्याय का इंतजार
फिलहाल एफआईआर केवल अधिनियम की धारा 5 और 8 के तहत अवैध संचालन के लिए हुई है। मासूम दीक्षा की मौत में लापरवाही के मामले में कार्रवाई के लिए परिजनों और पुलिस को अभी जांच टीम की रिपोर्ट का इंतजार है। सीएमएचओ द्वारा गठित पाँच सदस्यीय जाँच टीम, जिसमें शिशु रोग विशेषज्ञ भी शामिल हैं यह पता लगाएगी कि दीक्षा की मृत्यु अवैध रूप से संचालित अस्पताल की लापरवाही या गलत इलाज के कारण हुई थी या नहीं। इस रिपोर्ट के बाद ही डॉक्टर अशोक विश्वकर्मा पर बच्ची की मौत से संबंधित धाराएं जोड़ी जा सकती हैं। फिलहाल संचालक अभी भी फरार है।
नागरिकों का कहना है कि सीएमएचओ को केवल जांच टीम गठित करने या एफआईआर कराने तक सीमित न रहकर, जिले में स्वास्थ्य सेवाओं की विश्वसनीयता बहाल करने के लिए सभी वैध स्वास्थ्य संस्थाओं की सूची सार्वजनिक करनी चाहिए।