जानिए क्या है पॉक्सो एक्ट और इसमें सजा का प्रावधान….

भारत में यौन उत्पीड़न के मामले हमेशा से देखे जाते रहे हैं। महिलाओं से लेकर छोटी बच्चियां तक यौन उत्पीड़न जैसी घटनाएं लगातार सामने आती हैं। ऐसी ही घटनाओं से नाबालिग बच्चियों को सुरक्षित रखने के लिए पॉक्सो (प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेन्स) एक्ट लाया गया है। ऐसे कई सारे मामले देखने को मिल जाते हैं जिनमें कई बार बड़े से बड़ा नेता, अभिनेता या कोई खिलाड़ी भी शामिल होता है। हालांकि कई बार इसके दुरुपयोग की खबरें भी सामने आती हैं, लेकिन यौन उत्पीड़न से सुरक्षा के लिए ये कानून बेहद ही जरूरी है।

क्या है पॉक्सो एक्ट?
दरअसल, पॉक्सो एक्ट का पूरा नाम प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेन्स एक्ट है। इसे हिन्दी में बाल यौन अपराध संरक्षण अधिनियम भी कहा जाता है। इस कानून को वर्ष 2012 में लाया गया था। इसके लाने की सबसे बड़ी वजह यही थी कि इससे नाबालिग बच्चियों को यौन उत्पीड़न के मामलों में संरक्षण दिया जा सके। हालांकि ये कानून ऐसे लड़के और लड़कियों दोनों पर लागू होता है, जिनकी उम्र 18 वर्ष से कम है। वहीं पॉक्सो एक्स के तहत दोषी पाए जाने पर कड़ी सजाओं का भी प्रावधान किया गया है। पहले इसमें मौत की सजा का प्रावधान नहीं किया गया था, लेकिन बाद में इस कानून में उम्रकैद जैसी सजा को भी जोड़ दिया गया।

पॉक्सो एक्ट में क्या है सजा का प्रावधान?
पॉक्सो एक्ट में कई तरह की सजाओं का प्रावधान किया गया है। इसमें दोषी को 20 साल की जेल से लेकर उम्रकैद तक हो सकती है। इसके अलावा जुर्माना भी देना पड़ सकता है।
– किसी बच्चे का इस्तेमाल पोर्नाेग्राफी के लिए करने के लिए दोषी पाए जाने पर 5 साल की सजा और जुर्माना देना पड़ सकता है।
– बच्चे का इस्तेमाल पोर्नाेग्राफी के लिए करते हुए दूसरी बार पकड़े जाने पर 7 साल की सजा और जुर्माना अलग से देना पड़ सकता है।
– किसी बच्चे की अश्लील तस्वीर को इकट्ठा करना या उसे किसी के साथ शेयर करने पर भी सजा का प्रावधान किया गया है।
– ऐसे मामलों में दोषी को तीन साल की जेल हो सकती है या फिर जेल और जुर्माना दोनों की सजा भी हो सकती है।
– 16 साल से कम उम्र के बच्चे के साथ पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट का दोषी पाए जाने पर 20 साल की जेल से लेकर उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान किया गया है।
– अगर इस मामले में अगर नाबालिग की मौत हो जाती है तो दोषी को मौत की सजा तक दी जा सकती है।
– प्रवेशन लैंगिक हमला (धारा3)- कम से कम 10 वर्ष का कारावास, जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है एवं जुर्माना (धारा 4)।
– गुरूत्तर प्रवेशन लैंगिक हमला (धारा 5)- कम से कम 20 वर्ष का कारावास, जिसे आजीवन करावास/मृत्यु दंड तक बढ़ाया जा सकता है एवं जुर्माना (धारा 6)
– लैंगिक हमला (धारा 7)- कम से कम 3 वर्ष का कारावास, जिसे 5 वर्ष तक के कारावास तक बढ़ाया जा सकता है एवं जुर्माना (धारा 8)
– गुरूत्तर लैंगिक हमला (धारा 9)- कम से कम 5 वर्ष का कारावास, जिसे 7 वर्ष तक के कारावास तक बढ़ाया जा सकता है व जुर्माना (धारा 10)
– लैंगिक उत्पीड़न (धारा 11)- 3 वर्ष का कारावास की सजा तथा जुर्माना (धारा 12)
– बच्चों का अश्लील उद्देश्यों/पोर्नाेग्राफी के लिए इस्तेमाल करना (धारा 13), 5 वर्ष का कारावास तथा उत्तरवर्ती अपराध के मामले में 7 वर्ष का कारावास तथा जुर्माना (धारा 14-1)
– बच्चों का अश्लील उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल करते समय यौन प्रताड़ना के गंभीर मामले (धारा 14-2)- कम से कम 10 वर्ष का कारावास जिसे आजीवन कारावास/मुत्यु दंड तक बढ़ाया जा सकता है व जुर्माना।
– बच्चे का अश्लील उद्देश्यों हेतु इस्तेमाल करते समय गुरूतर प्रवेशन लैंगिक हमले के अति गंभीर मामले- (धारा 14-3)रू सश्रम आजीवन कारावास व जुर्माना।
– बच्चे का अश्लील उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल करते समय यौन प्रताड़ना के मामले- (धारा 14-4) कम से कम 6 वर्ष का कारावास, जिसे 8 वर्ष के कारावास तक बढ़ाया जा सकता है व जुर्माना।
– बच्चे का अश्लील उद्देश्यों हेतु इस्तेमाल करते समय गुरूत्तर लैंगिक हमले के अति गंभीर मामले (धारा 14-5), कम से कम 8 वर्ष का कारावास जिसे 10 वर्ष के कारावास तक बढ़ाया जा सकता है व जुर्माना।
– बच्चे से संबंधित किसी भी अश्लील सामग्री को व्यापारिक उद्देश्यों के लिए रखना (धारा 15) 3 वर्ष कारावास अथवा जुर्माना अथवा दोनों।
– एक्ट के अंतर्गत अपराध के लिए उकसाने हेतु भी दंड का प्रावधान है, जो कि अपराध करने के समान ही है। इसमें बच्चों की यौन उत्पीड़न हेतु अवैध खरीद-फरोख्त भी शामिल है (धारा 16)
– किसी घटित अपराध की रिपोर्ट न दर्ज करना (धारा 21-1)रू 6 माह तक का कारावास अथवा जुर्माना अथवा दोनों।

कौन हो सकता है दोषी –
पॉक्सो एक्ट के तहत सिर्फ पुरुषों को ही सजा नहीं दी जाती, बल्कि अगर किसी महिला द्वारा भी यौन अपराधों का कृत्य किया गया है तो दोषी पाए जाने पर महिला को भी उतनी ही सजा सुनाई जाती है, जितनी कि किसी पुरुष को। इसके अलावा पीड़ित भी सिर्फ कोई बच्ची नहीं, बल्कि ये कोई बच्चा भी हो सकता है। नाबालिग बच्चों के साथ भी यौन उत्पीड़न के कई मामले सामने आते रहते हैं। ऐसे में इस कानून के तहत दोष करने पर सभी के लिए समान सजा का प्रावधान है, जबकि पीड़ित होने पर भी बच्चा या बच्ची के लिए न्याय का एक ही प्रावधान किया गया है।