
सीहोर। गुरू कृपा होने पर ही मोक्ष मिलता है, हमें कोई राजा-महाराजा के चक्कर में नहीं में नहीं आना। हमें तो सिर्फ देवाधिदेव महादेव के ही चक्कर में पड़ना है। कोई काम नहीं आएगा। न भाई न मां-बाप न बहन न पत्नी और न ही परिवार। अगर कोई काम आएगा तो सिर्फ महाकाल। उन्हीं की कृपा से सारे काम होंगे। जीवन में कोई भी तकलीफ हो तो गुरु मंत्र का जाप करना चाहिए, जिससे सारे कष्टों का निवारण होगा। उक्त विचार जिला मुख्यालय के समीपस्थ चितावलिया हेमा स्थित निमार्णाधीन मुरली मनोहर एवं कुबेरेश्वर महादेव मंदिर में बुधवार से आरंभ हुई श्री गुरु शिव महापुराण के पहले दिन भागवत भूषण पंडित प्रदीप मिश्रा ने कहे। कथा के पहले दिन यहां पर बने 1000 फीट भव्य पंडाल खचाखच श्रद्धालुओं से भरा हुआ था। उन्होंने गुरु और गुरु मंत्र के महत्व को बताते हुए कहा कि एक तरफ गुरु है और दूसरी तरफ गुरु मंत्र। हमें गुरु को नहीं गुरु के मंत्र को जीवन में धारण करना है। गुरु मंत्र के महत्व को पकड़कर रखना है। राम से बढ़ा राम का नाम, यह भजन हम जपते है। उन्होंने कहा कि वह स्वयं भी गुरु दीक्षा लेने 12 रुपए लेकर इंदौर गए थे। उस समय में स्थिति काफी विषम थी, जब गुरु ने मंत्र दिया और कहा कि जहां भी तुम कथा करेगा, तेरे पंडाल छोटे पड़ जाऐंगे।
गुरूभक्ति का पड़ता है प्रभाव-
पंडित प्रदीप मिश्रा ने कहा कि हमारे जीवन में गुरु भक्ति का काफी प्रभाव पड़ता है। कौरवों की सभा में जब द्रौपदी को खींचकर लाया गया तो उसने उस समय भगवान को याद नहीं किया। उसे अपने पांचो पति पर भरोसा था। जब उसने पतियों की ओर देखा तो पाण्डवों ने सर झुका लिया। वे तो जुए में पत्नी को भी हार चुके थे, फिर द्रौपदी ने सभा में बैठे द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, भीष्म पितामह आदि से उम्मीद लगाई। उधर से भी मदद नहीं मिली तो अपने बल पर उसने भरोसा किया। अंतत: जब उसे लगा की इज्जत बेचने वाली नहीं है तब उसने भगवान कृष्ण को पुकारा। फिर भगवान ने उसकी लाज बचाई। भगवान और अपने गुरु के दिए मंत्र को याद करना चाहिए। विषम परिस्थितियों में भगवान और उसके द्वारा दी गई शिक्षा काम आती है।
देवर्षि नारदजी की बताई कथा-
पंडित प्रदीप मिश्रा ने शिव महापुराण के दौरान कहा कि देवर्षि नारद जी के विषय में ऐसा प्रसिद्ध है कि अपने तप के प्रभाव से उन्हें ऐसी शक्ति प्राप्त थी कि वे इस शरीर से ही वैकुण्ठ चले जाते थे। एक बार देवर्षि नारद जी जब वैकुण्ठ गए तो भगवान विष्णु ने हमेशा की तरह उनका हार्दिक अभिनन्दन किया और उन्हें बैठने के लिये आसन दिया। भगवान विष्णु से कुछ देर वातार्लाप करने के उपरान्त जब नारद जी विदा हुए तो भगवान ने माता लक्ष्मी आदि से जहां नारद जी बैठे थे, उस स्थान की ओर संकेत करते हुए कहा-नारद जी के बैठने से यह स्थान अपिवत्र हो गया है अतएव इस स्थान को अच्छी तरह धोकर पवित्र कर दो। इधर नारद जी को कोई बात याद आ गई। वे अभी दूर नहीं गए थे, अत: पुन: वापिस लौट आए, परन्तु वह स्थान जहाँ वे बैठे थे, साफ करते देखकर विस्मय से खड़े रह गए। कुछ क्षण वे मौन खड़े रहे, फिर भगवान के चरणों में निवेदन किया-प्रभो। एक तरफ तो मेरा इतना सम्मान और दूसरी तरफ मेरा इतना अनादर कि जिस जगह पर मैं बैठा था उसे साफ कराया जा रहा है।