सीहोर. ऑनलाइन मार्केटिंग के कारण जहां स्थानीय व्यापारियों की दुकानेें बंद होने की कगार पर आ गईं हैैं तो वहीं उनका व्यापार भी पूरी तरह चौपट हो रहा है। ऑनलाइन व्यापार के कारण वस्तुओं की गुणवत्ता भी गिर रही है। अब तो दवाइयां भी ऑनलाइन बुलाई जा रही हैं, जो कि लोगों की सेहत केे साथ खिलवाड़ है। बिना डॉक्टर केे पर्चे से दवाइयां बुलाकर लोगों को दी जा रही है, जिसके कारण लोगों की जानें भी जा रही हैं। यह कहना है सीहोर जिला दवा विक्रेेता संघ के अध्यक्ष ओम राय का। सीहोर जिला दवा विक्रेेता संघ ने जिला प्रशासन को मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन भी सौंपा है, जिसमें उन्होंने मांग की है कि दवाइयोें की ऑनलाइन बिक्री प्रतिबंधित की जाए।
इस संबंध में ऑल इंडिया ऑर्गनाइजेशन ऑफ केमिस्ट्स एंड ड्रगिस्ट्स के महासचिव राजीव सिंघल ने बताया कि गुजरात उच्च न्यायालय ने केंद्र और राज्य सरकारों के साथ-साथ ई-फार्मेसी कंपनियों को मरीज और ई-फार्मेसी कंपनियों द्वारा रखे गए चिकित्सा पेशेवरों के मध्य कॉल की व्यवस्था करने की प्रक्रिया के दुरुपयोग के संबंध में दर्ज एक मामले पर, जहां एक छद्म व्यक्ति जिसकी कोई पहचान नहीं है वह इंटरनेट पर मरीज से चर्चा के आधार पर दवाओं का एक प्रिस्क्रिप्शन लिखता है। इस सीमित समय में किए फ़ोन पर परामर्श के दौरान उस तथा कथित डॉक्टर की पहचान नहीं होती है और वे डॉक्टर के पर्चे जारी करने से पहले कोई मेडिकल रिपोर्ट नहीं देखते हैं। इसका सीधा-सीधा असर नागरिकों के स्वास्थ्य पर पड़ता है। इस हेतु माननीय गुजरात उच्च न्यायालय ने नोटिस जारी किया है। याचिका में यह भी प्रस्तुत किया गया था कि इस तरह के प्रिस्क्रिप्शन की कानून की नजर में कोई मान्यता नहीं है और राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (पूर्व में भारतीय चिकित्सा परिषद) द्वारा उन डॉक्टरों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए जो इस तरह के प्रिस्क्रिप्शन प्रदान करते हैं जो वास्तविक नहीं हैं। यह भी कहा गया था कि यह भी ज्ञात नहीं है कि ऐसे चिकित्सा पेशेवरों के पास अपने लेटरहेड पर दवाओं को लिखने की विशेष योग्यता है। उपरोक्त याचिका में यह प्रस्तुत किया गया था कि ड्रग्स और प्रिस्क्रिप्शन दवाओं को बेचने वाली वेबसाइटों के पास ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक एक्ट, 1940 की धारा 18 के तहत आवश्यक लाइसेंस नहीं है, जिसे ड्रग्स रूल्स, 1945 के नियम 61 और 62 के नियम के साथ दिया जाता है। इसके अलावा, यह भी प्रस्तुत किया गया था कि यह यह चौंकाने वाला है कि ऑनलाइन फार्मेसियों में कुछ निर्धारित दवाएं बिना किसी नुस्खे के दी जाती हैं, जिन्हें 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चे द्वारा ऑर्डर किया जा सकता है और जो क़ि उनके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होगा। इसके अलावा यह भी प्रस्तुत किया गया कि ई-फार्मेसी फर्मों को लाइसेंस जारी करने के संबंध में प्रावधान भी नहीं है, क्योंकि अधिनियम में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। गुजरात उच्च न्यायालय का यह आदेश दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा 12 दिसंबर 2018 को जारी स्थगन आदेश के अनुरूप है, जहां बिना लाइसेंस के दवाओं की ऑनलाइन बिक्री पर रोक लगाई गई थी और बाद की तारीखों पर 8 जनवरी 2018 और 6 फरवरी 2019 को स्थगन आदेश जारी रखा गया था। यह वास्तव में बहुत खेदजनक है और दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा बिना लाइसेंस के दवाओं की ऑनलाइन बिक्री पर रोक लगाने के बावजूद अभी भी सरकार के समर्थन और कॉर्पाेरेट फंडिंग के माध्यम से ऑनलाइन फ़ार्मेसीज का कार्य जारी है। इसका हमारे नागरिकों के स्वास्थ्य पर गंभीर दुष्प्रभाव पड़ रहे हैं। आज तक दवाओं को ऑनलाइन बेचने के लिए कोई लाइसेंस निर्धारित नहीं किया गया है और सभी ऑनलाइन फार्मेसी अवैध क्षेत्र में चल रही हैं। ऑल इंडिया ऑर्गनाइजेशन ऑफ केमिस्ट्स एंड ड्रगिस्ट्स नियमित रूप से देश की हमारी सरकार के साथ पत्राचार कर रही हैं और सरकार से उच्च न्यायालय के आदेश को लागू करने और हमारे नागरिकों के स्वास्थ्य की खातिर ई-फार्मेसियों द्वारा इस गैरकानूनी गतिविधि को और कानून के दुरुपयोग को रोकने के लिए ऑल इंडिया ऑर्गनाइजेशन ऑफ केमिस्ट्स एंड ड्रगिस्ट्स ने सदैव मांग की है। इस संबंध में जयपुर, उत्तरांचल और अभी हाल में भोपाल और अन्य जगह के गलत दवा देने के प्रकरण भी सरकार को प्रस्तुत किए गए हैं।