परंपरा एवं उत्साह के साथ मनाया रक्षाबंधन व भुजरिया पर्व
सीहोर/रेहटी। प्रतिवर्ष के अनुसार इस वर्ष भी रक्षाबंधन एवं भुजरिया पर्व परंपरानुसार एवं उत्साह के साथ मनाया गया। इस दौरान रक्षाबंधन पर बहनों ने भाइयों को राखी बांधी तो वहीं भाइयों ने भी बहनों को गिफ्ट दिए। अगले दिन भुजरिया पर्व भी मनाया गया। इस दौरान भुजरिया पूजा हुई तो वहीं छोटों ने बड़ों को भुजरिया देकर आशीर्वाद लिया एवं आपस में लोग गले भी मिले। इससे पहले ग्राम सोयत में गांव की समस्त भुजरिया टोकरियां गांव के स्व बृजलाल जी शर्मा (कानूनगो) के निवास पर पहुंची। यहां पर घर व गांव की महिलाओं ने भुजरिया टोकरियों की पूजा करके परिक्रमा की। यहां पर वर्षों से यह क्रम चला आ रहा है कि गांव की सभी भुजरिया गांव के ब्राह्मण शर्मा (कानूनगो) परिवार के निवास पर पहुंचती है। यहां पर पूजा के बाद सभी भुजरिया टोकरियों को मंदिर के पास स्थित छोटी सरोवर में ले जाया जाता है एवं विसर्जन किया जाता है।
मंदिर से होती है शुरुआत –
विसर्जन के बाद मंदिर में श्रीहनुमानजी, शीतला माता एवं भगवान शिव पर भुजरिया चढ़ाकर शुरुआत होती है और इसके बाद सभी आपस में एक-दूसरों को भुजरिया देते हैं। इस दौरान बड़े जहां छोटों से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं तो वहीं बराबर के लोग आपस में गले मिलकर इस पर्व को मनाते हैं। फिर गांव में घर-घर जाकर एक-दूसरे को भुजरिया भी दिया जाता है। खासकर दुखी परिवारों के घर जाकर भुजरिया देने की खास परंपरा है।
रक्षाबंधन भी धूमधाम से मनाया –
भुजरिया से एक दिन पहले रक्षाबंधन का त्योहार भी उत्साह एवं धूमधाम के साथ मनाया गया। इस दौरान बहनों ने भाइयों की कलाइयों पर रक्षा सूत्र बांधा तो वही भाइयों ने भी बहनों को गिफ्ट एवं नगद राशि देकर उनकी रक्षा का वचन लिया। इस दौरान कई भाई दूर-दूर से अपनी बहनों के घर पहुंचे और उनसे रक्षा सूत्र बंधवाया। बहनों ने भी भाइयों के लिए गिफ्ट लिए एवं राखी बांधने के साथ ही उन्हें गिफ्ट भी दिए। बहनों ने राखी बांधकर भाइयों की आरती उतारी व मिठाई भी खिलाई। रक्षाबंधन की शुरुआत दोपहर को डेढ़ बजे के बाद से हो गई, जो रात्रि करीब 11 बजे तक चलती रही। घरों में बहनों ने अपने भाइयों के लिए अच्छे-अच्छे पकवान भी बनाए।
खत्म हो रही भुजरिया पर परपंराएं, नहीं खेले जाते अब डंडे –
समय के साथ-साथ धीरे-धीरे त्यौहारों का उत्साह जहां कम होता जा रहा है तो वहीं इन त्यौहारों पर चली आ रही परंपराएं भी समाप्त हो रही है। ऐसी ही परंपरा भुजरिया पर्व की भी थी। सीहोर जिले की भैरूंदा जनपद पंचायत के तहत आने वाले ग्राम सोयत में भी भुजरिया पर्व पर डंडे खेलने की परंपरा थी, लेकिन अब धीरे-धीरे यह परंपरा गौंढ़ होती जा रही है। आज की नई पीढ़ी इन परंपराओं को निभाने में बेहद पीछे है। गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि पहले रक्षाबंधन के अगले दिन पढ़ने वाली भुजरिया पर डंडे खेले जाते थे। कई बार तो रात-रातभर ये डंडे खेलते थे। इस दौरान भजन एवं ढोल की थाप पर डंडे खेलते हुए नाचते थे।
डंडा प्रतियोगिताएं भी होती थीं-
पहले गांव सोयत सहित अन्य ग्रामीण क्षेत्रों में डंडा प्रतियोगिताओं का भी आयोजन होता था, लेकिन अब समय के साथ में यह प्रतियोगिताएं भी पूरी तरह से बंद हो गई हैं। इन प्रतियोगिताओं में एक से बढ़ एक डंडा खेलने वाली मंडलियां आती थीं और अपना प्रदर्शन करके ईनाम भी जीतती थीं। प्रथम, द्वितीय, तृतीय एवं सांत्वना पुरस्कार दिए जाते थे, लेकिन अब यह प्रतियोगिताएं भी पूरी तरह से बंद हो गईं हैं।
ऐसे होते थे डंडे एवं खेलने वाले –
एक समय में डंडा मंडली के सक्रिय सदस्य रहे ग्राम सोयत के चंपालाल लोवंशी ने बताया कि पहले गांव की डंडा टीम क्षेत्र में प्रसिद्ध थी। कई जगह प्रतियोगिताओं में जाते थे एवं पुरस्कार भी जीतते थे, लेकिन अब समय के साथ में यह खेल ही बंद होने की कगार पर है। हालांकि अन्य ग्रामीण क्षेत्रों में अभी इस परंपरा का निर्वाह किया जा रहा है। डंडा खेलने वाली टीम के सदस्य 8, 10, 12, 14 या इससे अधिक सम संख्या में होते थे। सभी लोग हाथों में एक-एक हाथ के डंडे रखते थे और आपस में इन डंडों को लड़ाते थे। जैसे-जैसे ढोलक एवं ढोल की थाप तेज होती जाती तो यह डंडे भी तेजी से लड़ाए जाते थे। इनको खेलने वाले लोग भी बेहद मजबूत एवं अनुभवी होते थे।