
सीहोर। क्या आपको पता है कि आपकी मेहनत की कमाई का कोई हिस्सा जिले के किसी बैंक में धूल फांक रहा है. यह सुनने में अजीब लग सकता है, लेकिन जिले के विभिन्न बैंकों में 34 करोड़ 12 लाख रुपये की भारी-भरकम राशि ऐसी है जिसका कोई दावेदार ही नहीं मिल रहा। जिले में कुल 1,69,310 खाते ऐसे हैं, जो वर्षों से निष्क्रिय पड़े हैं। अब प्रशासन इन पैसों को उनके असली मालिकों तक पहुंचाने के लिए आपकी पूंजी-आपका अधिकार अभियान के तहत जंग छेड़ चुका है।
जिला पंचायत सभाकक्ष में आयोजित एक उच्च स्तरीय बैठक में आरबीआई की क्षेत्रीय निदेशक रेखा चांदनांवेली और कलेक्टर बालागुरू के. ने इस अभियान की समीक्षा की। बैठक में साफ निर्देश दिए गए कि बैंक अधिकारी हाथ पर हाथ धरे न बैठें, बल्कि सक्रिय होकर खाताधारकों को खोजें। कलेक्टर ने एलडीएम को निर्देश दिए कि विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में बैंक कॉरेस्पोंडेंट के माध्यम से घर-घर जाकर संपर्क किया जाए।
शासकीय और निजी खातों की लंबी लिस्ट
एलडीएम जयदीप भट्टाचार्य ने बैठक में चौंकाने वाले आंकड़े साझा किए। उन्होंने बताया कि इन निष्क्रिय खातों में केवल आम जनता के ही नहीं, बल्कि सरकारी विभागों, स्कूलों, पंचायतों, नगरीय निकायों और स्व.सहायता समूहों के भी करोड़ों रुपये फंसे हुए हैं। कई बार प्रबंधन बदलने या जानकारी के अभाव में ये खाते संचालित नहीं हो पाते और धीरे-धीरे ‘डेड’ हो जाते हैं।
बंद खाते के लिए उद्गम का सहारा
बैठक में बताया गया कि अगर किसी खाते में 2 साल तक लेन-देन न हो तो वह निष्क्रिय हो जाता है। लेकिन यदि यह अवधि 10 साल पार कर जाए तो बैंक यह पैसा आरबीआई के जमाकर्ता शिक्षण और जागरूकता फंड में भेज देता है। ऐसे लावारिस पैसे को खोजने के लिए आरबीआई ने उद्गम पोर्टल शुरू किया है, जहां कोई भी व्यक्ति अपने या अपने परिजनों के पुराने खातों की जानकारी ले सकता है।