Newsआष्टाइछावरजावरनसरुल्लागंजबुदनीमध्य प्रदेशराजनीतिकरेहटीसीहोर

सीहोर विधानसभा: त्रिकोणीय मुकाबला बनाता है रोचक माहौल

भाजपा-कांग्रेस के बीच होता है मुख्य मुकाबला, निर्दलीय बिगाड़ते हैं समीकरण

सुमित शर्मा, सीहोर
मध्यप्रदेश में इस वर्ष के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर जहां राजनीतिक दलों की तैयारियां शुरू हो गई हैं तो वहीं चुनाव मैदान में ताल ठोकने वाले उम्मीदवार भी अपनी चुनावी तैयारियों को लेकर सक्रिय हैैं। जनता तक पहुंच बनाने के लिए वे जहां गली-गली घूम रहे हैं, लोगोें की परेशानियां सुन रहे हैं, सार्वजनिक सहित व्यक्तिगत कार्यक्रमों में शामिल हो रहे हैैं तो वहीं उनके दुख-दर्द के सहभागी बनकर उनसे कुशलक्षेम भी पूछ रहे हैैं। विधानसभा चुनाव की तैयारियों के बीच आज हम जानेंगे राजधानी से सटेे हुए सीहोर जिलेे की सीहोर विधानसभा सीट की स्थिति, जहां पर हमेशा से त्रिकोेणीय मुकाबला देखनेे कोे मिलता रहा है। वैसे तोे मुख्य मुकाबला हमेेशा से भाजपा और कांग्रेस के बीच में ही होता रहा है, लेकिन यहां पर निर्दलीय उम्मीदवार की भूमिका अहम होती है। भाजपा-कांग्रेस के समीकरणोें को बिगाड़ने में निर्दलीय प्रत्याशी अहम भूमिका निभाते हैैं। यहां पर निर्दलीय प्रत्याशी ने चुनाव मैदान में उतरकर जीत भी दर्ज कराई है, लेकिन चुनाव के बाद उन्होंने भाजपा और कांग्रेस का दामन भी थाम लिया।
सीहोर जिले का अपना एक इतिहास रहा है। सीहोर विंध्याचल रेंज की तलहटी में बसा शहर है, जिसका इतिहास गौरवमयी है। यहां पर योग के संस्थापक महर्षि पतंजलि द्वारा साधना करने व भगवान श्रीराम, लक्ष्मण और सीता के वन गमन करने का उल्लेख भी लोक साहित्य में मिलता है। सीहोर का प्राचीन नाम सिद्धपुर रहा है, जो कभी अवंती का एक हिस्सा था। मगध राजवंश से लेकर नवाबी दौर व अंग्रेजों के शासनकाल तक सीहोर सत्ता के एजेंट के रूप में अहम भूमिका अदा करता रहा है। देश आजाद हुआ, लेकिन सीहोर की भूमिका नहीं बदली। ये भी विडंबना ही है कि बीते 46 सालों में इस सीट से भाजपा, कांग्रेस के विधायक बनतेे रहे, लेकिन यहां से मंत्री कोई भी नहीं बन सका। सीहोर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का गृह जिला है। सीहोर विधानसभा सीट की खास बात यह कि कांग्रेस हो या भाजपा दोनों के लिए यह सीट प्रयोगशाला की तरह रही। स्थानीय मूल के नेताओं की जगह बाहरी या दूसरे दलों से आए नेता विधायक बनते रहे। मध्यप्रदेश गठन के साथ ही सीहोर विधानसभा अस्तित्व में आई। शुरुआती एक दशक तक यह कांग्रेस के प्रभाव वाली सीट रही, तब भोपाल व इछावर सीहोर में शामिल थे। 70 के दशक में यहां जनसंघ का प्रभाव बढ़ा और आपातकाल के दौर के बाद तो यह सीट पूरी तरह पहले जनता पार्टी और बाद में बीजेपी का गढ़ बन गई। कांग्रेस यहां अंतिम बार 1985 में चुनाव जीती थी। तब कांग्रेस के शंकरलाल साबू चुनाव जीते थे। इसके बाद से बीते 33 सालों में यहां ‘कमल’ ही खिला। 93 के चुनाव में रमेश सक्सेना व 2013 के चुनाव में सुदेश राय निर्दलीय चुनाव जीते, लेकिन बाद में ये दोनों भी बीजेपी के हो गए। इस तरह इस सीट पर अब तक हुए 14 बार के चुनाव में कांग्रेस सिर्फ चार चुनाव ही जीत सकी। शेष चुनाव में जनसंघ, जनता पार्टी, निर्दलीय व बीजेपी ही चुनाव जीतती रही है।
आयातित नेताओं को भी मिलती रही जीत-
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इस वक्त मप्र भाजपा के पोस्टर मेन हैं। भोपाल से लेकर दिल्ली तक पार्टी उनके भरोसे एमपी में पांचवी बार सरकार बनाने की तैयारी में है। सीहोर मुख्यमंत्री का गृह जिला है। बावजूद इसके बीते तीन दशक से सीहोर से भाजपा पूरी तरह गायब है। बीते 6 चुनावों में भाजपा नेतृत्व कोई ऐसा कार्यकर्ता तैयार नहीं कर सका, जो विधानसभा का चुनाव लड़ सके। पार्टी को हर बार आयातित चेहरे को ही अपना उम्मीदवार बनाना पड़ा। यही दर्द कांग्रेस के चाहने वालों व उसके कार्यकर्ताओं का भी है। सीहोर मूल के नेताओं के साथ इस पक्षपात की शुरुआत 1972 में हुई, जब भोपाल निवासी अजीज कुरैशी को कांग्रेस ने सीहोर से अपना उम्मीदवार बनाया और वह जीत भी गए। अगले चुनाव में जनता पार्टी ने भोपाल से सविता वाजपेयी को भेजा और वे भी चुनाव जीत गईं। इसके बाद 1980 में पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा नीमच छोड़कर सीहोर पहुंचे और विजयी हुए। सीहोर में बीते तीन दशक से किसी मूल भाजपाई को टिकट नहीं मिला। कहने को यह बीजेपी का गढ़ है, लेकिन लंबे अर्से से यहां हमेशा दूसरे दल से आए नेता ही पार्टी के उम्मीदवार बनते रहे। बानगी देखिए कि 1990 के चुनाव में कांग्रेस के मदनलाल ने बीजेपी का दामन थामा और चुनाव भी लड़ा। उस वक्त की राम लहर का उन्हें फायदा मिला। मदनलाल ने कांग्रेस के पूर्व विधायक शंकरलाल साबू को करारी शिकस्त दी। वर्ष 1993 में फिर त्यागी और साबू आमने-सामने थे। इस चुनाव में कांग्रेस के बागी नेता रमेश सक्सेना ने बीजेपी, कांग्रेस दोनों को किनारे कर दिया। सक्सेना का विधायक बनना सीहोर की राजनीति का टर्निंग पाइंट था। 1998 के चुनाव में सक्सेना बीजेपी के हो गए। इसके बाद बीजेपी के टिकट पर सक्सेना 1998, 2003 और 2008 में सीहोर से विधायक चुने गए। वर्ष 2013 के चुनाव के ठीक पहले एक मामले में सक्सेना को सजा हुई तो भाजपा ने उनकी पत्नी उषा सक्सेना को अपना उम्मीदवार बनाया। कांग्रेस ने नए चेहरे हरीश राठौर को मौका दिया। बीस साल बाद कांग्रेस में फिर बगावत हुई। इस बार उसके बागी सुदेश राय ने 1993 के घटनाक्रम को दोहराया व विधायक बने। यही नहीं विधायक बनते ही वह भी सक्सेना की तरह बीजेपी के हो गए और आज भी हैं। वह दो बार से बीजेपी के विधायक हैं। हैरत की बात यह कि 1993 और 2013 दोनों बार बगावत कांग्रेस में ही हुई। दोनों बार उसके बागी ही जीते, लेकिन उन्हें अपनाया बीजेपी ने। इससे कांग्रेस की टिकट वितरण रणनीति पर भी सवालिया निशान लगे।
रमेश सक्सेना के ईद-गिर्द घूूमती रही राजनीति-
रमेश सक्सेना की भाजपा में आमद के बाद जिले में भाजपा की राजनीति उनके इर्द-गिर्द ही रही। ऐसा 2013 तक हुआ। इन 20 सालों में जनसंघ और जनता पार्टी के कार्यकर्ता घर बैठते गए। नगर पालिका चुनाव में भी यही हुआ। 2015 के चुनाव में भाजपा ने जसपाल अरोरा की पत्नी को टिकट दिया। जसपाल कांग्रेस के टिकट पर नपा अध्यक्ष रह चुके थे। एक वक्त ऐसा आया कि सीहोर में कांग्रेस से आए सक्सेना, राय और अरोरा तीनों ही सत्ता के केंद्र बन गए।
वहीं, मूल भाजपाई सुदर्शन महाजन, महेंद्र सिंह, मदनलाल त्यागी, श्रीकिशन मुनीम, हीरालाल साहू, गौरव सन्नी महाजन, बद्री प्रसाद चौरसिया आदि हाशिए पर रहे। इसका खामियाजा भाजपा ने हाल ही में हुए नगरीय निकाय चुनाव में भी भुगता। सीहोर विधानसभा क्षेत्र में जिला पंचायत सदस्य की तीनों सीट भाजपा हार गई। ये संकेत हैं कि आगामी चुनाव में टिकट वितरण को लेकर सतर्कता नहीं बरती गई तो सीहोर में तीन दशक का इतिहास बदल भी सकता है।

ये है सीहोर विधानसभा की स्थिति-
1957 उमराव सिंह, कांग्रेस
1962 इनायतुल्ला खान कांग्रेस
1967 आर मेवाड़ा जनसंघ
1972 अजीज कुरैशी कांग्रेस
1977 सविता बाजपेयी जनता पार्टी
1980 सुंदरलाल पटवा बीजेपी
1985 शंकर लाल कांग्रेस
1990 मदनलाल त्यागी बीजेपी
1993 रमेश सक्सेना निर्दलीय
1998 रमेश सक्सेना बीजेपी
2003 रमेश सक्सेना बीजेपी
2008 रमेश सक्सेना बीजेपी
2013 सुदेश राय निर्दलीय
2018 सुदेश राय बीजेपी

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button