सीहोर। जिला मुख्यालय के समीपस्थ चितावलिया हेमा स्थित निर्माणाधीन मुरली मनोहर एवं कुबेरेश्वर महादेव मंदिर में हर साल की तरह इस साल भी शरद पूर्णिमा के पावन अवसर हर साल की तरह इस साल भी आस्था और उत्साह के साथ शरद पूर्णिमा का पर्व मनाया गया। इस मौके पर यहां पर करीब 10 हजार से अधिक श्रद्धालुओं को खीर, पूड़ी, सब्जी और खिचड़ी की प्रसादी का वितरण किया गया। उक्त आयोजन भागवत भूषण पंडित प्रदीप मिश्रा के निर्देशानुसार विठलेश सेवा समिति के पंडित दीपक मिश्रा, विनय मिश्रा और समीर शुक्ला सहित अन्य के द्वारा समिति के सैकड़ों की संख्या में सदस्यों के द्वारा किया था।
इस संबंध में विठलेश सेवा समिति के मिडिया प्रभारी प्रियांशु दीक्षित ने बताया रविवार को शरद पूर्णिमा के अवसर पर यहां पर आने वाले श्रद्धालुओं को भागवत भूषण पंडित श्री मिश्रा के निर्देश पर भगवान के भोग के पश्चात खीर सहित अन्य भोजन सामग्री का वितरण किया गया। करीब पांच क्विंटल दूध का वितरण दोपहर तीन बजे तक दस हजार से अधिक श्रद्धालुओं को किया गया था, इसके अलावा खीर वितरण का आयोजन देर रात्रि तक जारी रहा। देर शाम शरद पूर्णिमा उत्सव श्रद्धा व भक्ति के साथ मनाया गया। प्रसाद स्वरूप खीर वितरण से पूर्व भक्ति गीतों के साथ बाबा का दरबार सजाया गया। इस दौरान विशेष रूप से बाबा की आरती एक दर्जन से अधिक दीपकों से की गई। पौराणिक मान्यता के अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा की किरणों से अमृत की वर्षा होती है। उसी के फलस्वरूप खीर का प्रसाद बनाकर चन्द्रमा के किरणों के नीचे रखा जाता है। उसके बाद भगवान का भोग लगाकर वितरण किया जाता है। शरद पूर्णिमा का धार्मिक एवं वैज्ञानिक महत्व भी है।
शरद पूर्णिमा पर कुबेरेश्वरधाम पर लगा मेला- श्रद्धालुओं को भोजन प्रसादी के साथ खीर का वितरण
रविवार को शरद पूर्णिमा के पावन अवसर पर ही सुबह से ही यहां पर श्रद्धालुओं के द्वार भगवान के दर्शन का क्रम शुरू हो गया था, इसके पश्चात सुबह दस बजे से रात्रि बारह बजे तक खीर आदि की प्रसादी का वितरण किया गया। मान्यताओं के मुताबिक, इस दिन चंद्रमा की किरणों में उपचारी गुण होते हैं जो शरीर और आत्मा को पोषण देते हैं। यह भी माना जाता है कि शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा की किरणों से अमृत निकलता है इसलिए उसका लाभ लेने के लिए खीर को रात में चन्द्रमा की रोशनी में रखा जाता है। इसके बाद सुबह के समय खीर का प्रसाद के रूप में सेवन किया जाता है। बृज क्षेत्र में शरद पूर्णिमा को रास पूर्णिमा के रूप में भी जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि शरद पूर्णिमा के दिन भगवान कृष्ण ने दिव्य प्रेम का नृत्य महा-रास किया था। शरद पूर्णिमा की रात कृष्ण की बांसुरी का दिव्य संगीत सुनकर, वृंदावन की गोपियां अपने घरों और परिवारों से दूर रात भर कृष्ण के साथ नृत्य करने के लिए जंगल में चली गई थीं। यह वह दिन था जब भगवान कृष्ण ने हर गोपी के साथ कृष्ण रूप में रास किया था।