सीहोर। मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एवं बुधनी विधानसभा क्षेत्र से विधायक शिवराज सिंह चौहान का गोद लिया गांव मनासा इस समय दुदर्शा का शिकार है। इस गांव में जहां लोगों को मूलभूत सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं तो वहीं यहां की आंगनबाड़ी सबसे ज्यादा कुपोषित दिखाई दे रही है। मनासा की आंगनबाड़ी में जहां बच्चों को सुबह का पोषण आहार नहीं दिया जा रहा है तो वहीं आंगनबाड़ी केंद्रों में बच्चे बिजली, पानी से भी तरस रहे हैं। जब सीहोर हलचल की टीम ने यहां पर पहंुचकर स्थिति देखी तो यहां के जिम्मेदारों की कई पोल खुलती नजर आई।
पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान ने गोद लिया गांव-
भैरूंदा तहसील का गांव मनासा प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने गोद लिया था। जब तक वे सीएम रहे तो यहां की व्यवस्थाएं कुछ बेहतर रहीं, लेकिन उनके सीएम पद से हटने के बाद यहां के जिम्मेदारों का रवैया भी गैर जिम्मेदाराना हो गया। एक तरफ महिला बाल विकास विभाग द्वारा करोड़ों रूपए खर्च किए जा रहे हैं, ताकि बच्चों को पोषण आहार मिले, प्रदेश से कुपोषण का दंश समाप्त हो, लेकिन बच्चों को कुपोषण से तो मुक्ति नहीं मिल रही है, उलटे महिला बाल विकास विभाग के जिम्मेदार अपना पेट भर रहे हैं।
ज्यादातर आंगनबाड़ियों की स्थिति बद से बदत्तर-
सीहोर जिले में संचालित हो रहीं ज्यादातर आंगनबाड़ियां भगवान भरोसे चल रही हैं। जिले के भैरूंदा तहसील में भी ग्राम मनासा की आंगनबाड़ी सहित गिल्लौर, सेमलपानी, महागांव, निम्नागांव, रामनगर सहित अन्य गांवों में एक से अधिक आंगनबाड़ी केन्द्र संचालित हैं। इनमें से ज्यादातर में पानी, बिजली की समस्या है तो कई जगह शौचालय तक की सुविधा भी नहीं है। इतनी भीषण गर्मी में यहां की कार्यकर्ता, सहायिका को इधर-उधर से पानी लाकर काम चलाना पड़ रहा है। सुविधाओं के अभाव मेें यहां पर बच्चे भी आंगनबाड़ी केन्द्रों में आने से कतरा रहे हैं। ज्यादातर केन्द्रों पर 10 से 12 बच्चे ही पंजीकृत हैं। वे भी एक-दो घंटे के लिए आते हैं।
भवनविहीन आंगनबाड़ी, किराया 750 रूपए-
भैरूंदा विकासखंड के अंतर्गत आने वाली ज्यादातर आंगनबाड़ियां भवनविहीन हैं। ये किराये के मकानों में संचालित हो रही हैं। विभाग द्वारा इसका किराया भी बेहद कम दिया जा रहा है। आंगनबाड़ी का किराया 750 रूपए प्रतिमाह है। भैरूंदा तहसील में 46 आंगनबाड़ी केंद्र किराए के मकान में संचालित हो रहे हैं। जब आंगनबाड़ी केन्द्रों की स्थिति देखी तो यहां आने वाले बच्चों की संख्या बेहद कम मिली। सुबह 11 बजे केन्द्र पर एक से दो बच्चे ही उपस्थित रहे। आंगनबाड़ी कार्यकर्ता से जब इस बारे में जानकारी ली तो उन्होंने बताया कि बच्चे जल्दी चले गए हैं। खास बात यह है कि ज्यादातर केन्द्रों पर 10-12 से ज्यादा बच्चे पंजीकृत नहीं है। इसकी वजह मूलभूत सुविधाएं नहीं होना है।
केन्द्रों पर पंखा तक नहीं, गर्मी में कैसे रहे बच्चे-
आंगनबाड़ी केन्द्रों पर पानी व बिजली की व्यवस्था न होने से गर्मी के मौसम में बच्चों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। यहां पर बिजली, पंखे और कूलर के कोई इंतजाम नहीं है। केन्द्र पर सुविधा न होने से अभिभावक अपने बच्चे को नहीं भेजते हैं, जबकि इन दिनों आंगनबाड़ी केन्द्र का समय सुबह 9 से दोपहर 2 बजे तक का है। इसके बाद भी बच्चों की संख्या कम है। इधर आंगनबाड़ियों में प्रतिदिन का अलग-अलग मैन्यू भी तय है, लेकिन इस मैन्यू के हिसाब से यहां पर भोजन नहीं दिया जाता है। ज्यादातर दिन पतली दाल, जिसमें सिर्फ पानी ही पानी नजर आता है और चपाती परोसी जा रही है। सब्जी में आलू की सब्जी बनाकर रख दी जाती है। मंगलवार को खीर-पूरी का दिन होता है, लेकिन कई जगह नहीं दी जाती है। आंगनबाड़ियों में रोजाना सुबह नाश्ता दिया जाता है, लेकिन गर्मी का हवाला देते हुए स्कूल बंद होने के कारण बंद कर दिया गया है। बच्चों को दोपहर का भोजन कराया जा रहा है।
इनका कहना है-
आंगनबाड़ी केंद्र में बिजली और पंखा तो लगा हुआ है, लेकिन मीटर पिछले दो माह से बंद होने के कारण बिजली नहीं है। स्कूल बंद होने के कारण सुबह का नाश्ता बंद कर दिया गया है। नल का कनेक्शन नहीं होने के कारण हैंडपंप से पीने का पानी लेकर आना पड़ता है।
– उर्मिला पेठारी, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, मनासा, जिला-सीहोर
मीडिया द्वारा मामला संज्ञान में लाया गया है। जिन आंगनबाड़ी केंद्रों में सुबह के समय पोषण आहार एवं मैन्यू के अनुसार नाश्ता और भोजन नहीं दिया जा रहा है। ऐसे केंद्रों पर जांच कर उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
– अनूप कुमार श्रीवास्तव, महिला बाल विकास अधिकारी, भैरूंदा जिला-सीहोर